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शंका :- गुणधर भट्टारक गणधर नहीं है, प्रत्येक - बुद्ध, श्रुतवली, अभिन्नशपूर्वी भी नहीं हैं। उनकी रचना को सूत्र नहीं कहा जा सकता है । सूत्र का लक्षण इस प्रकार कहा गया है।
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सुत्त गणहरकहियं सहेब पत्तयबुद्ध कहियं च । सुदकेवलिया कहिये अभिण्णदस-पुवि-कहियं च ।
जो गणधर के द्वारा कहा गया है, प्रत्येक बुद्ध द्वारा कहा गया है, aham के द्वारा कहा गया है तथा प्रभिन्नदशपूर्वी के द्वारा कहा गया है, वह सूत्र है ।
समाधान -- निर्दोषत्व, प्रल्पाक्षरत्व और सहेतुकत्व गुणों से विशिष्ट होने के कारण गणधर भट्टारक रचित गाथाओं को मार्गदर्शननिता गुज्यत हो। सूत्र का यह लक्षण भी प्रसिद्ध है :
सूत्र
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मल्पाक्षरमसंदिग्धं सारवद गूढनिर्णयम् । निर्दोषं हेतुमत्तथ्यं सूत्रमित्युच्यते बुधैः ॥
जो अल्प अक्षर युक्त हो; असंदिग्ध हो, सारपूर्ण हो, पूर्ण हो, निर्दोष हो, युक्तिपूर्ण हो तथा वास्तविकता बुद्धिमानों ने सूत्र कहा है । ]
गंभीर निर्णय युक्त हो, उसे
शंका ( १ ) - सूत्र का यह लक्षण जिनेन्द्र भगवान के मुख कमल से विनिर्गत प्रथं पदों में ही घटित होता है । गणधर देव के मुख से विनिगंत ग्रंथ रचना में यह लक्षण नहीं पाया जाता, क्योंकि गणधर को रचना में महान परिमाण पाया जाता है ।
१. एदं सम्बंपि सुत्त लक्खणं जिण-वयण-कमल-विणिग्गयप्रत्य पदाणं चेत्र संभवइ । ण गणहरमुह - विणिग्गयगंथ रयणाए तत्थ महापरिमाणुत्तवलंभादो ।
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पण, सच्च ( सुत्त ) सारिच्छमस्सिद्वण तत्थ वि सुचत्त' पडिविरोहाभावादो (पृष्ठ २९ )