Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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७. ऋषभदेव की दीक्षा ८. विनीता नगरी की स्थापना ९. भरत-बाहुबलि आदि पुत्र व ब्राह्मी सुन्दरी का जन्म १०. लिपि-कला-लक्षण शास्त्रादिका प्रादुर्भाव ११. वर्ण व्यवस्था १५. ऋषभदेव की दीक्षा एवं पंचमुष्टि लोच १६. एक संवत्सर के पश्चात् पारणा १७. बाहुबलि कृत धर्मचक्र १८. भगवान ऋषभदेव की केवलज्ञानोत्पत्ति १९. मरदेवी माता का केवलज्ञान और निर्वाण २०. गणधर स्थापना और ब्राह्मी की प्रव्रज्या २१. भरत की विजय यात्रा और नव निधियाँ २२. भरत बाहुबलि युद्ध २१. उत्तम मध्यम और जघन्य युद्ध के तीन रूप २२. पराजित भरत द्वारा चक्ररत्न फैकना २३. बाहवलि की दीक्षा और केवलज्ञान २४. मरीचिका स्वमति के अनुसार लिंग स्थापन २५. ऋषभदेव का निर्वाण २६. भरत का केवलज्ञान और निर्वाण अब हम उपरोक्त घटनाओं का आगमिक दष्टि से विचार करेंगे । प्रथम आगम साहित्य--
भगवान ऋषभदेव के विषय में आगम साहित्य अत्यल्प मात्रा में प्रकाश डालता है। जैन आगमों में आचारांग सूत्र अति प्राचीन माना जाता है । उस में भगवान ऋषभ का कहीं भी नामोल्लेख नहीं है । दसरा आगम है सूत्रकृतांग । सूत्रकृतांग में भी भगवान ऋषभदेव का स्पष्ट नामोल्लेख नहीं मिलता किन्तु आवश्यक चूणि आवश्यक हारिभद्रीय वृत्ति सूत्रकृतांग चूर्णि, आवश्यक मलयगिरि के अनुसार सूत्रकृतांग का द्वितीय
लिक अध्ययन भगवान ऋषभदेव ने अपने अट्ठानवे पुत्र को उपदेश देने के लिए ही कहा था । वैतालिक का अर्थ है जगाने वाला । भगवान के अट्ठानवे पुत्रों का राज्य भरत ने छीन लिया । वे अपने पिता ऋषभदेव से राज्य प्राप्ति का उपाय पूछने गये थे । प्रत्युत्तर में भगवान ऋषभदेव ने कहा--"पुत्रों ! जो क्षण वर्तमान में उपस्थित है वही महत्वपूर्ण है अतः उसे सफल बनाना चाहिए । हे पुत्रों ! अभी इस जीवन को समझो । क्यों नहीं समझ रहे हो । मरने के बाद परलोक में संबोधि का मिलना बहुत ही दुर्लभ है । इत्यादि
तृतीय अंग सूत्र है स्थानांग । इस आगम में भगवान ऋषभदेव का क्रमबद्ध चरित्र उपलब्ध नहीं होता। किन्तु उपलब्ध सामग्री भी उनके जीवन के महत्वपूर्ण घटनाओं पर प्रकाश डालती है । स्थानांग सूत्र दस स्थानों में
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