Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 262
________________ भरतबाहुबलिवण्णणं २२१ ताव दारुण-मच्छरच्छन्नकोवानल-पज्जलिउ पलय-कालिनं सूरु तावइ । दढ-दसण-दट्ठोट्ठउडु, गहिय-धणुहु जमराउ नावइ ।। धण-गुण-टंकाररव-मुहुलु, तिहुयणु कुणइ असेसु । भय-भर-भज्जिर कह-कह-वि, धरणि धरइ सिरि सेसु ।।२४६४।। सुणहु लोयहु भणिवि भरहेसु, आयन्नु कढिवि मुयइ, सिय-सरोह-पुरिय-दियंतरु । कय-करणु कुमरो वि तं, अद्धयदि खंडइ निरंतरु ।। बाल-दिवायर-कर-नियर-उब्भड-कंति-कराल । कुमरु मुयइ भरहेसरह, सर जीविय-खय-काल ॥२४६५।। भरह-सारहि-तुरय-रहु-छत्तु, संछाइउ सिय-सरिहि, अनिलवेग-धणु-गुण-विमुक्किहि । भिच्चेहि वि मग्गणिहि, सरइ काइ आएस चुक्कहि ।। कुमरु वि भरहेसर-रहह, भमिडिवि पासि पासु । जिम्व दिणयरु कंचणगिरिहिं, गउ लंघिवि आगासु ॥२४६६।। मउडबद्धहं चडइ मउडग्गि, तोग्गि धाणुक्कियह, मंडलग्गि फारक्क-चक्कहं । सुंडग्गि वर-मयगलहं, धयवडग्गि भउ देंतु रहियहं ।। रणसायरि बहु-रव-मुहलि, भमडइ भड भेसंतु। खणि नयलि खणि धरणियलि, दीसइ भडु वगंतु ।।२४६७।। तओ उभय-बलेहि वि जाओ बहल-कलयलो जायासंको जाओ भरहवइ । भरहराउ वि गरुय-राएण, अकलंक-वण्णुज्जलिय, सुपओहर निय-करिण गेण्हइ । असि-लट्टि पियकंत जिह, पर-भएणं नहु खणु वि मेल्लइ ।। कुमरु वि नहि महीयलि भमइ, कर-कय-सिय-करवालु। वइरि-वार-संतासयरु, भासुर-भिउडि-करालु ।।२४६८।। चडिउ पुणरवि भरहरायस्स', तोणग्गि बाणग्गि गुणि, धणु वरग्गि संधाणि वेगेण। परसंग संकइ सगुणु, धणु कवष्णु जिम्व मुक्कराइण जं जं पहरणु लेइ पहु, तहिं सहिं वालु पराइ । मणु जिव पिय विछोइयउं, थिरयरु कहिं वि न थाइ ।।२४६९।। भरह दुम्मणु जाउ सविलक्खु, . कि भारहि जित्तु मई, एक्कि वालि महु बलु विलुत्तउ । पिक्खंतहु तिहुयणह, मज्झ सेन्नु सव्वु वि विजुत्तउ ।।। कुमरु' पासि उप्परि पुरउ, (लहु)पच्छि तिरिच्छउ धाइ । दूर-गउ वि पिय जिम्व फुरइ, नयणहं अग्गइं नाइ ।।२४ ॥ समूहई तह चडइ खंधेहि, जंघासु नासंतयह, हक्क-सद्दि पुणु वयणु पविसइ । जोयतह लोयणिहिं, पहरंतह हत्थेहिं दीसइ ।। एवमलक्खिउ लक्ख-भडु, पेक्खिवि भरह-नरिंदु। चिंतावण्णउ थाइ जिह, विंझह विरहि गइंदु ॥२४७१॥ तओ सविसायस्स चक्किणो सिरं सवच्छलयल-कडियड-तिग-धणुकोडि-सर-पुंखेसु चडिऊण नहं गओ नहयरी नंदनो। भरहो वि सखेयं भणियाइओ। १. यह गाथा जे० प्रति में नहीं है २. करेण गेण्हइ। ३. करसिय जे०% ४. महयलु पा०। ५. सिन्नु पा०। ६. विगुत्त जे०। ७. कुमरु पासि उप्प पा०। ८. ठाइ वा० ।।. गमो वि० पा० । १०. समूहए पा० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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