Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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२२७
भरहबाहुबलिवण्णणं
भणिय जसमइ चिरमहल्लेण, दर-कंपिय-कंधरिण, धवल-केस-संछन-गत्तिण । वर-विणय-विहियंजलिण, बाह-सलिल-संसित्त-गंडिण ।। देव ! न किज्जइ जाणुएहि, हरिस-ट्टाणि विसाउ । कुमरु कयत्थउ एत्थ जगि, जं पाविउ जस-वाउ ।।२५३६।। मत्त-मयगल-विहिय-पर-वेढु, भरहाहिब-हत्थिवइ, हथिहत्थ-भुय-दंडु दारुणु । दप्पुद्धरु धर-वलइ, लद्ध-लीहु भडु मेहडंबर ॥ दंतु खणिवि महागयह, आहउ जेण कवालि । पइसारिवि निय-भुय-बलिण, कालह मुहि विगरालि ॥२५३७॥ जेण निज्जिय सिद्ध-गंधव्व, विज्जाहर सुर वि! रणि, जासु अंगु देवह सहस्सेण । रखिज्जइ पहरणु वि, वीयएण जक्खह सहस्सिण सो सुसेणु सेणाहिवइ, दमिउ देवि गलि पाउ । उद्दालिउ पहरणु हढिण, चोज्जु सुरहं नहि जाउ ॥२५३८।। तुज्झ बालिण बहल-हलबोलु, भरहाहिव-सयल-बलु, अबलु विहिउ हउ महिउ भूरिउ । मुसुमूरिउ भड-निवहु, छिन्नु छत्तु धरणिहि निवाडिउ ।। धन्नी जसमइ तुहि जि परि, अनिलवेगु जसु पुत्तु । बालेण' वि पर-बलु जिणवि, जें उज्जालिउ गोत्तु ॥२५३९।। सो ज्जि जीवइ एत्थ जीय-लोइ जसु नाउं पसरुट्ठियएहि, सहरिसेहिं लोएहि गिज्जइ । रणि दाणि पर-उवयरिणि, पढम लोह जसु भुवणि दिज्जइ । पंच दिवस थिर-वासुएहिं, पाणिहिं पाहुणएहिं । हा! हारिउ तिहिं मणय-भवु, कित्ति विढत्त न जेहिं ॥२५४०।। जेण संगरि समर-सोडीरु', भरद्वाहिव सन्न-मण, छिन्न-छत्त दसदिसि जयाविउ ।जें चक्क-रक्खाखणिउ. जख-सहस संसइ चडाविउ ।। कित्तिय सयंवर जिणिवि. रिउ, परिणिय जेण हढेण । सो ज्जि जियइ जगि बालु पर, रुज्जइ कज्जिण केण ॥२५४१।। उदयगिरिवर-सिहरि संठाइ, एत्थंतरि अमयकरु, गरुय-राउ नर नाइ जोव्वणि । ससि चडियउ बहि होइ पुणु, परिणईए गय-राउ तक्खणि ।। पुत्त-मरण-संतावियह, बाहुबलिहि न सुहाइ । सोमु पसारिय-कर करइ, हत्थुस्सारउ नाइ ॥२५४२।। अनिलवेगह मरण-संताउ पसरंतु सुहि सज्जणहिं, मज्झ किरण नासिउ न सकहिं । इय चितिवि अत्थमिउ, रयणि-नाहु नं कलिउ लज्जिहिं ।। सूरु वि नं जुज्झण-मणउ, रोसारुणु सु-पयाउ । सत्त-तुरंगमि रहि चडिवि, उदय-गिरिहि आयाउ ।।२५४३।' ताव घोसिउ पडह-सद्देण, पुरिसेण सव्वत्थ बलि, पउणु होह पहु चलिउ संगरि । जो तुम्ह नासण-मगउ, वलिवि जाउ सो नियय-मंदिरि ।। एउ निसुणिवि रणरंगिएहिं, सुहडिहिं कय-सन्नाह । तक्खणि गय पहु-पय-पुरउ, निय-सामग्गि-सणाह ।।२५४४॥ बद्ध-मच्छरु विहिय-सन्नाहु बलि-मज्झि ट्ठिउ बाहुबलि, पउर-तेउ नं पलय-दिणयरु । हल-वोलु बहु उच्छलिउ, तूर-सद्द, फुटुंत-अंबरु ।।
एत्थंतरि सहसा गयउ, भरहिण पेसिउ दूप । दारवाल जाणावियउ, पहु आसण्णीय ।।२५४५॥ 1 विरिण पा० । २ पहसण पा० । ३ हिय ह. पा० । ४ बोलेण जे । ५ ०थ तय० पा० । ६भुयणि पा० । ७० डीरि पा० ।८ खणउ.पा०18 जिणवरिज- जे० । ....
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