Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 275
________________ जुगाईजिणिदचरियं बाव भरहु पभणइ हय-पयावेण पडिवक्ख-मसि-मइलिएण, काइं तेण किल राय-सद्दिण । एक्कु ज्जि जिह रवि भुवणे, जो न होइ कि तेण जाइण ।। तुज्झ परक्कमि लद्धियइ, काई मज्झु विमुहाए। कउ सुहु परगइ-चित्तियई, भुंजंतिण महिलाए ॥२६०८।। अन्न-दिन्नउं होइ जं रज्जु गल-रज्जु-सम ?, तेण रज्जि किल काइ किज्जइ । तं रज्जु इह सलहिजइ, एग-छत्तु जं करवि भुज्जइ ।। पुहइ-महेलह एक्कु पइ, हउं अहवा तुंहुं अज्जु । कि बहु-बाया-वित्थरेण, विहिं एक्केण इं कज्जु ।।२६०९।। छत्तु मणहरु नह्यलाभोइ वररयणालंकियउं, उवरि धरिउ एक्कहि जि छज्जइ । अन्नस्स जिह जुन्न-तरु, कडयडंतु तिह अज्जु भज्जइ ।। एव भणिवि गुरुमच्छरिण, किउ अप्फोडण-घाउ, कंपाविय-धर-धरणिधरु, पडिउ नाई विग्घाउ ॥२६१०।। गुरु-परक्कम-सार-सीहेण अप्फोडिय तिवइ तहि, बाहुबलिण कय-सीहनाइण। जो कयइं न वि पडिकरइ, काइतेण पुत्तेण जाएग ।। .. पंच-चाव-सय-माण-तणु, जंगम-गिरि-सम-देह । भड गज्जंत समुत्थरिय, पलय-कालि जिम मेह ।।२६११।। निविड-विरइय-कच्छ तो बेवि ओसारिय-सयल-बल, संख-तूर-जण-कलयलाउल। वगंति बहुविह-करण', मल्ल जेम्व रण-रस-रसाउल ।। लीला-वलणुवेल्ल-भुय, पसरिय-दारुण-हक्क । उरयड-वियडाडोव भड, पयडिय-वियड-मडक्क ।।२६१२।। ताव गुरुतर-पय-भरक्कंत विहडंत बंधव वलिय, धरणि जलहि झलझलिय गिरिवर । टलटलिय धर' विरस-सर, कडयडंति भज्जति तरुवर ।। नाइणि -भीयालिगिएण, ओगामिय-कंधेण । सेसिण म द्विय दढ पहय, महि उच्छलिय खणेण ।।२६१३।। विविहुवग्गि-विलग्ग-अंगेहि अवरोप्पर-मिलिय10-कर, अवरोप्पर-बद्ध-मच्छर । अन्नोन्न-संवलिय-भुय, सुहड गाढ-पीडिय-भुयंतर ।। पीडिज्जंतु वि वच्छपलु, लच्छि मुएवि न जाइ । आवइ-पडिउ सुमहिल पइ, कि सिढिलेइ कयाइ ॥२६१४।। मट्रि-कत्तरि-गरुय-घाएहिं पहरंति गरूयामरिस, मुक्क-हक्क-तासिय-सुरासुर । संविलिय-तणु नाइ अहि, रत्त-नेत्त फुकार-भासुर ।। पाय-गहिय-सिर बे वि. पुण, जिण-नंदण रण-दक्ख । नाइ महाभारुड नहि, उप्पयंति भुय-पक्ख ।।२६१५।। उच्छति य उच्छलतेहि निवडंति निवडतेहि, तह भमंति सामिहिं भमंतेहिं । संदेह-दोला-चलइ, बे वि वलई निय-निय-चित्तिहिं ।। तज्जिउ राइण भरहवइ, निय-भुय-बलह विसेसु । बहु पोरिसु अहिमाणु तुहु, अज्जु पउंजि असेसु ॥२६१६।। एउ जंपिवि गहिवि बाहाहिं उक्खित्तु आरक्खणह मलिवि माणु बहु-जक्ख-लक्खहं । पेक्खंतह नरवरह, सुरवराह नहयलि असंखह ।। उल्लालेविणु' भरहवइ, बाहुबलिण पक्खित्तु । भय-संभंतिहि नहयरिहिं , दिट्ठउ नहिं आवंतु ॥२६१७।। समुहई तह तासु देवेहि रिएहि ओसारियइं, वर-विमाण-जंपाण-जाणइं । मेल्लेवि अवसरण अह, गरुय-वसणि को कुणइ ताणई। ता घोसिउ नहि नहयरिहिं, संति हवउ भुवणस्सु । संति हवउ भरहेसरह, रिसहेसरह सुयस्सु ।।२६१८।। १. लियएण पा० । २. ससु ते जे० । ३. कत्थ तो पा० ।४. करुण जे० ।५. रमाउल जे० । ६. बंधण वरिय ० जे० । ७. लिय वय वि० जे०।८. यडंत भज्ज पा० । 8. नाएणि भी जे०।१०. मिलीय जे०। ११. नाइमुहा जे० । १२. वि महि पा०।१३. विणि भ० पा० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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