Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 312
________________ सिरिरिसहसामिदेसणा २७१ तिणमिव पडग्गलग्गं रज्जसिरि विहुणिऊण विहिपुव्वं । सुट्ठियसूरिसमीवे निक्खंतो परमरिद्धीए ॥३४६४॥ तविऊण तवमुयारं चिरकालं पालिऊण गुरुवयणं । सत्तरसभेयसंजममणुचरियं पढियबहुनाणं ॥३४६५।। तेलोक्करंगमज्झे धीरो धीवणिय बद्धकच्छिल्लो । आराहणापडागं गिण्हइ सो सुद्धपरिणामो ॥३४६६।। उप्पाडिऊण केवलनाणं निक्कसियकसिणकम्मसो । कयभत्तपरिच्चाओ मासं सिद्धालयं पत्तो ॥३४६७॥ ता भद्दे ! निरुवक्कमकम्माण सुवक्कमो न संभवइ । सोवक्कमाणभयणा भणिया तेलुक्कदंसीहि ॥३४६८॥ सोऊण सहा सयला वयणं पुंडरियगणहरिदस्स । संवेगसमावण्णा निविण्णा भवपवंचाओ ॥३४६९।। पडिवज्जिऊण धम्म जहारिहं पडिगया सनगरेसु । गरुयाण संगमो अह व निष्फलो होइ न कया वि ॥३४७०।। गहिऊण देसविरयं कंतिमई कंतिसिरिसुयासहिया । साणंदपरियणेणं परियरिया नियघरं पत्ता ॥३४७१।। एवं जणोवयारं काउं नाणाविहेसु देसेसु । अप्पपरोभयसुहओ अउव्व चिंतामणी कप्पो ॥३४७२।। आलोईऊण विहिणा अइयारे सुहुमबायरे सव्वे । सविसेससुद्धिहेउं महव्वयारोवणं काउं ॥३४७३।। खामित्तु सव्वजीवे सयमवि खमिऊण सव्वजीवाणं । भवचरिमनिरागारं सुदुक्करं अणसणं विहियं ॥३४७४।। अरहत-सिद्ध-आयरिय-वायगो साहुणो य गुणकलिए । पंचपरमेट्ठिणो माणसम्मि धरिऊण भावेण ॥३४७५।। भरहसुओ पुंडरिओ रम्मे सेत्तुंज्जसेलसिहरम्मि । सप्परिवारो थक्को पंचविहाराहणं काउं ॥३४७६।। चेत्तस्स पुन्निमाए मासखमणेण केवलन्नाणं । उप्पण्णं सव्वेसि पढमयरं पुंडरीयस्स ॥३४७७।। निट्ठवियअट्ठकम्मा जाइ-जरा-मरण-बंधणविमुक्का । कयकिच्चा भगवंतो परमपयं पाविया सव्वे ॥३४७८।। देवेहि कया महिमा सिद्धि पत्ताण ताण साहूणं । कयपूया सक्कारा सुरा गया निययठाणेसु ॥३४७९।। अह अन्नया कयाई भरहपिया भारहम्मि विहरंतो । उसहो समणेहि समं समोसढो एत्थ सेलम्मि ॥३४८०॥ देवेहि समोसरणं कयं कयत्थस्स कम्मखवणट्ठा । तिहुयणगुरुणो गुणरयणजलहिणो रिसहनाहस्स ॥३४८१।। पारद्धा धम्मकहा जिणेण जीवाण कण्णसुहजणणी । हरिसवसवियसियच्छी सुणइ सहा चित्तलिहिय व्व ॥३४८२।। एत्थंतरम्मि एगो विज्जुपहो नाम सक्कसमरिद्धी । सोहम्माओ देवो समागओ भत्तिभरियंगो ॥३४८३।। तिपयाहिणा पुरस्सरमभिवंदियपढमधम्मतित्थयरं । होऊण पुरो पयओ कयंजली थोउमाढत्तो ॥३४८४।। पायालि महीयलि देवलोइ मह सामिहं सरिसउ नत्थि कोइ । इय नच्चइ नं उब्भिय करेहिं कंकिल्लि तुज्झ चलणपल्लवेहिं ।। तुह पुरओ नाह सुरवरिहि खित्त सिय कुसुम वुट्ठि सिरि खंडसित्त । नयलह पडती केम भाइ तुह वंदणि तारयपंति नाइ । पडितु वत्थु वित्थरु सुसोहु विउडेतु सयल सत्तहतमोहु । तुह भाइ सजलघणगहिर घोसु नंदियणर करभरुनिहय दोसु ।। मणिरयणदंडु चामरह जुयलु गोखीर हारहरहास धवलु । तुह उभयपासि निवडंतु भाइ निज्झरणु जुयलु गिरि सिहरि नाइ ।। नाणामणि-किरणकरंबियंगि कंचणमयसिंहासणि सु तुंगि । तुह देउ पइट्ठिउ सहइ केम उदयद्दिसिंगिर विवु जेम ॥ दसदिसिहि निरंतरु वित्थरंतु नीसेस तिमिरभरु निद्दलंतु । भामंडलु तुह पहु केम भाइ हेलुग्गयरविसंदोहु नाइ ॥३४९०॥ वज्जंतु पउरगंभीरु घोसु तुहं दुंदुहि जय जण जणिय तोसु । बहिरिय दिसि मंडलु सहइ केम गज्जिरु संवट्टयमेहु जेम ॥ लविरसुतारमोत्तियसरीहिं कुंदेंदु संखदल रुइहरीहिं । छत्तत्तउ पइं पहु पाविऊण न हसइ रिद्धि इयरहं पहूण ॥३४९२।। निम्मलि विसालि मणहरि रवन्नि घोलिरु अंसत्थलि कणयवन्नि । तुह कसिण चिहुरपन्भारु भाइ सुरगिरिहि ल्हसिरु घणपडलु नाइ ॥३४९३।। - १. धी धणि पा० । २. जहागयं जे० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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