Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

Previous | Next

Page 319
________________ २७८ सयल - सुर पहु-मउलि- परिगलिय मंदार मंडिय-चलण, जोह मोह - भड - वाय-भंजण । दप्पुध्धुर-मयण-भड मुक्क-दुसह-सर-पसर-गंजण || कुंथु कयत्थीकय-सयल-सचराचर -जिय- लोय । तिणु जिम्व छड्डिय पइ जि परि कर गय भारह - भोय ||३५५३।। सरस- सररुह नयण नय - निउण छक्खंड - महि- महिल- वइ, महिय' - महिम महि - वटु-भूसण | पायडिय अपवग्ग पह, अर' - जिणिद उम्मग्ग- नासण || ताहं घरगणि सयल-सिरि, सग्ग- मोक्ख करि ताहं । खणु वि न चित्तहं उत्तरहि, तुह नामक्खर जाहं ।। ३५५४ ।। जुगाइ जिणिक्चरियं देव तिहुयण- पयड - माहप्प सद्धम्म - नायगति-जय-पहु, पहीण- जर मरण-तम-भर । मयमल्ल पडिमल्ल जिण मल्लिनाह पणयामरेसर | कुमरत्तणि कय-वय- गण, सामिय सामल देह । भविय कुमुय पडिबोह समि तव सिरि-निय-कुल- गेह ।। ३५५५ ।। सजल - जलहर - नील- भमरोलि पवन्न ।। ३५५६ ।। नीलुप्पल-दल-गवल-सरिस - देह समरसिय दयवइ । अपमेय अ-पमाण- गुण, मुणिय-वत्थु - परमत्य मुणिवइ ।। सोम निरंजण कारुणिय, सुव्वय भविय सरण्ण । हरिवंसुब्भव भव महण, मई तुह सेव नमिर नरवर - मउड- माणिक्क -- मणि-किरण-रंजिय-चलण, देवलोय - लोयण - महसव । कर कलिय- निव्वाण- सुह, सुह-निहाण पसरुट्ठिय परमायरिण, जे तुह पय पणमंति । ते लंघेविणु भव-जलहि, नमि निव्वाणह देव कोड्डिण कुमर - भावम्मि- हरि-संखु पई करि करिवि, वयण-पवणि जं भरिउ तक्खणि । त" खुद्ध जायवसयल, हरि स- संकु संजाउ निय-मणि ॥ सायर सयल झलज्झलिय, गिरि टलटलणह लग्ग । कंपिय धरणि धसविकयह, धरणिदह फण भग्ग ||३५५८।। विसम-संकडि समर-संघट्टि- अइ-दुत्तर जलहि-जलि, लहरि गहिरि विलसंत- जलयरि । निरु निर्वाडिय वण-गणि, सीह-सप्प करि कुविय दुहरि ॥ पासनाह - नाम-ग्गहणि, नर नित्थरहिं न भंति । भुंजिवि संसारिय- सुहइं, दुहहं जलंजलि दिति ।।३५५९।। तिसल - देविहि गब्भि वढति- परं देव सिद्धत्थ-रि, जं सिरीइ वित्थाम लद्धउ । ति कारण कारुणिय, 'वद्धमाणु' भण्णसि पसिद्धउ ॥ वर-नाणोदय-गिरि-चडिय, पयडिय-भुवणाणंद । तिहुयण-बंधव तय-निहि, जय पहु वीर - जिद्ि इय निम्मल गुणगणवद्धमाणपट्टपणयपायकमलाण । आसंसारं सेवा मह होज्ज जिणिदचंदाण भरस्म केवलणाणं निव्वाणंच Jain Education International पणमंत - वासव ।। जंति ।।३५५७|| For Private & Personal Use Only एवं थुई काऊण उत्तिणो अट्ठावयाओ भरहो । विउले भोग भोगे भुजमाणस्स पंचपुव्वसय सहस्साई समझताइ turer at विहाओ कयबलिकम्मो गोसीसचंदणविलित्तगत्तो वरकुसुमविरइयसिरसेहरओ नियत्थवरत्थो सव्वालंकारविभूसिओ आयंसघरमागओ । तत्थ सव्वंगिओ पुरिसो दीसइ । तस्स तहि नियसरीरं पेच्छमाणस्स अलक्खियं चेव अंगुलि - पयिं । कमेण सरीरगं पलोयंतो जाहे तं अंगुलि पलोएइ ताहे अंगुलिज्जेण विणा विसोमाणी पासइ । अहो नियंतेण दिट्ठ निवडियं अंगुलिज्जगं ताहे मउडं पि अवणेइ । एवमेक्वेक्कमाभरणमवणंतेण सव्वाणि मुक्काणि ताहे पेच्छड अत्ताणयं । उच्च परमं व उमसरं विच्छायं । अहो ! आगंतुगेहि दव्वेहि विभूसियं मे सरीरयं को एत्थ पडिबंधो ? परमसंवेगमावतो १. ल सुरु प० जे० । २. मउड प० पा० । ३. परिकर जे० । ४. ६. व भू जा० 1 ७. अरिजि पा० । ८. देह दय रस जे० । ६. ११. ० ० । ।।३५६० ।। ।।३५६१।। भारय भो० जे० । ५. महव पा० । मि नेव्वा पा० । १०. कोट्टिण जे० । www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 317 318 319 320 321 322