Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 313
________________ २७२ जुगाइजिणिदचरियं सरसई सुविसाल पम्हलाई दीहरई सलोणइंनिम्मलाई। तुह नयणइंपिच्छिवि लज्जिएहि वणवासि वसिज्जइन मिगेहि।। सुसिणिद्धउ सुंदरु सुस्सिलिठ्ठ मुहकमलभंतरि सन्निविठु । तुह सयलउ नासावंसु भाइ सरलह भल्ल तणु कहइ नाइ ।। तुह अहररागसोहा जिएहि पविसिउ समुद्दि नं विद्द मेहिं । तुह पहुसमनिम्मलदंतपंति अहरेइ कुंदकलियाहं कंति ।।३४९६।। ससि मंडलु जइ अकलंकु हुंतु तुह वयणिण तो उवमा लहंतु । तुह सहहिं सवण लंबंत संत संजम सिरि नं हिंदोलकंत ।।३४९७।। रेहा तउ तुह कंठयलि सहइ नं नाण माइ सिवमग्गु कहइ । सुरकरिकरु जइ चंचलु न होज्ज तो तुम्ह भुयह भल्लिम लहेज्ज । उग्गंततरणि सच्छाउ सरलु तुह छज्जाइ करयल कमलु विमलु। भवियायण महुयरजणिय लोहु सरलंगुलि दलदिप्पंत सोहु ।। तवणिज्ज पुंज पहपिंजरम्मि वरपुरकवाडवित्थिण्णरम्मि । तुह वच्छि सहइ सिरि वच्छु केम कंचणु सिलत्थु वररयणु जेम्व।। गंभीरनाहि तुह कहइ नाइ पई मुए वि गंभीरिमकासु भाइ । तुह मणहरलंक विणिज्जिएण वणि वसियइ नं कंठीरवेण । तुह ऊरुवेवि मंसलसुसोह रंभा खंभाह विहरहि रेह । तुह जंघा जुयलहं पहु समाणु तेलोक्के वि विज्जइ नोवमाणु ॥३५०२।। झस संख सरोरुह मोहियम्मि निम्मल नह पह पयपूरियम्मि । तुह पाय सरोवरि जे न पहंति ते पावपंकू कह खालयंति ।। सिरि पढमजिणेसर पढमनरेसर पढमलोय ववहारकर । भवभवण विणासण दुह सय नासण पह पणयह दुरियाइं हर ।। इय थोऊण सहरिसं भगवंतं सयललोयपच्चक्खं । उचियासणे निसण्णो धम्म सोउं समाढत्तो ॥३५०५।। देवासुरनर-किन्नर-विज्जाहर-सिद्धसंकडसहाए । पुरओ पसन्नचित्तं भणियमिणं रिसहनाहेण ॥३५०६।। अवसप्पिणीए अयं जह पढमो सयलजिणवरिदाणं । तह सेत्तुज्जो पढमं तित्थं तित्थाण सव्वाण । ३५०७।। जगगुरुणो तं वयणं देवासुरनरवरेहि पडिवण्णं । जायं च पढमतित्थं सुपसिद्धं सव्वलोगम्मि ॥३५०८।। उत्तरिऊणं तत्तो विहरइ नाणाविहेसु देसेसु । उसहो वरवसहगई जय जीव पियामहो भयवं ॥३५०९।। तेवीसजिणेसरपयवित्तिओ सयलसेलसिरतिलओ । एएण कारणेणं जाओ सेत्तुंजयगिरी सो ॥३५१०॥ जम्मि बहुकोडिसंखा सिद्धा सिरिपुंडरीयपमुहजिणा । तित्थाणमाइतित्थं सेत्तुज्जो तेण संजाओ ।।३५११।। गुणगरुओ गणहारी पढमो रिसहेसरस्स पुंडरिओ । ता तप्पडिमा सहियं भरहेण करावियं भवणं ॥३५१२॥ तम्मज्झे जगगुरुणो जुगाइतित्थंकरस्स वरपडिमा । जीवंतसामिणिया कराविया भरहनाहेण ।।३५१३।। काऊण परमपूयं भरहो रिसहेसरस्स भत्तीए । भत्तिभरपुल इयंगो थुइवायं काउमाढत्तो ॥३५१४।। नहमणि-किरण-करंबिय-रविकरसंजणियसक्कचावाण । जयपायडाण मुणिवइ नमो नमो तुम्ह पायाण ॥३५१५।। कलिकालकलिलकवलणसहाण तियसिंदचंदमहियाण । पणइयणकप्परुक्खाण पणमिमो तुम्ह पायाण ॥३५१६॥ बहदुक्खतावतवियाण सुहयरी सामि ! सयलसत्ताण । तुह पयपायवसेवा पुन्नहि विणा न संपडइ ।।३५१७॥ गुणहरगणहरसुयहर विजियक्खसयक्खसिद्धिसंपत्त । सेत्तुंज्जसिहरमंडणपुंडरियनमो नमो तुम्ह ॥३५१८।। रिसहसामि निव्वाणगमनं एवमाई तित्थयरं गणहरं च थोऊण सनयरमागओ रयणाहिवो । तिहुयणगुरू वि विहरिऊण महीमंडलं भाणु व्व वयणकिरणेहिं पडिबोहिऊण भवियकमलायरे कयत्थं काऊण नाणाइगणरयणवियरणेण समणसंघ अवणेऊण केवलकिरणेहि जीवाण अन्नाण तमंधयारं परिपालिऊण संपुण्णं पुव्वसयसहस्सं सामण्णपरियागं नाऊण अप्पणो मरणसमयं सुहं सुहेण विहरंतो चउरासी समणसहस्सेहि परिवारिओ तहा तिन्नि लक्खा समणीणं एवं तिन्नि लक्खा पंचसहस्साहिया सावयाणं, घउप्पन्नसहस्साहिया पंचलक्खा, सावियाणं चउरो सहस्सा सत्तसहस्सा पन्नासाहिया चउद्दसपूवीणं, नवसहस्सा ओहिनाणीणं, • सुहयर जे० । २. पसंगपतं पा० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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