Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 276
________________ भरतबाहुबलिवण्णणं २३५ दिठु देविहि नहह निवडंतु संखुद्ध तिहुयणु सयलु, विहिउ रोलु चक्कहर-सेन्निण । पडियागय-माणसिण, दिठ्ठ जे? बाहुबलि-राइण ।। धाइवि उत्तावल-मणिण, बाहाविल-नयणेण । भुयहिं पडिच्छिउ भायरिण, निय-बंधवु नेहेण ॥२६१९।। भरह मिल्लिवि महिहिं वेगेण पासेय-कण-भरिय-तणु, दिन्नु वाउ तसु नियय-वत्थेण । वर-पुरिस वसणावडिउ, अरि वि धरहि धाएवि मत्थिण ।। पभणिउ तक्खसिलाहिविण, रहसिण भारह-राउ। केण सहिज्जइ पई मुइवि, तिहयणि मह भुय-घाउ ।।२६२०।। विमण-दुम्मणु मलिय-माहप्पु बिच्छायउ भरहवइ, नियवि भणिउ सो निय-कणिट्ठिण । पई काइं किर लज्जियां, कहि न भाइ हुँतेण जेट्ठिण ।। लब्भइ जं लावंकियउं, उच्छिन्ना परिवाडि। एग-दसहिं कसु दिवस गय, म-न पुरिसत्तणु नाडि ॥२६२१।। एउ निसुणिवि भरहु दप्पंधु कोवानल-पज्जलिउ, भणइ अनि कि समर-निट्ठिय। जइ जित्तउं बाहु रणि, मुट्ठि-समरि मह भुय पइट्ठिय ।। एउ बोल्लिवि उब्भेवि कर, ढुक्कउ भारह-नाहु,। तक्खसिलाहिवु' समुहु ठिउ, नयर-परिह-सम-बाहु ॥२६२२॥ गुरु-मडप्फर मल्ल-पडिमल्ल चाणूर-मुट्ठिय-सरिस, वज्ज-कढिण-मुट्ठिहि समुट्ठिय । अपमाण-भुय-बलि कलिय, सुर-विमुक्क-वरकुसुम-मालिय।। मुट्ठि-घाय-पडिसद्दएहिं, तिहृयणु बहिरिउ सब्बु । भरहाहिवु भय-वुन्न-मणु, तो वि न मिल्लइ गव्वु ।।२६२३।। ताव तिहुयण-पयड-पुरिसेण रण-रंग-रंगिय-मणेण, बाहुबलिण एवं भणिज्जइ। भरहाहिवु मह तणउ, मुट्ठिघाउ जइ पइं सहिज्जइ ।। एउ बोल्लेवि उरयडि वियडि, दिनउ मुट्ठिपहारु । छिन्नरुक्खु, जिह भरहवइ, निवडिउ नीसाहारु ॥२६२४।। भरहु मइलिय-माणु स-विलक्खु सच्चविय-दस-दिसि-वलउ, सुर-समक्खु एउ वयणु जंपइ । मइ दिट्ठउ कवणु भडु, छिण्ण-पत्तु जिह इह न कंपइ ।। रोस-फुरताहरिण पुण, वुच्चइ भरहिण भाय । लइ परिमाणउं नियय-बलु, पाडहिं दंडिण घाय ।।२६२५।। गाढ-बद्धय-परियरायार तो उट्ठिय भड' मुएहि, लोह - दंड भामित रहसिण । बहलुग्गय-पुलय-हर, मुक्क-हक्क कंपंत रोसिण ।। सिर10-गल-मालोगलिय-सिय-कुसुम-समूहु मुयंति । जुज्झण-भूमिहिं अच्चणिय, विन्नि11 वि नाइ करिति ।।२६२६।। भरह पढमउं पहरि तुहुं ताव महु पढम पहरायउ, दिट्ठ-पहारु पहरिवि न सक्कहि । जो दिठ्ठ दिट्ठी-विसिण, तासु फुरणु किह होइ पुरिसह ॥ एउ भणंतह आहसिवि, भारह-नाहिण घाउ । हिययाणंदणु बंधवह, पेसिउ नाइ पसाउ ॥२६२७।। लहुय-भायह दंड-धाएण निवडंतिण सरसरह, हार दोर केऊर साडिय। दुप्पुत्तिण जेम पिय, दविण-हिणु किउ भरहु घाएण ।। अवरुप्परु वद्धामरिस, तज्जिवि घाय मुयंति । दारुण-घाहिं दिसि-वहिहिं, पडिसद्दा उट्ठिति ।।२६२८॥ १. लु सक्क पा० । २. कयभ० जे० । ३. भुभ घाउ पा० । ४. से जे० । ५. अन्नि जे०। ६. तुन्भे जे० ७. हु . विउ जे० । ८. वियट्टि दि० पा० ।६. भडसुए जे० । १०. सिलग पा० । ११. य छिचि पा० ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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