Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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जुगाइजिणिंदचरियं
उत्तरंगइ विहिं वि फुटृति
सीवणि मुहइं (?), कवय-खंड निवडंति पाएहिं । सन्नाह-बहु-लोह-दढ, तडतडंत तुटुंति घाएहिं ।
सहं सिरताणिहि मणि-मउड, खंडखंड किय केम। सिरेण वि वूढा आवइहि, विहडिय दुज्जण जेम ।।२६२९।। घोर-घोएहि बे वि देहेहि
अवरोप्परु आवडिय, मुक्क-फार-हुंकार-दारुण। घण-घाय-जज्जरिय-तणु, वण-नियंत-बहुलोहियारुण ।।
भामिवि बिहि वि महा-भुयहि, भरहेण भामिउदंडु। कढिण-निडालि महाबलह, गउ' लग्गिवि सयखंडु ॥२६३०॥ पुण वि जोइवि कोव-विकराल
नयहिं भरहाहिविण, भणिउ काइं तह काल कुद्धउ । निक्कारण जेण पइ, अप्पु मरण-आवत्ति छद्धउ ॥
इय बोल्लिविदंडिण हणिउ, जेट्ठिण पुणु वि कणिट्ठ । महियलु फोडिवि वीरधणु, जन्नुय जाव पविट्ठ ॥२६३१।। लद्ध-चेयणु मुच्छ-परिमुक्कु
उ?वि भडु बाहुबलि, चंडु दंडु मत्थइ भमाडिवि । अच्छोडइ विगय-भउ, सिर-पएसि दुव्वयणि ताडिवि ॥
विहलंघलु डुल्लिवि. धरहि, पह सिरि जाव पइट 10 । नाय महाभय-संभमेण, दिट्री-पहह विनट्र ॥२६३२।। देवचंदण-सलिल-सित्तंगु
पायालह नीसरिउ, सयल-भरह-पहु सेसु नावइ । विद्दाणु वयवइ भएण, नागु जेम्ब विस-मुक्कु भावइ ॥
दीव-सहस्स-समाउलिय-वोलिय-रयणि-विहाणु । कमलायर वोहिंतु नहि, ताव समुट्ठिउ भाणु ।।२६३३।। गुरुपरक्कम-मुक्क विच्छाउ
चिंताउरु साम-मुह, अधणु जेम्ब पिय-पाहणागमि। दीसंतु नित्तेय-तण, चंदु जेम्ब गह-राहु-संगमि।
मणि चिंतिउ चक्काहिवेण, धाइउ आइउ चक्कु । पय पणमिवि सुर-परियरउ, दाहिण करयलि थक्कु ।।२६३४।। चक्कु पेक्खिवि भरह-हत्थत्थु
परिचितइ बाहुबलि, पेच्छ पेच्छ मज्जाय भायह । जो कवडेण ववहरइ, किन्न पुत्तु इहु होइ तायह ।।
पेक्ख दुरायारह चरिउ, संपइ चप्फलिहूउ । पहरण लेवि समुट्टियउ, जं जुज्झि परिभूउ ॥२६३५।। मुक्क-मेरह अलिय-वयणस्स
गय-दसणह विसहरह, ताय-वंस-घुण-कीड-कप्पह। को बीहइ भरह तुह, भरह-चरिय-कर-गहिय-चक्कह ॥
चक्केण सरिसउ-चक्कहर, जइ नवि चूरउं अज्जु । तो सेवउ तायह चलण, तिणु जिम्व छड्डिवि रज्जु ।।२६३६।। एउ पभणवि गहिउ गुरु-दंडु __ उद्देड-भुय-दंडु बलु,1 चलिउ चलण-चालिय धराधरु । रिसहेसर-अंगरुहु, भरह-सुमुहु भड-भिउडि-भीसणु ।।
इंतउ पेक्खिवि बाहुबलि, भरहिण मक्कउं चक्कू। तं पि सुनंदा-नंदणह, तुंविण लम्गिवि थक्कु ॥२६३७।। चक्क-विक्कम-खंडणुप्पण्ण
वलक्खु पेक्खिवि भरह, भणिउ वलिउ वित्तिण कणिट्रिण । धि धि त्ति रज्जह भरह, वलिउ चित्तु मह ताय-मग्गिण ।।
भाविण खामिउं तह खमिउ, संपइ सयल-जियाहं । बहु-भेयहं तस-थावरह, सत्तुहु तह मित्ताहं ॥२६३८।। १. विवूढा जे० । २. प्रावइहिं पा० । ३. विहलिय पा० । ४. देवेहिं पा० । ५. भुएहि पा० । ६. ण वाहिउ जे० । ७. गो उल पा० । ८. वि धीर जे० १६. डोल्ले १० . पविटु, जे० । ११. एहु जे० । १२. वलिचि० जे० ।
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