Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 285
________________ २४४ जुगाइजिणिदचरियं अह तम्मि चेव गामे रायामच्चाण सम्मओ सरलो। नामेण अग्गिमित्तो वसइ दिओ वसणपरिहीणो ।।२७०१॥ अग्गिसिहा-अग्गिसिरी भज्जाओ दुन्नि तस्स पयडाओ' । पढमाए सुओ जाओ जलणप्पहो नाम नामेण ।।२७०२।। दोहग्गिओ दुरूवो विज्जारहिओ निलक्खणो दीणो। पिउपुन्नपोसणिज्जो सव्वत्थ वि निप्फलारंभो ॥२७०३।। पत्तावसरे पिउणा घरम्मि गंतूण सायरं भणिओ। अग्गिमुहो नाम दिओ पणयपगब्भं इमं वयणं ।।२७०४।। जलणसिरीनियदुहिया दिज्जउ जलणप्पहस्स किंबहुणा। पत्थणभंगं न कुणंति पत्थिया उत्तिमा पुरिसा ।।२७०५।। पडिवन्नं तव्वयणं अग्गिमहदिएण पुच्छिया घरिणी। उवरोहसीलयाए तीए वि तहेव पडिवन्नं ।।२७०६।। उचियावसरे दोहिं वि वीवाहमहूसवो कओ तेहिं । वित्तं पाणिग्गहणं जह विहवं पूइया लोया ।।२७०७।। एवं वच्चइकालो पुरिसोत्तिममाहणेण सह घडिया। अग्गिसिरी अग्गिसिहा तं जाणिय भत्तुणो कहइ ।।२७०८।। सच्चं वा अलियं वा भवेज्ज को एत्थ निच्छयं मुणइ। ता सक्खमेव दिढे जं जत्तं तं करिस्सामि ।।२७०९।। सच्चं वा अलियं वा भवेज्ज को एत्थ निच्छ्यं मुणइ। ता सक्खमेवदितु जं जुत्तं तं करिसामि ।।२७१०।। एवं कयसंकप्पो विप्पो वाहिं अदंसियवियारो । नियकम्मसंपउत्तो सासको गमइ दियहाई ॥२७११॥ नियगुत्तदेवयाए पूयट्ठा सयण-परियणसमेओ। अग्गिसिरि' मोत्तूणं घरम्मि सो निग्गओ विप्पो ।।२७१२।। एत्थंतरम्मि मारि व्व जंगमा जणियलोयसंतावा। मुहमुहरा परिणइमंगलाइविसकंदलिसमाणा ।।२७१३।। बहुकूडकवडभरिया पावा पावाण कारणं परमं । पव्वाइया पयंडा भेरुंडा नाम नामेणं ।।२७१४।। करगहियपिच्छिया चमरियाहिं पइदियहमेव गामम्मि । हिंडइ कणभिक्खट्टा महिलाण मणाणि चोरती ।।२७१५।। संपत्ता य कमेणं सा पावा अग्गिमित्त-गेहम्मि । अग्गिसिरीए पणमियउवयारपुरस्सरं भणिया ।।२७१६।। भयवइ' आसणगहणं कीरउ अम्हाणणुग्गहट्ठाए । दिण्णासणे बइठ्ठा भेरुंडा ईसि हसिऊण ॥२७१७।। पक्खालिऊण चलणे दाणुवयारं च बहुविहं काउं। जोडियकरकमलजुया अग्गिसिरी भणिउमाढत्ता ॥२७१८।। भयवइ ! संकडमेयं दुण्हं महिलाण जं पई एगो । ता कहसु किंपि वसियरण-कम्मणं चुण्णयं वावि ।।२७१९।। उभयं पि हु दाऊणं अग्गिसिरी विहियविविहसक्कारा! चउदिसि विदिण्णदिट्ठी भेरुंडा उट्ठिया सहसा ।।२७२०।। अह अण्णया कयाइ वि आरामगएण अग्गिमित्तेण। अग्गिसिरी पुरिसोत्तिमदिएण सह संगया दिट्ठा ।।२७२१।। कोहग्गिसंपलित्तो अग्गिसिरी पिउहरम्मि सो पत्तो। कहिऊण जहादिट्ठ वलिओ तेहिं चिय पएहिं ।।२७२२।। अग्गिसिरी पियहरेहिं पच्छा गंतूण खामिओ भणिओ। तह कहवि सिक्खविज्जसु जह तुह वयणं कुणइ एसा ॥२७२३।। जइ एवं तो वच्चह इमीए तत्ती न तुम्हि कायव्वा । एवं ति भणियपत्ताणि ताणि नियमंदिरंतरसा ॥२७२४॥ निसुओ एस वइयरो अग्गिसिरीए सवित्थरो सव्वो। संकियहियया साहइ सव्वं पुरिसोत्तिम-दियस्स ॥२७२५।। नियमंदिरस्स उरि पुरिसपमाणा समंतओ तेणं । काराविउमारद्धा मंजूसा अग्गिमित्तेण ।।२७२६।। विनाय वइयराए अणागयं चेव तीए पावाए । पडिकुंचिया कराविय करे' कया अत्तणो चेव ।।२७२७।। अण्णम्मि दिणे कहिओ पुरिसोत्तिममाहणस्स सव्वो वि। मंजूसाए वइयरो समप्पिया कुंचिया तस्स ।।२७२८।। भणिओ य सुहय ! जइ अत्थि ते मई पोरुसं व सत्तं वा । ता गयि कुंचिओ जामिणीए आवेज्ज मह पासे ।।२७२९।। १. पडडीयो जे० ।२. पियपुत्त पोस जे० । ३. दियहाणि पा० । ४. सिरी योपिा० । ५. महिलाणि मणा जे०।६. तत्तीए न जे०। ७. या कारावि पा०।८. साइ वइ पा० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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