Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 293
________________ २५२ जगाइजिणिदचरियं मज्झिममज्झिमगाणं होइ अणालवणकारणं कोवो। उत्तमनराण समए निव्वडइ फलेण रोसरओ ॥२९३५।। उत्तमउत्तमपुरिसा न चेव कोहस्स देंति अवकासं। जं सो अप्पपरोभयसंतावकरो महापावो ॥२९३६।। एमाइ तए भणिओ वसुंधरो न उण तेण पडिवणं। जं विहडियचित्ताणं संघडणं दुक्करं। होइ ॥२९३७।। भोगतरायजणिएण तेण कम्मेण तुह फलं दिण्णं । जं एत्थ भवे जाओ दीहरदोहग्गिओ वच्छ! ॥२९३८।। जं जेण कयं कम्मं सो तं अणुहवइ अत्तणा चेव । ता सविवेओ पुरिसो रूसइ कम्माण न परस्स ॥२९३९।। सुणिऊण साहुवयणं सद्धारोमंचकंचुइज्जतो। भणइ मुणी जलणपहो इमाण दुक्खाण' कह मोक्खो ॥२९४०।। भणइ मुणी सचराचरजियाण हियकारिणी सया कालं । निरवज्जा पव्वज्जा जलणप्पहजिणवरमयम्मि ॥२९४१।। विप्पेण तओ भणियं जइ जोगो मज्झ देह तो दिक्खं । मुणिणा वि मुणिय हियएण भत्तिरसो दिक्खिओ विप्पो ॥२९४२।। गहिऊण दुविहसिक्खं तवं तवंतेण तेण तं खवियं। नाणंतरायकम्मं जं बद्धं पुव्वजम्मम्मि ॥२९४३।। थेवेण वि कालेणं सुसत्थ सूत्तत्थपारगो जाओ। परहियरओ य संतो निरहंकारो विगयसको ॥२९४४॥ संजायगरुयवेरग्गवासणो नियसरीरनिरवेक्खो। विहरइ गुरुणा सद्धि अचलियचित्तो महासत्तो ॥२९४५।। छट्ठमदसमदुवालसेहिं दो मास मासखमणेहिं। दहयंतो कम्मवणं सुहज्झाणदवग्गिणा धणियं ॥२९४६।। अह अण्णया कयाई कइवयगीयत्थसाहुपरियरिओ। गुरुयणसमणुन्नाओ विहरइ जलणप्पहो साहू ॥२९४७।। पत्ते वासारत्ते खेत्तं पडिलेहिऊण सव्वत्तो। जा चिट्ठइ कइ वि दिणे ताव तहिं आगओ अन्नो ॥२९४८।। जंघाबलपरिखीणो अलद्धिम सुट्रिओ त्ति नामेण। सूविहियजणपरिवारो आयरिओ भिन्नसंभोगो ॥२९४९।। पुव्वपविढे दट्ठ ण मुणिवरे पत्थिओ स अण्णत्थ। भत्तिबहुमाणपुव्वं भणिओ जलणप्पहेणेवं ॥२९५०।। एसो अवग्गहो मेऽणुन्नाओ वसह एत्थ वसहीए। संकिण्णमिणं खेत्तं अम्हे अण्णत्थ वच्चामो ॥२९५१॥ पडिवण्णमिमं तेहि वि जलणप्पहो निययसीसपरिवारो। अण्णम्मि ठिओ गामे तवइ तवं अणसणाई ॥२९५२॥ साहुअवग्गहदाणोवज्जियअइगरुयपुन्नपब्भारो। मरिऊण मरणविहिणा लंतयकापे सुरो जाओ ॥२९५३।। भोत्तूण देवसोक्खं चविऊण सावसेसपुग्नंसो। पुव्वविदेहे वासे विसालसालाए नयरीए ॥२९५४।। बहुसालो नाम' वणीअणेगकोडीसरो जयपयासो। घरिणी विसालसीला तीसे सो अंगओ जाओ ॥२९५५।। महया महूसवेणं समए सुहिसयण-बंधव-समक्खं । पमुईयमणेहिं दिण्णं नाम से विमलसालो त्ति ॥२९५६।। नीसेसकलाकुसलो पवरपवड्ढंतरूयलायण्णो। अट्ठकन्नयाणं पिउणा सो गाहिओ पाणि ॥२९५७।। बहुसालो वि हु सुपइट्ठसूरिपायंतियम्मि पव्वइतो। पुत्तो य विमलसालो नियमंदिरसामिओ जाओ ॥२९५८।। जिणसाहुगुणुक्कित्तणपरायणो' धम्मनिहियनियचित्तो। संसारभउव्विग्गो सोहग्गमहोयही सरलो ॥२९५९।। अह अण्णया कयाई बहुसमणसमन्निया बहुसुया य। नामेण भुवणभाणू आयरिया तत्थ संपत्ता ॥२९६०।। वसहिगवेसणहेउं इओ तओ पुरवरे परियडता। जुगमित्तदिण्णदिट्ठी गुत्ता गुत्तिदिया धीरा ॥२९६१।। मलमलिणोवहि० देहा घराधरि संकमं करेमाणा। दिट्ठाविसालसीला वरमुणिणो विमलसालेण ॥२९६२।। गंतूण सबहुमाणं भत्तिब्भरुल्लसियवहलपुलएण। कयचंदणेण भणिया हरिसविसप्पंतनयणेणं ॥२९६३।। कत्तो भयवंतारो केण वि कज्जेण अडह पुरमझे। जइ कहणिज्ज अम्हारिसाण ता कहह पसिऊण ॥२९६४।। १. वुक्क० जे० । २. कंभुइ जे०। ३. दुकयाण जे०। ४. उत्तिरसा जे० । ५. सुमत्थ पा०। ६. मासद्ध पा० । ७. धणी पा०। ८. अट्टन्ह पा० । अद्धत जे०। ६. साहु कित्तण जे०। १०. णो बहुदेहा जे० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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