Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 290
________________ सिरिरिसहसामिदेसगा २४९ जलणपहेणं भणिया जलणसिरी सुयणु संपयं तुज्झ। घरभारो संकेतो जं जोग्गं तं करेज्जासु ॥२८४४॥ दरवियसियकिंसुयसुहसरिसं वयणं समुबहतीए। भणियमणाए चिंतसु निययघरं अप्पणा चेव ॥२८४५।। तं सुणिय सो विलक्खो थक्को आयारसंवरं काउं। जलणसिरी वि जहिच्छं छिडिणगोणि व्व संचरइ ॥२८४६।। एवं वच्चइ कालो अण्णदिणे रयणिपढमजामम्मि। जलणप्पहस्स गेहे समागया जलणसिरिमाया ॥२८४७।। दिण्णासणा निसण्णा सविणयमुवसप्पिऊण तो भणिया। जलणप्पहेण अम्मो समागया केण कज्जेण? ॥२८४८।। सा भणइ कज्जवसओ नियघरिणी मुयसु कइवयदिणाणि । सा भणइ तइयदियहो तुम्ह घरे तीए गइयाए ॥२८४९।। एवं पयंपमाणाण ताण सा कह वि दिव्वजोएण। संपत्ता जलणसिरी सासंका मायरं दटुं ॥२८५०॥ सावेसं जणणीए भणिया भण कत्थ तं गया आसि। तत्थुप्पण्णमणाए भणियं नियमाउलघरम्मि ॥२८५१॥ अलमेत्थ वित्थरेणं माया आयारसंवरं काउं। गहिऊण दुहियरं करयलेण सघरं गया झत्ति ॥२८५२।। कइवयदिणावसाणे जणणी जणएहिं सिक्खवेऊण। पटविया जलणसिरी ससहाया भत्तुणो गेहे ॥२८५३॥ गयसंका विगयभया सच्छंदा भमइ सा वि सव्वत्थ। जलणप्पहो वि मोणव्वएण वाहेइ दियहाइं ॥२८५४॥ अह अण्णया कयाइ वि गामाओ समागएण रयणीए। जलणप्पहेण दिट्ठा कुलपुत्तयसंगया घरिणी॥२८५५।। दळूण सो पणट्ठो इंतं जलणप्पहं तुरियमेव। जलणप्पहो पविट्ठो सकोवमेवं पयंपतो ॥२८५६।। पावे पण?सीले को एस घराओ निग्गओ पुरिसो। नीहर घराओ तुरियं नियवयणं मा पयंसेहि ॥२८५७।। रे पाव पयइनिग्घिणदोहग्गियतुह घरेण न हु कज्ज। एवं दुव्वयणाई जंपंती निग्गया झत्ति ॥२८५८॥ बहुदुक्खडहणडझंतमाणसो वासरं गमेऊण। रयणीगए एगागी निहाणट्ठाणं पलोएइ ॥२८५९।। न य पेच्छइ तं दविणं पिउणा जं दंसियं सहत्थेण। कइवयदिणाण मज्झे चउप्पयं तं पि से नढें ॥२८६०॥ तो सो विलक्खवयणो पलंबचुक्को व्व मक्कडो धणियं। सुहिसज्जणपरिहरिओ एवं चितेउमारतो ॥२८६१।। घरिणी घरं ति वुच्चइ लच्छी सोक्खाण कारणं होइ। सहवासो सलहिज्जइ समसुह-दुक्खेहि सयणेहिं ॥२८६२।। एयाण नत्थि एक्क पि जस्स किं तस्स कुणइ घरवासो। जलणप्पहो जलणसमं मन्नतो तं घरपुराईयं ॥२८६३।। धणि निस्सीली धणु गया सज्जणकरहिं न कज्जु । निद्धण वंगह माणुसह मत्थइ निवडउ वज्जु ॥२८६४॥ वरि परदेसवसाविया वरि सेविय वणवास। माण पणट्ठइ गयइ धणि खलहं म पूरिय आस ॥२८६५।। काऊण मणे निय कुल-क्कमागयं देवयं समुच्चलिओ। दिठो दूराओ गिरी वसंतसिहरि त्ति नामेण ॥२८६६।। बहुसाहो तस्स तले बहुपुत्तो दियवराण आवासो। सप्पुरिसो विव दिट्ठो वडविडवी विप्पतणएण ।।२८६७।। वडथुडविवरनिविट्ठा दिट्ठा नियगोत्तदेवया पवरा। जलणप्पहेण जलणप्पहेण वडवासिणी नाम ॥२८६८।। काऊण मज्जणं पूइऊण कुसुमेहि कयपणामेण। विहियकरसंपुडेणं सा भणिया विप्पतणएण ॥२८६९।। अग्गिसिहअग्गिमित्ताण नंदणो सयललोयपरिभओ। अत्थनिमित्तं सरिऊण भयवई एत्थ संपत्तो ॥२८७०।। एयं पयंपिऊणं पडिओ वडवासिणीए पयपूरओ। ताव ठिओ जाव गया पंचदिण। निरसणो संतो ॥२८७१।। छ?म्मि दिणे पयडक्खरेहिं वडवासिणी पयंपेइ। दूहवनरस्स व बहु न वसइ लच्छी घरे तुज्झ ॥२८७२।। ता मा खिज्जसु सुइरं जलणप्पहपुत्त ! बच्चसु सगेहं। देवा पि अणुप्पत्तं न समत्था कि पि दाऊणं ॥२८७३।। जलणप्पहेण भणियं भयवइ किं जंपिएण बहुएण। ताव न भुंजामि अहं जाव न अत्थो तए दिण्णो ॥२८७४।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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