Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 283
________________ २४२ जुगाइजिणिदचरियं पक्खे वा मासे वा इच्चाइ। भावओ कोहे वा माणे वा मायाए वा लोभे वा। एवमाइववगयहास-तोस-सोग-अरइरइ-भय-परितासा-निम्ममा निरहंकारा वासी तच्छणे वि अदुद्दा, चंदणाणुलेवणे वि अरत्ता, लेढुम्मि कंचणम्मि य समभावा, इलोगपरलोगअप्पडिबद्धा, जीवियमरणे निरवकंखा, कम्मट्ठगंठिनिग्घायणट्ठाए अब्भुट्टिया तेसि णं भगवंताणं बाहिरभंतरे अयमेयारूवे तवोविहाणे आहिज्जइ। अणसणमूणोयरिया वित्तीसंखेवणं रसच्चाओ। कायकिलेसो संलीणया य बज्झो तवो होइ ॥२६९०।। पायच्छित्तं विणओ वेयावच्चं तहेव सज्झाओ। झाणं उस्सग्गो वि य अभिंतरओ तवो होइ ।।२६९१।। तत्य अणसणे अणेगविहे। तं जहा--चउत्थभत्तिया, छट्ठभत्तिया, अटुमभत्तिया एवं दसमदुवालस (जाव) माससाइभत्तपरिहारिया। ओमोयरिया अणेगविहा पन्नता तं जहा--एक्कत्तीसकवलाहारा तीसकवलाहारा जाव एगसित्थाहारा । वित्तिसंखेवे अणेगविहे पन्नत्ते तं जहा--दवाभिग्गहचरिया खिताहिग्गहचरिया उक्खित्तचरिया निक्खित्तचरिया उक्खित्तनिक्खित्तचरिया निक्खित्तउक्खित्तचरिया वट्टिज्जमाणचरिया साहरिज्जमाणचरिया अंताहारचरिया पंताहारचरिया लूहाहारचरिया सुद्धेसणिया संखा दत्तिय त्ति। रसपरिच्चाए अणेगविहे पन्नते । तं जहा--निविगइया पणीयरसविवज्जिया आयंबिलियाए एवमाइया। कायकिलेसे अणेगविहे पन्नते। तं जहा-ठाणट्टियगा उक्कुडुयासणिया पडिमटाई नेसज्जिया वीरासणिया दंडाययगा लगडसाइणो अकंडुयगा अनिठूहगा धूयकेस-मंस-रोम-नहा सव्वगायपरिकम्मविप्पमुक्का एवमाइ । संलीणया अणेगविहा पन्नत्ता। तं जहा-मणसंलीणय। वइसंलीणया काय-संलीणया इच्चाइ । पायच्छित्तमवि आलोयणाइ अणेगविहं। तस्स वियाणगा कारगा य। विणओ वि माणसाइ अणेगविहो। तस्स वियाणगा आसेवगा य । बहुविहवेयावच्चरया वायणाइ-पंचविहसज्झायकरणुज्जुया, अदविहकम्मवणगणदहणपवण्णज्झाण वद्धरइणो, कम्मदारु-दारणकरवत्तकप्पकाउस्सग्गसंठिया, बारसविहतवनायगा सुसामण्णरया, अच्छिद्दपसिणवागरणा, रयणकरंडगसमाणा, कुत्तियावणभूया, बहुणं आयरिया, बहूणं उवज्झाया, वहूर्ण गिहिपव्वइयाणं आगासदीवा ताणं सरणंगइपइट्टा, सव्वभासाणुगामिणो परवाईहि अणोक्कंता, अन्नउत्थिएहि अणोद्वंसिज्जमाणा, चोदसपुग्विणो सव्वक्खरसन्निवाइणो अप्पेगे जंघाचारणा अप्पेगे विज्जाचारणा आमोसहाइविविहलद्धिसंपन्ना अजिणा जिणसंकासा जिणो विव अवितहं वागरेमाणा अन्ने एक्कारसंग अन्ने पुण केवलवरनाणं वियाणियतीयागागयवड्ढमाणसमत्थवत्थुवित्थरा, तत्थ तत्थ तहि तहिं देसे देसे गच्छाच्छिं गुम्मागुम्मि फड्डा फडि वायंता य पुच्छिता य परियद॒ता य अणुपेहिता य अक्खेवणीए विक्खेवणीए संवेयणीए निव्वेषगोए च उब्धिहाए कहाए धम्ममाइक्खता य, अपेगईया उड्डंजाण अहोसिरा ज्झाणकोटठोवगया संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा दिट्ठा साहुणो। तओ आणंदभरनिब्भराए दिट्ठीए मुणिवरे पलोयंतो हरिसवसुभिज्जमाणपुलयाए विणओणयाए गायलट्ठीए जेणेव जुगाइजिणवरो तेणेव संपत्तो भरहाहिवो। तिपयाहिणी काऊण विणयविहियकरयंजली पणमिऊण भगवओ पयपंकयं समुचियपएसे निसण्णो चक्कहरो। कया भगवया संसारनिव्वेयजणणीधम्मदेसणा। जहारिहं धम्मपडिवत्ति काऊण पडिगया लोया। भरहो वि भायरे पिच्छिऊण महया अधीए एवं चिति उमारो। कवण विलास जि वंधव धाडणि संपडिय। कज्जाकज्ज न-याणहिं भोगासा-नडिय ।। आ-संसारु अकित्ति मज्झ जगि वित्थरिय। दहहिं देह मग-मज्झि सहोयर संभरिय ।।२६९२।। सो च्चिय दिवसु कयत्थु पसत्था सा रयणि। जहिं दीसहि निय-नयहि भाउय अणु भइणि ।। सेसु विडाविडि-सत्थु अत्य-खायण-मणउ । विहडइ वसणि कुमित्त जेम्ब निग्विग-मणउ ।।२६९३।। लहइ लीह' (लोह) सव्वो वि सहोयर-परियरिउ । घरि बाहिरि वससवि संगरि अवयरिउ ।। जहिं घरि पुत्त-पपुत्त-बंधु न वि संचरहि । तहिं घरि पडण-भयाउल थंभ वि थरहरहि ।।२६९४।। १. फुड्डाफुडि पा० । २. दहिहिं पा० । ३. कयत्य पस० पा० । ४. दोसइहिं जे । ५. विडास. पा० । ६. लहा पा० । ७. लिह स० जे०। ८. यरय पा०। ६. चरिहिं पा० । १० हरिहिं पा० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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