Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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भरहबाहुबलिवण्णणं
एउ निसुणिवि भणइ भरहेसु
बहाव - मुह-कमलु, बंधुवग्गि हउं सव्वि मुक्कउं । अक्खंड छक्खंड लइ, खमह मज्झ जं तुज्झ चुक्कउ ॥ सेवि भिण, चक्का हिवह कणिट्ठ । केम वसिज्जइ तेत्थु घरि जेट्ट, वि जत्थ विणट्ट ।।२६३९ ।। रज्जु र वि कोस-भंडारु
बलवाहण सुहिसयण, अंतेउर- पुत्त-परियण । जा-जीव मइ वोसिरिय, भरह-पमुह नीसेस मंडल || थिरु थिउ संपइ मज्झ मणु, दंसणि नाणि चरित्ति । ताय भाय संसेवियइ, सिवपहि पुनि पवित्ति ।। २६४० ॥ सुक्क - सोणिय - कलमलाहारि
जं देहह मज्झठिउ, तं कहिं पि जइ होइ बाहिरि । बाहिर छवि जइ कह वि, होइ फिडिवि जीवाण अंतरि ॥ तो सुनहिं काहि जणु, जीवंतु वि खज्जंतु । लज्जिउ किन्न सरीरि तुहु, एहइ रागु करेंतु ।। २६४१ ।। दुक्ख - जलयरि नरयपायालि
संसार - सायरि भमिवि, चउरासी जोणि-लक्खिहिं । बहु- घंघण " घोलिणिहिं, मणुय- जम्मु पाविय असंखिहि ॥ तं विसयास हारिवि वि भमु म तहिं वि रउद्दि' । लोह -महा-भर- भारियउ, नंगरु जेम्व समुद्दि || २६४२ ।। एउ पणिवि धरइ सुह-मग्गि
मण-हत्थि नाणंकुसिण, रोसु जलणु खम-जलिण पसमिवि । आरूढ दुद्धरि नियमि, सदउ मेहु जिम्व पाउसागमि ॥ गय-गुरु-समरारंभ पहु, पसरिय - निम्मल- झाणु । ठिउ लंबाविय-कर-जुयलु, उदय-गिरिहिं जिम्व भाणु लद्ध - निच्छउ भरहु खामेवि
इसारिवि सोमजसु तासु रज्जि विणियंत मच्छरु । चउरंग-बल-परियरिउ, धरिय-छत्तु निवडंत चामरु विवविवर-रिहि पइसइ भारह- नाहु । चोइस रयणिहि परियरिउ, नव-निहि रिद्धि-सनाहु कम्म- मल्लह गरुप पडिमल्लु
( रासा वलय )
हमियत लिहि वसंतह लूय ज्झलझलइ । हेट्ठिम, भुवणन्भंतरि घम्भु पवित्थरइ देहद' - दहणोव पवणु कयत्थियउ । जहिं जणु कोइ न दीसइ पाएण सुत्थियउ कुंकुमराउ विराउ जणइ जहि जुयइ जणहं । न सरइ रमणु वि रमणिहिं थिरत्थोरत्थणहं 10 सेय- सित्तु सिंदूरु वि सीमंतइ गलइ । महिलायण - मुह मंडणू उन्हालउ हरड़ १. बाहुबलि जे० । २. जत्थ जे० । ३. विमंभणु तर्हि जे० । ७. हि जिर पा० । 5.
गुरु-माण-पव्वय सिहरि, चडिउ एउ नियमणि विचितइ । लहु भाय चिरपव्वइय, कबणु ताण पय-नमणु करिसइ || ता उत्पन्नइ नाणवरि, मई देवखेवउ ताउ । सम-गुगु समवडु सम सरिसु, नमिसु न एक्कु वि भाउ
।। २६४५।।
थक्कु
निच्चल-चित्त-उस्सग्गि
लंबाविध-कर- जुलु, धम्म-झाणि नियमणि झरंतउ । संवेढिउ वन-लएहि, विहगनीड निय- सिरि धरंतउ दब्भंकूर - विभिन्न तलु, पाय - विणिग्गय-रप्फु | लंब- कुच्चु मुणिवरु सहइ, न तरुवरु पच्चक्खु
गुरु-पयाविण भरहु भरहेण
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।।२६४३ ।।
२३७
॥
।। २६४४ ।।
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साहिति महि तविय, पुण वि सूरु तसु तवणि लग्गउ । सोसेइ सर-सरिय-जल, दहड़ देहु जण अंग-संगउ दुहव कर जिम्ब सूर-कर, लग्गा देहु दहति । दिट्ठा दिट्टि दुहावणा, अद्दिट्ठा सुह देंति ।। २६४७ ।।
॥२६४६ ॥
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।। २६४८ ।।
भायर जे० । ४. मुक्क जै० । ५. र्घवणघोलिणिहिं जे० । देहदण पा० । ६. रइ मरणु वि पा० । १. थिर थेरत्थ पा० ।
||
।। २६४९ ।।
६. हार वि
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