Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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भरहबाहुबलिवण्णणं
२२५
पंचविहायारधरे पयओ पणमामि सव्व आयरिए । सिद्धंतवायगे तह उज्झाए वंदिमो सिरसा ।।२५०९।। खंताइगुणजुयाणं असेसगुणरयणरोहणगिरीणं । गयगारवाण नमिमो धम्मसहायाण साहणं ॥२५१९।। हरि-करि-रह-नर-निवहा अणत्थदंडाय अत्थदंडा य । भंडारा कोद्वारा तिविहं तिविहेण वोसिरिया ॥२५११।। वोसिरियं सव्वं पि ह अट्ठारसपावठाणपडलं मे । नीसेसदव्वखित्ताइगोयरो तह य पडिबंधो ॥२५१२।। जं पियं इमं सरीरं इलैं कंतं पियं मणुम्नं पि । तं पि हु सिद्धसमक्खं वोसिरियं जावजीवाए ॥२५१३।। पडिवण्णाणसणविही खामिय नीसेसजंतुसंताणो । मज्झत्थो थिरचित्तो संवेगपरायणो धणियं ॥२५१४।। वरधम्मज्झाणरओ रुद्दट्टज्झाणवज्जिओ धीरो । गरहियनियदुच्चरिओ निरुद्धसविदियप्पसरो ॥२५१५।। संवेगबहुलयाए पंच वि परमेट्ठिणो सरेमाणो । मरणे वि अमूढमणो निदंतो निययदुच्चरियं ॥२५१६।। जलण-जालिहिं सीस-ताणेहि, सन्नाहिण जलियइण, जीव-मुक्कु चक्केण किज्जइ । बहुयाहं मेलावइण, एक्कु खयह अवसेण निज्जइ ।। वेढिवि' हुयबहु सिह-सएहिं, सक्कारिउ महि मुद्ध । खल-दुव्वयणिहिं सुयणु जिह, तिम्ब स वढिवि दद्ध ॥२५१७।। चइऊण मणुयबोंदि सुद्धज्झवसाण संगओ संतो । दिप्पंतकतिकलिओ देवो वेमाणिओ जाओ ॥२५८।। चक्क-पवहणु पवण-वेगेण, . नह-सायरि परिभमिवि, अनिलवेगु कह कह वि साहिवि । बहु-जक्ख-निज्जामएहि', विहिय-रक्खु घरि पत्तु धाइवि ॥ जिम्व घरि आयइ विज्जवरि, तूसइ आउर-लोउ । तिम्व चक्कि घरि आवियइ-भरहह हुयउ पमोउ ॥२५१९।। परम-पोरिस-कलिउ बहु-विज्जु, सुपयाउ तिहुयण-पयडु, पत्तु पासि महु कहवि मित्तह । वर-विणयह वर-गुणह, काइं किउं मइ तासु पत्तह ।। एव मुणिवि लज्जंतु रवि, नं विच्छाइउ ठाइ। संकोडेविण करपसरु, पुण अत्थमणह जाइ ।।२५२०।। ठइय-पहरणु मुक्क-भडवाउ, ओलंबिय -छत्त-धउ, सिविर-समुहुं बाहुबलि-साहण। अलिउलु वि कमलोयरिहिं, संकुडतु' परिखिन्न-वाहणु' ।। अवहत्थिय-निय-बाहु-बलु, बाहुबलिहिं वलु सव्वु । कुमर-दिवायर-अत्थमणि,जायउ वियलिय-गब्बु ॥२५२१।। अन्नमन्नह पच्छि लुक्कंतु पड-पाउय-मुह-कमलु, कुलवहु व्व महि-निहिय-लोयमु । मोण-ट्टिउ विमण-मणु, साम-वण्णु परिचत्त-भोयणु ॥२५२२॥ पिक्खिवि निय-बलु बाहुबलि, परिसंकिउ हियएण । सयलु वि बलु विच्छाय-मुहु,दीसइ कज्जई' केण ।।२५२३।। राय-लोउ वि सीहवारेण। हिट्टा-मुह ठइय-सिरु, कुलवह व्व कि एस दीसइ। दिन्नाइं पवरासणइं1०, परिहरेवि कि महिहिं बइसइ ।। वाहाविल-ओरुग्ण1-मुह, काइं अमंगल-वेस। मुक्काहरण निरुद्ध-गिर, टिय सामंत असेस ।।२५२४।। काई दीसइ एह पासेहि पसरंत-सासप्पवह, खंभि लग्गु कंपिर-अहो-सिरु । परिहरिय-वत्थाहरणु, मुक्क गेह-वावारु परियणु ।।
किउ आरत्तिउ मज्झ न वि, वोलिउ संझा-कालु । पय-कमलिहिं मंडंतु महि, घरि परिभमइ न बालु ।।२५२५।। १. वेढि उ हु० पा० । २. नहि पा० । ३. न ह पा० । ४. निक्खाम० पा० । ५. प्रावियई प० जे० । ६. चईय जे०। ७. उल्लंविय जे०। ८. सकुटुंत जे०। ९. वाणह जे०। १०. कज्जे के० जे० । ११. पवरसेणई जे०। १२. अोलन मु० पा० । वसु जे० ।।
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