Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 264
________________ भरहबाहुबलिवण्णणं २२३ । उप्पराहुत्तु' पुणु वि कय-करणु भडु धाइउ धीरमणु, चक्क-रयणु संचलिउ वेगिण । एहु जाइ नहि एहु गयउ, एहु भणंतु तसु लग्गुमग्गिण ।। भय-संभंतहं नहयरह, उद्ध-मुहाहं महंतु । लंघिवि वेगिण गयणयलु, रवि-मंडलि संपत्तु ॥२४८४।। भाणु-मंडलि ताम्व देवेहि किउ कलयलु को वि भडु, एहु एइ नासंतु चक्कह । तं सुणिवि मच्छर-भरिउ, चलिउ बाहुबलि सरिसु सक्कह ।। खग्गु लेवि तं आहणइ, चक्क-रयण-मुहचंदु । खग्गु वि लग्गु वि तेत्थु लहु, गउ घाएण' सय-खंडु ॥२४८५।। जं जि पहरणु कुमरु वाहेइ , आवट्टइ तं जि तर्हि, सहिइ जेम्व जू-वद्ध-लक्खइ । पुणु मुट्ठिहिं आहणइ, बाहु-जुद्धि लग्गेवि वग्गइ ।। जूयारेण व पजलिएण, पुणु पुणु मग्गंतेण । सहिउ व मुद्ध निरत्थ1 किउ, चक्कि लग्गंतेण ।।२४८६।। . ताव जक्खिहि जुद्ध-दक्खेहि परिवेढिउ लहु कुमरु, विहिय-भीम-गुरु-घोर-सद्दिहिं । हलवोल-मुहलिय-मुहेहि, मुक्क हक्क-पोक्कहिं रउद्दिहिं ।। कसिण-केस-भारिय-सरेहिं", मसि-सामल-देहेहिं । दारुण-रव-गज्जतेहि, पलइ नाइ मेहेहिं ।।२४८७।। जक्ख संहरि घाय-संधाउ, संधारिय-घोर-रिउ, घोर-घोसु नयरु पयंपइ । ऊरुउड्डिवि चंड-बलु, देव-दिन्नु पहरणह गज्जइ ।। देइ सुरहसो दिताहं, गरुया मुट्ठि-पहार । दिन्नइ दिज्जइ पडुएहि, लोइय संववहार ।।२४८८।। एक्क-कालिण सव्व जक्खाहं विज्जा-बलि गरुय-वलु, जणह जणह भडु समुह दीसइ । पडिसद्द, सुरपहरणह, निवडतह16 घोरु घुसइ ।। समुहितउ" भडु सुरगणह, कर-चंडउ न सुहाइ । सुन्न-हत्थु पविसंतु घरि, वेसा-लोयह नाइ ॥२४८९।। सहिवि निठुर-धाउ सीसेण ओअड्डिवि उरुयडि भडेण, उद्ध-वयणु रणि जक्खु पाडिउ । अन्निक्कु उच्छलिवि सिरि, गाढु विहिं वि पाएहि ताडिउ ।। खयरिण खरयरकत्तिरिए, आहउ कन्नि न भाइ । विबुह-मज्झि जिव अबुह तिम्व, जक्खु अगण्णउ ठाइ ।।२४९०।। जक्खु हत्थिण लेवि वामेण, केसेहिं दट्ठोट्ठ-उडु, दाहिणेण आहणइ मुट्ठिहिं । अवरेक्कह जण्हुइहि, उप्फिडेवि भडु चडइ पुट्ठिहिं ॥ जक्खह उप्परि पडिवि भडु, वावरंतु न वि ठाइ । कामुय जिम्व वेसायणह, बद्धमुट्ठि न सुहाइ ॥२४९१।। नियवि कुमरह घोर-चरियाई तो जक्ख संखुद्ध मणि, ओसरंति रणि रिउ अखंडिवि । जिह घंचिय खीण-तिल, ठंति दूरि तं चक्कु छंडिवि ।। निय सत्तिय तं चक्कु सुर, फुकिवि पज्जालिंति । दूरोसरिय वि पिसुण जिह, मुहिण सुयणु ताविति ॥२४९२।। चक्करयणह जाल-मालाहिं पज्जालिय-सयल-तणु, बालु तो वि मुट्ठिहिं पहरइ । जिह कणउ हुयवहि पडिउ, अग्गि-वन्नु तहं ताहि किज्जइ ।। बाहु-लोहिण निरु तिण्हएण, मुट्ठि व सुत्तिण्हेण । सुपुरिसु दुप्पुत्तेण जिह, संताविउ चक्केण ॥२४९३।। १. उप्परा मुहु पुण वि० पा० । २. वीरम ० पा० । ३. ०लिय वे० जे०। ४. एउ भ० जे० । ५. सु० चक्कह पा०। ६. विलिग्गि पा०। ७. घायण जे०। ८. ०रु थाहेइ जे०। ६. विवग्गइ जे० । १०. मुट्ठ नि० जे० ११. निरत्तु कि० जे० । १२. सिरिहिं पा० । १३. रिउ घो० पा० । १४. पजिहि जे० । १५. सुरहं सो जे० । १६. निवइंतह जे० । १७. समुहेतु भ० पा० ।। १८. उयरे विउ रयडि भडिण उठ्ठ जण्णु रणि० जे० । १६. छड्डिवि पा० । २०. सुहिण सुयणु ताविति पा० । २१. कणहूय० पा० । २२. तिण्णए० जे० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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