Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 270
________________ भरतबाहुबलिव णण २२९ कहिं चि भीसणारसंत-मत्त-दंति-दंत-लग्ग-गाढ-भिन्न-जोह-देह-छोलिरंत-माल-लग्ग--मंस-लुद्ध-घोर-जोगिणी-वमालयं ।। कहिं चि संचरंत-मत्त-हत्थि-पाय-पीढ-संदणोह-चक्क-पच्चलासपाय-निद्दलिज्जमाण-कायरारसंत-जोह-जाय-फारयं २५५६।। भरह-सेन्निण जलहि-सरिसेण-- सा से ग सुरसरिसरिस, भरु करेवि लाइय परम्मुह । पइवायहं सुबहु जिह, देइ पुट्टि न हु होइ संमुह ।। तो घोसिउ सुरगणिहिं नहि, बाहुबलिहि बलु सावु । भरह सुहड-कर-संगमिण, नामिउ नावइ चावु ॥२५५७।। भग्गु वेग्गु व वेग्गिणोहटुं-- तं गिरिनइ सलिलु जिह, जलहिलोल-कल्लोल-पेल्लिउ । भरहाहिव-पबल-बलि, बाहुबलिहिं बलु निरु गलत्थिउ ।। तावप्फालिय-चाव-करु, एक्कु परक्कम-सारु । थक्कउ तक्खसिलाहिवइ, अंगीकय-रण-भारु २५५८।। भुवणु धणु-गुण-रविण वहिरंतु गमु देइ धणु-बाण-करु, मयणु जेम्व दिदउ विलोयहं । जि जोइय छिक्क जिह, थक्क हक्क भयभीय जोहहं ।। . तेणायन्नायढ्डियउं, धणु मंडल-गुणु ठाइ । आयंबिर-नह-कर-भरिउ, नं रवि-बिंबु विहाइ ॥२५५९।। धणु-विणिग्गय-वाण-लग्गंत सोहंति समुहट्ठियहं,' भडह हत्थि मत्थइ उरत्थलि । हत्थिण कुंभत्थलिहि, धुरि रहाहं हय-तुंड-मंडलि ।। तेण खणेण असेसु बलु, पूरिउ सर-लक्खेहिं । नाइ सवक्किहि वेहएण, महिलाहिं मणु दुक्खेहिं ।२५६०॥ वर-तुरंगम-खर-खुरुखुन्न रह-चक्क-चमढण-चलिउ, सुहडहत्थि पाएहिं आहउ । सिरि चढिउ4 ताहिं जि रउ, अहव सहइ को गुरु-पराभउ ।। धूलुलिउ सयलु बल, नाइ तमंधि पइट्ट । निय-सुहडु वि परियाणियइ हक्कहिं सुठ्ठ गविट्ठ ॥२५६१॥ धूलि-मइलणु धय-गइंदाह तह बंस-मइलणु करइ, नारि नाइ कुलमग्ग-पेल्लिय । जिह नव-बहु निरु रएण, सेण सा वि तिह आउलीकय ।। भरहह सेण निसा-सरिस, रणि अंधारइ जाइ। हिय-इच्छिय मेलावाहं, सिंधव-पंसुलि नाइ ॥२५६२।। अतुल तेयह भुवण-पयडस्स कर-करिसिय13-बह-सरह, एग-रहिण रणि नहि भमंतह । को सूरह जिह समरि, समुह होइ बाहुबलि-रायह ॥ भंजिवि सिय-सर-धोरणिहि15, भरह-भडहं भडवाउ । बल रुधिवि थिउ बाहबलि, तिहयणि पयडउ-पयाउ ॥२५६३।। थक्कि पर-बल-माण-निम्मणि । बल-सालिणि बाहुबलि-वलु वलेवि पर-बलिण लग्गउं । पम्हुसिय-निय-पहु-सुकिउ, पुव्वकालि जं आसि भग्गउं ।। भीम-महाहव-धुर-धवल-तक्खसिला-पुरि-नाहु । आलोडइ पर-बल-जलहि, जलु जिम्व आइ-वराहु ।।२५६४।। निय सारहि हत्थि हिंडंति दीसंति रहवर-निवह, रहिय-रहिय रण-कज्ज-वज्जिय । रह-निय-हय अवरतहिं, भड भमंति गय-सत्थ लज्जिय ।। ठिय सर-मोडिय" करुरहिय, सारहि-निप्पुर18-सार । लक्ख-रहिय अंधलय जिह, रह हिंडंति अपार ॥२५६५।। १. णी समाउलयं पा० । २. मत्तमायंगपाय पा० । ३. भग्ग विग्गव विग्गिणो जे० । ४. ला धवलु अं० पा० 1५. धणुणगु० जे० । ६. गुणरविण दारं तु मोहेइ मणु० पा० ७. समुहट्टियहं पा० । ८. भरहहत्थि पा० । ६. नाइउवक्किहि वेहएण महिलह मणु० पा० ।१०. चमढण पा० । ११. चढिवि पा० । १२. तमंधु पा० । १३. करसिय पा० । १४. रण न० जे०। १५. सरधोर धोर० पा०। १६. सासिणि पा० । १७. सरसोडिय पा० । १८. निष्फुर पा० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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