Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 272
________________ भरतबहुलवणणं विजय- दुज्जय-जेय पडिवक्खु डोलाविय-जलहि-जलु, खडडत - निवडंत'- गिरि- सिरु | भरहेसरु मणि सरड़, पवण-सत्थु पूरिय नहंतरु ।। जे धुणिवि पत्तूरु जिह, सेल दिसोदिसि नेइ । रिउ - बल - मोहणु चक्कहरु, तामस सत्थु सरेइ ।। २५७७।। 1. धूय घुक्कहिं गरुय - सद्देण फेक्कारइहिं मह-सिवउ, अप्प - परह न विसेसु नज्जइ । एत्थं ति बाहुबलि, सूर-सूरु सूरत्थु सुमरइ ।। कम -कवलिय-तम-भरनियर, उज्जोइय-वंभंड | Maa - संख नहयल भमहि, तार-तेय मत्तं ।। २५७८ ।। पुण वि मेल्लइ फारफुंकार संरुद्ध जण-सवण- पह, फणि-समूह चक्कहरु रुदृउ । विणिवारइ बाहुबलि, गारुडेण सत्थेण तुदुउ || इक्कु मवइ उंधेण नरु, इक्कु न लीहई देइ । डमर डरिउ ' तिहुयणु सयलु, तल्लोविल्लि कोइ || २५७९ ।। दिव्व सत्यहि' वेवि जुज्झेवि भड - भिउडि भासुर-वयण, पय-पहार- पयलंत - महियल । अवरोप्पर जय-विजय बद्ध-लक्ख बंधव महाबल । निय - कुलि नहयलि उग्गमिय, धरिय- सियायव वेवि । समि-सूरह संगम - जणिय, थक्का भल्लिम लेवि ।। २५८० ।। २३१ ताव सुरवर-पणय-पय-कमल जो ससहर-कर-नियर सरिस - जसेण - दस - दिसि पयासइ । सो तेण भरहाहिवेण, रणि कणिट्ट आवितु दीसह || मय - जल- रहियहं सामलह, रिउ-मयगलहं घणाहं । मग्गिण लग्गउ पवणु जिह, नहि दुक्कालि घणाहं ।। २५८१ ॥ मउड बद्धहं सहस बत्तीस ता-सितु तोरविय-रह्तुरउ तरणि-सम-तेउ सु-पुरिसु । अरि सारहि कहि भरहु, महु कहेहि जंपंतु सहरिसु ॥ भरह-सरहं' गोयरि गयउ रण-रोमंचिय-गत्तु । एक्कु वि बाहुबलि सरिसु, पुन्निहि लब्भइ पुत्तु ।। २५८२ ।। काई किज्जइ बहुय - पुत्तेहि गय-पुनिहि वसणिएहि, दाण-माण ववसाय हीणहि । पुरिसत्थ-परिवज्जिएहि, पर मुहाणि पइ - दिणु नियंतिहि ।। हरिणि जणइ सई बहुय सुय, जम्मु-तट्ठिय जाइ । एक्केण वि सुमणोरही, सीहिणि कसु वि न भाइ ।। २५८३ । । एत्यंतरे भय-त-नट्ट - परियाणी एगागी दिट्ठो रयणाहिवो । बाहुबलिणा भणिओ यचक्क - मुक्कउं जेण हत्थेण जें चक्किण पुत्त बहु, विहिउ दो वि ते खंड-खंडिण । पिक्खंतह तिहुयणह, अज्जु करउं लोह-दंडिण || कवणु गव्वु चक्कह तणउ, जसु भुयदंड असार । पइ पर दीसहि10 चक्कहर, घंचिय अनु कुंभार ।। २५८४ | जे परक्कम -पाय- पब्भारि वरतरुवरि जेंव पइं, भरहनाहु अक्कंत नव-निहि । ते अज्ज उक्खणिवि हउं, जड़ न खिवमि निच्छइण दहदिहि || तो जुयाइ-नेयारह वि, लंधिवि आण अवस्सु । बंधव धाडिवि पडं जि जिह, पुत्तु वि हणउ अवस्सु ।। २५८५ ।। तओ मम्मवेहगं बाहुबलिवयणं सोऊण उद्धाइयामरिसो सानुकूलमिव पयंपिओ रयणाहिवो-नायराएण कय-पसाएहि नमि - विणमिहि वर-भडेहिं, ताय-पाय- बहु-भत्तिमंतिहि । विज्जाहर-राणएहि, विज्जाबलुम्मत्त - चित्तिहिं ॥ तेहि वि तक्खणि सेस जिह, सिरिण धरिय मह आण । जे विज्जाहरसेणि-पहू, खेयर पुरिस- पहाण ।। २५८६ ।। १. डंव्व नि० पा० । २. ७. डमरमरिड जे० । ८ Jain Education International फार हुंकार पा० । ३. डेण श्रत्थे जे० । ४. एक्कु जे० । ५. एक्कु जे० । ६. लीलहई पा० । सत्थिहि पा० । ६. रह मर पा० । १०. घरि घरि दी जे० । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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