Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 271
________________ २३० जुगाइजिणिदचरियं को वि तुरएण नट्ठ-त?ण कडयंतरि ठिय-चलणु, भूमि-पडिउ निज्जंतु पासइ। नरु अन्न भय-भीय-मणु, मुह-मुहाइं जोयंतु नासइ । नासहु नासहु ओसरहु, बाहुबलिहिं को मल्लु । तरलुत्ताल-पलोयणहं, भडहं पयट्टइ बोल्लु ॥२५६६॥ ताव मणिमय-मउड-किरणेहि उज्जोइय-धर-वलउ, भरह-नाहु बहु-भड-समन्निउ । उद्धाइउ सम्महउ, बाहुबलिहि बहु-भय-विवज्जिउ ।। ते मुह-कंदर-दढ -पवण-पूरिय-संखरउद्द । चाव-विणिग्गय-सर-नियर, बहु-बल नाइ समुद्द ।।२५६७।। दढ-पयंडय-सुंड-वेयंड-6 मयमत्त-गलगज्जिएण, अइ-भीसण-सीहनाएण । पम्मुक्क-लल्लक्क-बहु-वोक्क-हक्क-पुक्का-सहस्सिण ।। उत्तासिउ किर तेहिं पहु, सुठ्ठ पहिट्ठ-मणेहिं । दढ-मयगल-घड-दलणु जिह, पंचाणणु हरिणेहि ||२५६८।। ताव तिहुयण-नाह-जिण-जाउ आमुक्क-वर-सर-पसरु, सत्तु-मुक्क-बहु-बाण-पंतिउ । चित्ता-गउ सुक्कु जिह, धरइ गयणि बुदिउ पडंतिउ ।। निय-गरुयत्थ-महाबलिण, छिदइ खणिण निरुत्तु । वाण-निवहु जणि वित्थरिउ, रिणु जिह पुव्व-पवत्तु ।।२५६९।। के वि छिदइ रह-धुरा-लग्ग अन्निक्क आसन्न ठिय, अनि बाण 10 गयणग्गि पत्थिय । संधाण-द्विय कर-गहिय, अग्नि छिन्न तोणेहिं संठिय ।। वेगिण धणु कड्ढेतु पहु, संधितु वि न विहाइ। एक्कु वि लक्ख-सहस्स-तणु, भरइ भडह पडिहाइ ।।२५७०।। सत्तु-सत्थ1 वि जत्थ12 अत्थमइ जालोलि-पज्जालियड, जह पयंग संगरि हयासणि । तं तक्खसिल-सामिएण, जलण-सत्थ संभरिय निय-मणि ।। आयड्ढिवि धणु मुक्क लहु, जालावलिहिं जलंतु । धाविउ दुद्धरु देव-हवि, गयणंगणु मालितु ।।२५७१।। सयल-तिहुयण-कवलणासत्त पवणाहय-वित्थरिय-जलण-जाल-पच्चक्ख-मारिउ । विहडप्फड-गमणियउ, नहि भमंति सुर-खयर-नारिउ ॥ दिट्ठाओ वि असेसु सुह, जाउ पियस्स करिति । ताओ जलण-झलकियउ, दइयहं दुवखइं दिति ।।२५७२।। जलिय-पक्खर-सारि-वीहिं डझंति गयवर-घडउं, सुहड-कवय-सन्नाह जालिय । विहलंघलिहूय लहु, तह तुरंग-पल्लाण पलिविय ।। वाणोज्जालिय-रह-रहिय, सारहि विरसु रसंत। छत्त-चिंध-धय-खंभ-धय, महिहिं पडत वलंत ।।२५७३।। छिन्न छत्तय भग्ग गंडीव मु सुमरिय संनहण, थरहरंत महि पडिय धयवड । पज्जालिय-मउड भड, भग्ग लग्ग उम्मन्ग वेगिण ।। तेभड तक्खसिलाहिवह, जलण-सत्थ-संतत्त । धाइवि भरह-महद्द मह, पय-छायहि संपत्त ॥२५७४।। ताव वारुणि वारि-धारेण । वरिसंतु नालि सयलि, मयइ सत्थ छक्खंड-सामिउ। जि तक्खणि बाहुबलि-जलण-सत्थु पजलंतु झामिउ ।। रोसारण भरहा हिवइ, दायह देइ-पडिदाय । तो वि सुनंदा-नंदणह, मुहह भलेरी छाय ॥२५७५।। पुणु वि मेल्लइ दिव्व-सेलत्थु-- संरुद्ध-नह-पह-पसरु, सत्तु-सेन्न-संहार-कारणु । सोमाणणु सोमजस-जणउ, नियबहुमत्त-वारणु ।। रहवर गयवर वरतुरय, चुन्निज्जति अपार । पयवारिहिं पुणु घरिणि घरि, जइ जाणेसइ सार ।।२५७६।। १. घासह पा० । २. अच्चभय भी० पा० । ३. तिसुह कं० पा० । ४. दट्ट पवरपुरिय संखरउडचाव पा० । ५. वोव जे० । ६. डमुंडवे० पा० । ७. हिरिणेहिं जे० । ८, मुक्कु पा० । ६. अन्नक्कि पा० । १०. अन्नवा० जे०। ११. सत्तु सत्थु वि १२. जेहि अत्थ जे० । १३. संघरु हु० पा० । १४. वारिवारेण जे० । १५. कामिउ जे० । १६. देय दाय पडि० जे० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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