Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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२२८
जुगाइजिणिवचरियं
भणइ विणएण सामि निसुणेहि, भरहेसरु जं भणइ, लहुय भाय ! किं जुज्झ किज्जइ । पेक्खिवि मह मुह-कमल, घरठिएहि किं न रज्जु किज्जइ ।। मइ सुपसन्नइ सयल महि, होसइ तुह साहीण। होसिहि भड-सिरसेहरउ, जंपिसि कसु वि न दीण ॥२५४६।। ताव पभणइ तक्खसिल-नाहु दप्पुद्धर-कंधरिण, बंधुणा वि किल काइं किज्जइ। लहु-भाय-विच्छोय-करि, भरहि भाई मह लज्ज दिज्जइ ॥ भरहु न सज्जणु मणिधरलं, दुज्जणु भणण न जाइं। पहरणु मेल्लिवि भरह-मुहु, दूय म दिठ्ठ कयाइ ॥२५४७।। सिग्घ जायवि भणह निय-नाहु, एहु आवइ बाहुबलि, जेट्ठभाय तुह बल-परिक्खउ। मण भणसि जं छलि पडिउ, अज्जु हुज्ज तुहुं जुज्झ-सज्जउ॥ बहुकालु मई तुह सहिउ, संपइ एउ नियाणु । मुहु दक्खाइहि अप्पणउं, जइ तुरुं पुरिस-पहाणु ॥२५४८।। कहिउ दूएण भरह-नाहस्स जाएविणु चउ-गुणउं, चलिउ भरहु भय-भरिय-तिहुयणु। हिंसंत-साहण-निवहु, गुलुगुलेंत-बहु-मत्त-वारणु ॥ रहवर-रणझण-रसिय-मणु, वग्गिर-पत्ति-समूहु । थक्कु सिन्नु भरहाहिवह, विरइवि सागर-वृहु ।।२५४९।। इयरु विरइय-गरुड-संठाणु रोसारुण-भड-भरिउ, सत्तु-सेन्नु गुरु-बद्ध-मच्छरु । बल-मज्झि ट्ठिउ बाहुबलि, भणइ कोव-कंपंत-कंधरु ।। धम्म परत्त सुकित्ति जसु, पोरुसु पहु-सुकियाइं। रणमुहि चलइ चलताहं, नासइ नासंताहं ।।२५५०।। तिमिर-जालिण उदय-सेलत्यु संछाइउ दिवसयरु, रुहिर-वरिसु निवडंतु दीसइ । नाहि घोर-फेक्कार-रवु, सिव-सयाहं' पसरंतु सुच्चइ ।। ताव तूर-रव-बहिरियई-कलयल-मुहल-मुहाई । आयड्ढिय-धणु-मंडलइं, मिालयइं बेवि बलाई ॥२५५१॥ कणय-चक्केहि जोह-मुक्केहि उप्पाय-कालुट्ठिएहि, रवि-बिबेहि भरिउ नज्जइ । नहु दिणयर-करेहि जिह, सियसरेहि लहु आवरिज्जइ ।। अणियग्गिहि। लग्गंताइं, अग्गि-फुलिंग मुयंति। अवरुप्परु पहरण-सयइं, लग्गिवि पलयह जंति ।।२५५२।। भग्ग खग्गु वि अफरु फारक्कु को वि कोविण रिउ समुहु, मुट्ठि देवि छुरियहि पराइउ । अन्नेक्कु सर-छिन्न-गुणु, धणु धुणेवि धाणुक्कु धाइउ ।।
उरि घोलिर-हारावलिउ, अच्छरसउ पिच्छंति । नहि हरिसिय-मण पेय-गण, पहसिर निरु नच्चंति ।।२५५३।। एत्यंतरे विचित्तरूवं रणंगणं दीसिउं पयत्तं--
कहिं चि गईद-दंत-लग्ग-खग्ग-संग-भीसणुट्रियग्गि-जाल-पज्जलंत-जाण-नट्ठ-देव-सिद्ध-संघउच्छलंत-रोल-फारय।२५५४। कहिं चि चंड-कोहजोह-दिण्ण-मोग्गरप्पहारभिण्ण-हत्थिमत्थय उच्छलत-मोतियालि-मासलिज्जमाण-सुंदरच्छरा
पलंब-हारयं ।।२५५५।। १. किलर पा० । २.दिणु पा० । ३. परिरणु जे० । ४. सायरव्वहु पा० ।
इस पाठ के स्थान में पा. प्रति में यह पाठ मिलता है। ५. भो सुहडह दोवाहरिय जिम्ब रवि किरण पयंड । . तिम्ब ताविता सत्तु वलु पेच्छह मह भुयदंड ।।४१।। ६. नहि पा० । ७. सिवसुहाणं पा०।८. पसरंतु सुच्चइ पा० । ६. तूरय वर रहसिंयइ क जे० । १०. प्रावरिज्जइ पा० । ११. प्राणि यग्गिहिं जे०। १२. ताहं अजे० । पराईनो जे०।१३. धाईप्रोजे०।१४. पहरिस जे०। ।
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