Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
________________
२२२
अरिरि ! वालउ चडिउ मह सीसि,
अरि अंसि अरि वच्यलि अरिरि कडिहि अरि तिमि पर इउ । अरिधणुह कोडिहि चडिउ, अरिरि थक्कु सरपुंखि जाउ । अरिग' (अरि) गउ अरिरि गउ, मह मत्थइ पउ देवि । न वि तं चक्कु न मउडधर, जक्ख न दीसहि केवि ।। २४७२ ।।
जुगाइ दि
मुणिवि सामिहि चित्ति गुरु-खेड,
सो को परिभव-भरिउ, जक्ब सहस-कय- रक्ख भीसणु' । तं चक्कु चक्काहिवह, चडइ हत्थि पसरंत नीसणु' ।। तेउ तासु असहंत रणि, नयणई करिण व्यंति' । दुकलत्तह दुच्चरिउ जिम्व, भड हिट्ठा-मुह ठंति' ।। २४७३|| भरहु पभणइ मरहि रे डिंभ !
ओहट्टि लहु अग्गलिहि' मा अगालि' तुह मच्चु ढुक्कउ । निय जणणिहि पियसु थणु, दय 10 करेवि मई अज्जु मुक्कउ ॥ नासंतह को लज्जिसइ, मुज्झि म बुज्झि" यास । जाहि वलेविणु नियय-घरि जणणिहि पुज्जउ आस ।। २४७४ ।। पडिभणइ अनिलवेगो पहुं पमोत्तूण जे रणे नट्ठा। पम्हुसिय सामि सुकयाण ताण नरए वि न हु ठाणं ।। २४७५ ।। कोहंडी - तहिं विन ते समा जे जियंति जियलोए । लोएहि अंगुलीहि दंसिज्जता पलायंता ।। २४७६॥ वसणसरिया - निबडुं जे न वि तारेति सामियं सुहडा । तुंबी तणएणं वि कह णु ताण तुल्लत्तणं भणिमो || २४७७ ।।
अज्ज लज्जइ ताउ बाहुबलि
सचराचर-भुवण-गुरु, ताय ताउ तिहुयणि पसिद्धउ । रिसहेसरु सरय ससि - सरिस - कित्ति बहु-गुणसमिद्धउ " ।। अनिलवेगु जइ रणिटलइ, तो लज्जावइ सब्बु । हउं गरुय एहु लहुयडा, भरह म करिसइ 18 गव्वु ।। २४७८ ।। काई न दहइ गरुय गिरि-गुंज
लवु जलह पज्जलिउ, वाल-सूरु कि जगु न तावइ । एउ जाणिवि भरहवइ, करहि " अज्जु जं. तुज्झ भावइ 15 ।। किं किज्जइ वत्तणई, पुरिसह फुरणु पहाणु " | लहुयउ होइ किसोरडउ, 17 दलइ गइंदह माणु ।। २४७९ ।। तासु सम्मुहु तो सहस्सार,
आमुक्क भरहेसरिण, जलण-जाल- जालिय नहंगण । गरुयट्टहासुल्लसिय18, कहकहंतु धाइउ 12 भयंकरु ।। अणुराएण खयरंगणेहिं तो पयडिउ सभाउ । खेमु होउ घोसिउ गयणि, वालह" पडिहउ पाउ ।। २४८० || एंतु अभिमुहु नियवि वेगेण,
मणि, अनिलवेगु महु नाउं घूसइ । चक्केण जइ वि वेगि जिउ, तो जिउ ज्जि हउं जुज्झ कज्जि वि ॥ एम् भविणु पयडु भडु, नहयलि" नासण लग्गु । ईसि हसेविणु भरहवइ, भणइ सुहड किं भग्गु ॥२४८१ ॥ चलवि धीरिण 24 अनिलवेगेण
गाय धणु-गुणि, सरसमूहु संधेवि मुक्कउ । ति चक्कु चक्काहिवह, विद्धु सरेण एक्किण न चुक्कउ ॥ सरजालोलि-वमालियउं, चक्क रयणु न हि जाइ । कुमरु वि महियलि पुणु वि नहि, केलि करेंतु ठाइ ।। २४८२ ।। खुद्ध" कायर सूर मणि तुट्ट,
साणंद सुरसुंदरिहि, मुक्क कुसुम सिरि अनिलवेगह । विच्छायउ" भरह मुहु, मेहि" विबु जिव दिवस नाहह ॥ खलइ चलइ मत्थइ चढइ, रणि रोमंत्रिय देहु । वरिसइ सरधारेहिं कुमरु, जिम्व पाउसि नव-मेहु ।। २४८३ ।।
१ असि व० जे० । २. सुणि वि० पा० । ३. भीसण जे० । ४. ण वयंति जे० । ५. दुकलत्तजिह जे० । ६. दुच्चरिएहि पा० । ७. मुहद्धति पा० । ८. लिहि जे० । प्रगालि पा० । १०. दइ क पा० । ११. मुज्झि जे० । १२. तिहुपणि पसिद्धउ पा० । १३. करिहिहि पा० । १४. करिहि पा० । १५. रुच्चइ पा० । १६. पमाणु पा० । १७. यज केसरिवड्डाह दल० जे० । १८. हासल्लसियउ कह पा० । १६. तु थाइउ पा० । २०. बालहि पा० । २१. एवमणि जे० । २२. डु नह० पा० । २३. नासइ ल० पा० । २४. वि चीरेण श्रनि० जे० । २५. धेवि विमु० जे० । २६. गुट्टु का० पा० । २७. यहु भ० जे० । २८. मेहि विवु जि० जे० । २६. पाउलि नव पा० ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322