Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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२२०
जुगाइजिणिदचरियं
सुणिवि वालह भरहु दुव्वयणु,
बलवंतु वि दुम्मणउ, साम- वयणु सहसति जायउ। सातह मह भरहु, कहिं वि ठाइ परिभउ न आयउ ।।
वाल-पराभव-हित्थ-मणु, दसदिसि जोयण लग्गु। कुमरु वि भरहेसर रहह, थक्कउ रुधिवि मग्गु ।।२४५३।। एक्क-पक्खइ कुमरु जिय-समरु
अण्णत्थ निज्जिय-भरहु, भरहु थक्कु सन्नद्ध-रहवरु। सुर-सिद्ध-विज्जाहरिहिं, भरिउ गयणु तक्खणि निरंतरु॥
सुर-सुंदरि-वियसिय-नयण,कुसुम-समच्चिय-देहु। ढुक्कु कुमरु भरहाहिवह, समर-सिरिहि कुल-गेहु ॥२४५४।। भरहु पभणइ निसुणि रे डिंभ !
असमंजसू ज भणहि, वाल भणिवि तं तह खमिज्जइ। सुणि संपइ अप्पहिउ, साबहाण जं मई कहिज्जइ ।। मह भुयदंडिहिं मन मरिहि, अनि जितुह भज्जति । जिम्ब खज्जहिं वालय चणय, मिरियन तिव खजति ।।२४५५।। ईसि पहिसिवि अनिलवेगेण दप्पुद्धर-कंधरिण, भणिउ भरहु मन मरणि भायह । हउं विस्स-विस्सुय-जसह, पयडु पुत्तु बाहुबलि-तायह ॥ तायह कारोण तुह कारण, जइ महु वच्चाह पाण। ता उप्पज्जवि मणुय-भवि, काइन लद्धउ* जाण ।।२४५६।। भरहु पभणइ खुटू तुह कालु रे वाल! अविनय-भरिय, सव्वु कालु को तुज्झ सहिसइ । मइ सत्थि हत्थिण लियई, कवणु तुम्ह रण-मज्झि रहिसइ ।।
तायह मायह सुमरि तुहूं, मरहि निरुत्तउ अज्जु । अहवा मह पाएहिं पडहि, जइ जीवेवई कज्जु ॥२४५७।। वालु वोल्लइ समर-सोडीरु
कर-संपुडि सिर धरिवि, कवणुतुम्हि दुविणउ मनिउं । रण-कालि रणरंगियउ, हणइ भणइ कडुयं (न)खत्तिउ ।। तायह मायह सा सरह, जा मरणह बाहइ । रणि मग्गंतह सई मरणु, कालु वि काई करेइ ॥२४५८।। नाहि-कुलगरु-गब्भ-सभूय, भुवणेसर-तणय सुणि, तुज्झ भुयणि जइ-ढक्क बज्जइ । भड-बोल्लु बोल्लितु नरु, अन्नु सब्बु तुह पुरउ लज्जइ ।। तो वि सरासणु करि करिवि, मइ परियाणि मणाउं। जइ पइं लक्खु वि लद्ध पहु, तो मई मुक्कउं थाउं ।।२४५९।। भुवण-भूसणु लोयणाणंदु, जिह ताउ तिह तुहं वि मह, सामिसाल गुरुयण गणडुढउ' । गुरु-अविनउ जो करइ, तेण होइ अप्पाणु दड्ढउ॥ पेक्खि पसाउ करेवि पहु, डिभई पहरंताई। छड्डि न ताई चिराणाई, जुज्झइं जाइं गयाइं ॥२४६०।। ताव पुच्छिउ भरहनाहेण, निहिवालु को एस भउ, अनिलवेगु निय-नामु जंपइ । महु सव्व-बलु परिभविवि,गयउ गयणि घणु जेम्व गज्जइ।। धवल-फुल्ल-मालाहरिउ, चंदण-धवलु विहाइ। महियलु भरिवि पुणुव्वरिउ, बाहुबलिहि जसु नाइ ॥२४६१।। भरहनाहह चलण भत्तेण, निहिवालिण कलि-मणिण, सयणु बोल्ल मेल्लेवि बोल्लिउ । पल्हावि खेयरतणउ, जेण सेन्नु तुह सच्चु पेल्लिउ । एक्कल्लई एक्किण रहिण, जोहिय जोह अजोह। हेलइ हय-हिंसंतयह, संदण दलिय अखोह ॥२४६२।। जेण निज्जिय भग्ग संगामि, अलि-मुहल-गंडत्थलह, चउरासी लक्ख हथिहि । जि लीलई मउलियउ, मउडबद्ध बत्तीस-सहसहं ।। साहण जिणिवि असेसु तुह, गुरु-पोरिस-पब्भारु । पाविउ मणि जिम्ब परम-पउ, अवहत्थिय-संसारु ॥२४६३।।
१. सामवन्नु स० पा० । २. म० भममच्चि० जे० । अनि जि० जे० । ३. चणा मि० पा० । ४. लद्धांजा० पा० । ५. ण लियई जे. ६. नाहि पंकय गब्भ पा०। ७. णु दूढ पा० । ८. विउ सुणि जे० ।
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