Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 260
________________ भरतबाहुबलिवण्णणं २१९ निरु पयट्टइ समर-संघट्टि, भज्जति गयवर-नियरि, रहिय-रहिय-लद्वृति संदणि । मुण्णासणि हयनिवहि, तरल-नयणि नरनाह-नंदणि ।। घणडंबरु गय-साहणिउ, मेहु जेम्व गज्जंतु। मेह-नाइ गयवरि चडिवि, सर-धारिहिं वरिसंतु ॥२४४२।। हुक्कु कुमुरह करिवि सन्नाहु, . जंपंतु अइ निठुरइं, अज्ज वाल तुह कालु कुद्धउ। नामंतु न वि छुट्टिहिसि, मेहनाई जं मग्गु रुद्धउ ॥ चिरु विलसिउतइंसमर-सिरि, उक्खय-नर-सिर-नाल । घणडंबरु' भड पिडि पडिउ, मरहि निरुत्तउं वाल ॥२४४ सोमवंसह तिलउ महु जणउ जय-पायडु बाहुबलि, (बाहु) बलिण जि जगु वि जित्तउ । गुरु रिसहु रिउ भरहवइ, जेण जिणवि छक्खंडु भुत्तउ ॥ पियरु पियामहु पित्तियउ, ते कारणु हउं कज्जु । जइ नासउं रण-सिरि चडिवि तिन्नि वि लज्जिहिं अज्जु ॥२४४४।। एउ निसुणिवि धुणवि धय-चिंध, सवडम्मुह गयवरह, किलिकिलेंतु वेयालु धाविउ । सारत्थिण कुमर-रहु, गयवरस्स पक्खइ भमाविउ ॥ कुमरु वि जिव जिव उक्खणइ1, तिव तिव विधइ पाय। छिन्न-मूलु जिह तरु पडइ, करि मेल्लवि मज्जाय ।।२४४५॥ कुमरु हक्किवि भणइ भय-रहिउ, वामेयर-कर-गहिय18-फलय-खग्ग अरि मेहडंबर। लज्जावि मन भरहवइ, सरहि सत्थ बहु-वाय डंबर ।।. वे अक्खर ते बोल्लियहि, जे निव्वाहण जंति। अब्वग्गल नर वोल्लणा, चप्फलिहुंति न भंति ॥२४४६।। तो कुमार वि मेहडंबरिण अच्छोडिउ मोग्गरिण, ठिउ अलक्ख मीलंत-अच्छिउ । घुमंतू देहावयव, जणणिए व मुच्छइ पडिच्छिउ ।। हरिस-विसंठुलु भरहवलु, महि-मंडलि वि न माइ । घणडंबरु घण-मेहु जिह, धडहडंतु न वि थाइ ।।२४४७।। लद्ध-चेयणु सीह जिह तुरिउ, उठेवि धरणीयलह, दंत-दंतु उक्खणिवि वेगिण । अच्छोडइ तेण लहु, अनिलवेगु सिर गरुय-रोसिण ।। करि-साहणु हल्लोहलिउ, अडु-वियड्डु भमेइ। अहवा सामि-विवज्जियह, को साहारु करेइ ।।२४४८॥ मेहडंबरु कुमर-घाएण, घुम्मंत-लोयण-जुयलु, पडिउ महिहिं पढुलंत-कंधरु। संजाउ चक्काहिवइ, राहु-गहिउ जिम्व पव्वि ससहरु ।। कुमर-घाय-जज्जरिय-तणु, निय-पहु-कज्जह चुक्कु। चक्काहिवु करि उप्परिउ, तक्खणि पाणेहिं मुक्कु ॥२४४९।। मेहडंबरि अनिलवेगेण विहडाविइ गयणयले, खयर-जक्ख-गंधब्व-सिद्धिहिं । कुसुमंजलि कूमर-सिरि, मुक्क हरिस-वियसंत-नेत्तिहि ॥ लद्ध-जओ वि न उल्लसइ, मण-मयरहरु कुमारि। अह्वा वसणसवि सरिस, पुरिसु तुच्छियनारि ॥२४५०॥ एत्थ अवसरि भणिउ भरहेण __ अरि! सारहि रह-रयणु, तोरवेहि लहु भाय-अभिमुहु । एउ निसुणिविणु पिउ पुरउ, भणइ कुमरु चक्कहर-सम्मुहु । भरहेसर तायह तणउ, तणउ म लंघिउ जाहि । अनिलवेगु जइ तइं18 सुयउ, ता तसु सम्मुहि 1 ठाहिं ॥२४५१॥ जासु संकइ सग्गि सक्को वि, पायालि पुण भयभरिउ, नागराउ सासंकु लट्टइ। सो सुहडु तक्खणि मरइ, तेण सरिसु जो समरि वट्टइ। तुहु पर नामिण भरहवइ, कम्मिण पुण मह ताउ। ता ति सह जुज्झंताह, मइलिज्जइ मुह-राउ ॥२४५२॥ १. पइट्ट० पा० । २. लटुंति जे० । ३. दुक्कु जे०। ४. जंतु जे०। ५. सिउ त० जे०। ६. समरि सरि जे० । ७. भंडि पि० जे०। ८. धणि वि० जे०। . भमाविउ जे०। १०. अोखणइ जे०। ११. मिल्लि जे०। १२. वा मोयक्खर जे०। १३. गहिउ हु० पा० १४. हु पायं० जे०। १५. न संति जे०। १६. णु थिउ जे० पा० । १७. लंधिवि जाल जे० । १८. जइति सु० जे० । १९. म्मुह ठाहि जे० । २०. पर ना० जे०।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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