Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 259
________________ २१८ एत्यंतरे धयवडग्गलग्गेण महावेयालेण सारत्थ' सारहिणा य कि काउमाढत्तं । भइ रक्खसु रहह पासेहि, रिउ-मुक्क-पहरण- निवहु, धुणवि धाइ चिधग्गि लग्गइ। पुणमत्त-मयगल घडउ, भेसयंतु हरि जेंव वग्गइ || मोडिय - मुह कय रक्खसिण, समुहंता सय-वार सर गय महीयलि निप्फला, खलिकय जिह उवयार ।। २४३५ ।। रहु पयावs चक्कु जिह भमइ भामंतु दिट्ठी पसरु, दिट्ठ- हिट्ठ- सुर-नर-समूहिण । निय' - पाय - हरि - खुर खएण, संछाइओ रेणु-निवर्हण || जो जो जोइ हु' जि तहुं, हत्थत्थिय तुह थाइ । रहु सम्मुहउ निसागमणि, वेसा जणवउ नाइ ।। २४३६ ।। एयाव-सरे वर-विज्जाहरी - कुच्छि संभवेण महिमंडलेक्कवीरेण अनिलवेग-कुमारेण रिउबले परिउमादत्तं ॥ सुहड सुहडइ हणइ हय-थट्ट, दोघट्ट कड्ढइ सगुड, रह-समूह भुय-बलिण भंजइ । आलोडवि' वइरि-वलु, एगरहिण तं सयलु गंजइ ॥ अनिलवेगु जिम्व अनिलु तिम्व, वलइ वलइ नहि जाइ। पुंख" हरइ सिरि भड-कडिहि, "जहिं भावइ तर्हि ठाइ ।। २४३७ ।। सो पसु वि नत्थि खंधारि । जो कुमरि 14 न वि संचरिउ, पवल-रोलु संकुलु भमंतिण" । नीसेस तिलोक्क जिह, हय-जिएण हुंतिण" मरंतिण || रण - सायरि एक्किण रहिण, भडिसंकड पहरंतु । अनिलवेगु कर सिर दलइ, दंतंतरि पउ देतु ।। २४३८ ।। छिन सुंडिहि लुत्त-कन्नेहि सर- भिन्न- कुंभत्थलिहि, खंडखंडिकय - पुच्छ - पायहि" । निवडंत - वर - वारुणिहिं, 20 सारवट्ट - पवडंत सुहाडिहि ॥ रणधर दुरसंचार किय, अनिलवेग-कुमरेण । धवलिउ निय- कुलु 22 सिय-जसिण, बाहुबलिहि तणएण || २४३९ ।। रुणरुणितहि भमर - नियरेहि परिसेविय - गंडयल - पय-पडह - परिवु सुणेपिणु । गुरु-मच्छर-भर- भरिय उद्ध-मत्त करि करु करि अप्पणा परोप्पर, 22 जुज्झिवि भंगह जंति । कलहिज्जंता घरिकलह, सुंदर कसु सूल-भल्लय- सेल्ल-वावल्ल, संभिन्न उच्छल्ल-तणु - गलिय पबल रुहिरंत्र - पोट्टल " । आसेह" नायग सुहड, पडिय पडिय कर - सत्थ- मंडल || अनिलवेग- 2 पंचाणणह, गय- घड भय-संभंत । अवगणिय अंकुस सयल, ओ दीसहि, नासंत ।। २४४१ ।। १८. पाटन की प्रति में इस दोहे के स्थान में यह दोहा मिलता है ६. निउपा० पा० । ७. तसु जितुहुं जे० 5 जे० । १२. कडिहि जे० । १३. तहि चाइ जे० । जे० । १७. होंते ण पा० । १. सारेंछ जे० । सारच्छ पा० । २. भोमइ जे० । ३. धुणविधाइ जे० । ४. पुण मत्ता म० जे० । ५. सहेंता जे० । धाइ पा० । ६. आरोड वि पा० । १० इ महि जे० । ११. पंख १४. जो कुमरि न वि पा० । १५. संचलिउ पा० । १६. भवंतिण १९. पाएहि जे० । २० जि जु० जुगाइ जिणिदर्चारय एंतु न दीसइ जं तु न वि, वेरिउ वेरि-बलेहि । हि सकम्म परिणाम तिह, पायडु होइ फलेहि ॥ २७. भरहसेन्नु हल्लोहलि उपसरिय रुहिर पवाह । हय गय रहबर सुहड थडरणि संचरहिं अनाह ।। ६२ ।। पा० Jain Education International वारिणि जे० । २१. निय कलुसिय जसिण पा० । २२. मत्तु करु करि० जे० । २३ प्परुहूं पा० । २४. कह वि पा० । २५. पोडल जे० । २६. प्रारोह जे० पा० । करेप्पिणु ॥ विन हुति ।। २४४० ।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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