Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिरिसहसामिवण्णणं
वणे उज्जाणे जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता सुदंसणाओ सीयाओ पच्चोरुहइ पच्चोरुहित्ता असोगवरपायवस्स हेदुओ विसुज्जमाणपरिणामो 'जं एस काही अम्हे वि तं तहा काहामो' त्ति चितिऊण सामिसालारागेण कच्छ - महाकच्छपमुहाणं उग्गाणं भोगाणं राइण्णाणं च खत्तियाणं च चउहि सहस्सेहि सहिओ सक्कविदिन्नं एगं देवदूतमादाय छट्टणं भत्तेणं अपाणएणं आसाढाहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं सयमेव चउमुट्ठियं लोयं करेइ । केसा सक्केण नियवासद्धं तेण पडिच्छिया खीरोदहिम्मि, छूढा । पंचममुट्ठियं पुण गिण्हंतो सुसद्धि-कसिणमसिण - कुंतल जडाओ कणयकंति-कमणीय-अंसत्थल लुलंतरेहिराओ दट्ठूण सक्केण वारिओ । तेण भगवओ चउमुट्ठिओ लोओ । सेसाण पुण तित्थयराण पंचमट्टियो । ताहे भगवं सिद्धाण नमोक्कारं काऊण सक्कविणिवारियल वोलाए देवासुरनराणेगसयस हस्ससंवाहाए महइ महालियाए परिसाए मज्झ गओ सव्वं मे पावं अकरणिज्जं ति महापइन्नं पडिवज्जइ
युगादिसद्धर्म्म धुरंधराय संसारिणां निर्वृतिकारणाय । चराचरत्रातजगत्त्रयाय नमोस्तु तुभ्यं जगदादियोगिने || एवं कयजिणसंथवा सुरासुरा नंदीसरं गया । तत्थ य सासयजिणिदपडिमाण अट्ठाहियं महामहिमं* काऊण जहागयं पडिगया |
इय वद्धमाणसूरीहि विरइयरिसहनाहचरियम्मि । सचराचरजीवहिओ दिक्खाहिगारो परिसमत्तो ॥
रिसहसामिस्स केवलनाणं
संपइ संसारसमुद्दतरणतरकंडविब्भमो तुरिओ' । भण्णइ अहिगारो जिनकेवलकल्लाणपडिबद्धो । पक्खे' व समवगूढं संजमसिरि तवसिरीहि सयराहं । रागेण' विणीयसिरीओ सरिया जिणसगासाओ ।। ११९१ ।। दट्ठूण दयादइयं अणवरयं जिणमणम्मि निवसती । हिंसा विवक्खपडिवत दुक्खिया पवसिया दूरं ।। ११९२॥ चिरकालविओगानलतवियं तणूतिहुयणे विन हुमाइ । अणुरूवपिययमावत्ति सुत्थिया विरइ वरविलया ।। ११९३ ।। दिखासमए समयं लद्धावसरेण धम्मराएण । सेवेह जणा धम्मं ति दाविउ तिहुयणे पडहो ।। ११९४ ।। सो को विमिहाणंदो संजाओ तिहुयणे वि जीवाण । जो कहिउं पि न तीरइ निक्खमणे रिसहनाहस्स ।। ११९५ ।। चवणं पमोयजणयं जम्मो पुण जणियतिहुयणाणंदो । निक्खमणं छणभूयं सचराचरजीवलोगस्स ।।११९६ ।। अहवा सव्वा चेट्ठा महाणुभावाण पुण्ण पुरिसाण । जायइ कल्लाणकरी जियाण बहुदुक्खतवियाण ।। ११९७ ।।
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तत्थ णं तओ भयवं भरहाइए पहाणपुरिसे मरुदेविसामिणी पमुहइत्थियायणं च मियमहुरक्खरेहि संठवेऊण कच्छमहाकच्छा व चउसमणसहस्समहिओ आकेवलं गहियमोणव्वओ महीमंडलं विहरिउमारखो । पारणगदियहे भिक्खट्टा पविट्टे, भिक्खं न लहइ । भिक्खयरपयारो अज्ज वि न पयट्टइत्ति काउं गोयरचरियाए घरंगणसमागयं दट्ठूण रज्जेणं रट्ठेणं हिरन्नेणं सुवन्नेणं वत्थेणं आभरणेहिं य कन्नयाहियजणो निमंतेइ निरुवओगि त्ति काऊण भयवं न गिहइ । एवं च पइदिणं परियडंतो अयाणुयजणाओ असणाइयमलहंतो खुहाइए बावीसं परीस हे सम्ममहियासितो अवि चलियमणो महासत्तो निरसणो चेव नाणाविहदेसेसु विहरिउमारद्धो । तओ ते चउरो समणसहस्सा मोणव्वयसंठियाओ भगवयाओ उवएसमलभंता पढमपरीसहपीडिया कच्छमहाकच्छे पुच्छिउमा रद्धा -- " संपयमणाहाणमम्हाण तुम्भे नाहा केवइयं कालमम्हेसि छुहापरीसहपरिगएहिं अच्छियव्वं ? " ति । तेहिं भणियं -- "अम्हे वि न याणामो जइ पढममेव भगवं पुच्छिउ होतो अम्हेहि किं काव्वं' तिता लट्ठयं होतं " संपयं पुण एयं चेव संग्रहं भरहलज्जाए पुणो य नगरं गंतुं न तीरइ । आहारमंतरेण य अच्छिउं न सक्का अओ वणवासो ण संगओ' त्ति मंतिऊण गंगं महानई पर पत्थिया ।
१ सव्वे मे जे० । २ हियं महिमं पा० ।
३ तइओ पा० ४ जिणदिक्खा के० पा० । ५ पेक्खे जे० । ६ गेण व रायसि ० जे० । ७ पविसिया जे० ।
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