Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 178
________________ सिरिरिसहसामि वण्णणं १३७ ओ तेण भगवया लोगहियद्वाए चउव्विहो रायसंगहो कओ । तं जहा उग्गा भोगा- राइन्ना खत्तिया । जेसि उग्गा दंडनी ते उग्गा आरक्खियपुरिसा । भोगा नाम जे पिइत्थाणीया अच्चतमाणणिज्जा सामिस्स ।। राइन्ना जे सामिणो समावया । अवसेसा सव्वे खत्तिया । तेसि लोयाण वोच्छिन्नेसु कप्पपायवेसु पढमं कंदाई आहारो आसि, पच्छा तम्मि अजीते ते उसहं उवट्ठायंति भांति य - " - "जहा अम्ह न जीरइ ।" ताहे सामी भणइ - " हत्थेहि मलित्ता बाहिरियं छल्लि अवत्ति आहारह । ते वि तहेव काउमारद्धा । कढिणत्तणओ ओसहीणं एवं पि अजीरंतगा । पुणो वि सामी उवट्टिया । भगवया भणियं - " हत्थेहिं घंसित्ता पवालपुडएसु पाणिएण तीमित्ता खणमित्तं धरित्ता पच्छा खायह।" जाहे तह वि न जीरति ताहे पुणो वि भगवंतं पुच्छंति । भगवया भणियं -- “ पुथुत्तं सव्वं करिता मुट्ठीए काऊण आयवं कक्वंतरेसु गिण्हावित्ता पच्छा आहारेह ।” केण कारणेण भयवं अग्गी न उपाएइ ? सामी जाणइ-जया एगंतनिद्धो कालो हवइ तथा अग्गी न उट्ठेइ, एगंत रुक्खेणं' विन, उट्ठइ जया वेमायाए निद्धलुक्खो भवइ तथा अग्गी उठेड । तेण सामी अरिंग न उट्टावेइ । इओ य कालसहावेण रुक्ख संघंसेण अग्गी उट्ठाइओ, ताहे सो अग्गी भूमि पत्तो, जाणि तत्थ सुक्क-तण-पत्तक - कवराणि ताणि दहिउमारद्धो, ताहे ते मणुया तं अच्चब्भुयं दट्ठूण तओ हुत्ता पहाविया । ताहे इमाणि रयणाणि त्ति ते ताणि गिहिउमारद्धा जाहे दज्ज्ञंति ताहे पच्छाहुत्ता सरंति भयभीया समाणा आगंतूण उसभसामिस्स सार्हेति । उसो भइ-पासेसु विलग्गिऊण इमस्स परिपेरतेसु तण-कट्टाइयं सव्वं फेडेह । तेहि वि तहेव कयं । उवसंतो अग्गी । सो अग्गी भगवओ उवएसेण तेहि गहिओ । भगवया भणियं -- "पागं करेह । ते न जाणंति किह पागो की रइ ? तओ ओसहीओ अग्गमि छुति, अग्गी वि डहइ । तओ ते पुणो वि उसहं उवट्टिया । भांति -- " सो सव्वं अपणा खाइ' न अम्हं किंपि देइ । भगवं भण-मट्टिया पिडं आणेह । ते गया। भगवंधि गयवरारुढो नगराओ नीइ । एत्थंतरे तेहि मट्टिया पिंडो उवणीओ । ताहे भगवया कुंभ-कुंभत्थले काऊण दरिसियं पत्तयं । भणिया य एयारिसाणि काऊण एएसु ओसहीओ छोढूण पयह । तेहि वि तव कथं । पच्छाकुसला कालेण सुंदरतरगाणि काऊण अग्गिम्मि पइऊण तेसु पागं काउमारद्धा । एवं ताव पढमं कुंभकारा उत्पन्ना । तओ सिप्पाणि उपपन्नाणि । वत्थदायग कप्परुक्खेसु परिहाणि गएसु कुविदा उप्पाईया । गेहागा रेसु कप्परुवखेसु पणट्ठेसु ताहे वड्ढइ उप्पाइया । पच्छा रोम-नहेसु वड्ढतेसु कासवा उप्पाइया । चित्तगारेसु कप्पमहीरुहेसु पउत्थेसु चित्तगरा उपाइया । कुंभकार - कुविदं वड्ढइ - कासव चित्तगरलक्खणाणि पंचमूलसिप्पाणि । एक्केक्कस्स य वीस वीसं भेया । संपिडियं सिप्पस । एवं ताण सिप्पाण उप्पत्ती जाया । तओ कम्माणि किसि-वाणिज्ज-तणहार-कट्ठहारगाईणि तेसिं उप्पत्ती कया तत्थ" साचार्यकं शिल्पं अनाचार्यकं कर्म" कालदोसेण ममत्ति भावो जाओ । मह माया पिया-भारिया- ' भगिणी - आरामुज्जाण काणणाईणि एवं लक्खणो । जं चेव रज्जाभिसेयसमए सामीसक्केण विभूसिज्जतो दिट्ठो तप्प भई लोगो व अपयं विभूसिउमारद्धो । जप्पभिई भगवया बंभीए दाहिणत्थेण लेहविही दाईओ, सुंदरीए वामहत्थेण गणियविहि । भरहस् य चित्तकम्मं उवइट्ठ । बाहुबलिणो य इत्थि पुरिसाइलक्खणं माणं, उम्माणं, ओमाणं पडिमाणं तप्पभिई लोए वि पवत्तं । पवहणाणि तथा उप्पण्णाणि कालदोसेण अवलविउमारद्धेसु जणेसु ववहारो । भगवया उप्पाइओ ईसत्थं, उपाईयं ईसरसेवा वितओ चेव लोगो काउमारद्धो । तिमिच्छा वि तया पयट्टा पढमं रोगा नासी, अत्थसत्थं कोडिल्लयमाईयं तथा उपपन्नं । बंधो घाओ, मारणा य अवराहीणं अवराहाणुसारेण । त पढमं पयट्टाणि नागाईणं महूसवा तथा पयट्टा । समवायं काऊण गोट्ठीकरणं पितया चेव पयट्टं । पुव्वं भट्टारगस्स विवाहसमए सक्केण कोउगाणि भूइकम्माणि रक्खाओ य कथाओ । तओ लोगो विताए चेव अणुगिइए काउमारद्धो । सावगा निययावच्चाणि अकयवीवाहाणि पुव्वमेव साहूणमुवणिति सव्वविरहं गिरहंतु सावगाणि वा हवंतु त्ति काउं विवाहो वि पढमं सक्केण भगवओ कओ भई लोगो विपयट्टों । मरुदेवी पढमसिद्धो त्ति काऊण देवेहि मडयं पूइऊण दुद्धोदहिम्मि छूढं तप्पभिई लोगे वि १ लुक्खेण पा० । २ अच्चं जुयं जे० । ३ आसेसुतु वि. जे० । ४ पागं वणह जे० । ५ ताओ पा० । ६ न हु अम्ह कि० पा० । ७ गारेसु महो० पा० । ८ ताणं पिउ उ० पा० । ९ भाया जे० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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