Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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जुगाइजिणिंदचरियं तत्तो मेहकुमारा सहसच्चिय अब्भवलं काउं। गंधोदयं पवुट्ठा पसमियरयरेणु संघायं ।।१३५८।। तत्ततवणिज्जनिम्मलसिलासमूहेण वद्धधरणियले। जगगुरुणो ओसरणे तिहुयणजणजणियमणतोसे ।।१३५९॥ सरससुसुयंधमणहरजाणुस्सयमेत्तउद्धमुहइल्ले । उउदेवयाहिं वुठे दसद्धवण्णे कुसुमवासे ॥१३६०।। वेमाणिया उ देवा रयणमयं तत्थ पढमपायारं। मणिकविसीसयसहियं करेंति परमाए भतीए॥१३६१।। वरचामीयरघडियं जोइसवासी कुणंति बीयं तु । पायारं तस्सोवरि कविसीसा सव्वरयणमया ॥१३६२।। कंतकलहोयनिम्मलसिलामयंजच्चकणयकविसीसं । बहिपायारं रम्म भवणवई तत्थ विरयंति ॥१३६३।। वररयणतोरणिल्ला पवणुद्धयधयवडा य सोहिल्ला। उभओ पासपइट्ठियमुहसंठियकमलकलसिल्ला ॥१३६४।। वररूवसालिभंजियकलिया वरमयरमुहविराइल्ला । हारद्धहारकलिया धय-छत्तजुया परमरम्मा ॥१३६५॥ पंचविहरयण-विफ्फुरियकिरणकंतीए कवलियतमोहा । एक्केक्के पायारे चउरो चउरो कया दारा ।।१३६६।। डझंतागरुकप्पूर-धूवधूमेण धूमियदिसाओ। दारे दारे मुक्काओ कणयघडियाओ दिव्वाओ॥१३६७।। एक्केक्के दारमुहे चउवारा सच्छसलिलपडिपुण्णा । वरकणय-कमलकलिया तियसेहिं विणिम्मिया वावी ।।१३६८॥ तह पढमवीयसालंतरम्मि पुवुत्तरे दिसीभाए । विरंयति देवछंदं वीसमणत्थं जिणवरस्स ॥१३६९।। चेइयरुक्खं सीहासणं च तह देवछंदयं चमरे। छत्तत्तयाइसव्वं वंतरदेवा विउव्वेति ।।१३७०।। रइयम्मि समोसरणे सुरेहिं बहुदेवकोडिपरियरिओ। देंतो चलणे सणियंसुरनिम्मियकणयकमलेसु ॥१३७१।। पुव्वदारेण पविसियकाऊण पयाहिणं ति जगनाहो। वइसइ पुवाभिमुहो तित्थपणामं करेऊण ।।१३७२॥ सेसदिसासु वि वंतरसुरेहिं पडिरूवगा विणिम्मविया । तेसि पि तप्पभावा तयाणुरूवं भवे रूवं ।।१३७३।।
सीहासणे निसनस्स भगवओ भुवणभाणुसरिसस्स । तियसकयाई विरायंति अट्ठवरपाडिहेराइं ॥१३७४।। पवण-पहल्लिर-सरस-सहेलु,1 वेरुलिय-सम-बहल-दलु, भमिर-भमर-भर-भग्ग-पल्लवु। कलयंठ-कलयल-मुहलु, विहग-विरुय-गिज्जत-गुण-गणु । गरुयह- गरुयउ मज्झ पहु, पयडिय-बहु-फल-फुल्लु । नं नच्चइ पल्लव-करिहि, चेइय-रुक्ख महल्लु ॥३१७५॥ मुइय-सुरवर-हत्थ-पल्लत्थ
निवडंत गयणंगणह, पंच-वण्ण-वर-कुसुम-मालिय । निय-परिमल-भरिय-वर-गंध-लुद्ध-भमरेहि वमालिय ।
निवडती जिणपय-पुरउ, सहरिसु जेहिं न दिट्ठ । कुसुमंजलि कलि-मल-हरण ते जग्गंत वि मुट्ठ॥१३७६।। सयल-तिहुयण-जणिय-संतोसु--
उद्धीकय-कंधरेहि, काई एउ पहरिसु वहंतेहिं । किं गज्जइ सजलु घणु, वरहि-बंधु अइ-गहिरसद्दिहिं ।
हुं नायं तित्थयरसरु, जोयण-खेत्त-पमाणु। पवियंभिउ संसय-हरणु, कन्नहं अमय-समाणु ॥१३७७।। सरय-ससहरहर-नीहार
हर-हास-हरिणकमणि, विमलु धवलु करिधरिउ सक्किण' । निवडंतु चामरजुयलु, सहइ सरिसु वर-राय-हंसिण । नानाविह-मणि-किरण-चय-चड्डिय-मणिमय-दंडु । जण-मणहरु नहसिरि-तिलउ, गयणंगण-मत्तंडु ॥१३७८॥
१. साहालु पा०। २. गरुषो जे०। ३. करहिं जे०। ४. मुयइ पा०। ५. णुव्वरिहिं जे०। ६. ससिहर जे०। ७. सक्केण पा०। ८. निवडंत जे०। ६. गणु म० जे० ।
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