Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 233
________________ १९२ जुगाइजिणिद चरियं तो सो सुमई गंतुं ऊसारेऊण सेट्ठिणं भणइ । भद्द ! भणिज्जसि किंचि वि परिणामसुहावहत्थीहिं ।।२०९१।। इहमागएण रणा तुह धूया सुंदरि त्ति नामेण । दिट्ठादिट्ठसुहयरी दंसणसंजणियसंतावा ॥२०९२।। दिटठीविसेण दट्ठो मंतोसहिगारुडाण विअ सज्झो । सुव्वत्तं सो मरई ओसहिकण्णं जइ न देसि ।।२०९३॥ तम्मि मयम्मि न रज्जं न य अम्हे न वि य अत्थसारेण । एयं नाऊण फुडं भण वणिय ! जमित्थ भणियव्वं ।।२०९४।। तो नेगमेण भणियं पाणा वि नरिंदसंतिया अम्हं । कि पुण कण्णा गिण्हह करेह हियइच्छियं कज्ज ॥२०९५।। गंतूणममच्चेण निवेइयं राइणो पियं वयणं । गंधव्वविवाहेणं विवाहिया सुंदरी रण्णा ।।२०९६।। अंतेउरम्मि छूढा पाणपिया अइरहस्स रायाणो । सेसाण पणइणीणं दूरे ठिया गमइ दियहाइं ।।२०९७।। अह अण्णया कयाई सुंदरि दासीए सुंदरो घडिओ । सुंदरि संगमहेउं उवयारं कुणइ दासीए ।।२०९८।। दासी वि तीए पुरओ सुंदर गणसंथवं तह करेड । जह सा तग्गचिंता संदरमइय व्व संजाया ।।२०९९।। भणइ य सहियणवेसेण सुंदरो एइ कह वि जइ एत्थ। त। आणेज्जसु भद्दे ! पइदियहं मणं पयंपेइ ॥२१००। भणिओ य तीए राया मज्झ सही अत्थि सूहवा नाम । ता तह करेसु जह सा अणिवारिया एइ मह पासे ॥२१०१।। पडिवण्णं नरवइणा ता गम्मउ सुयणु संपय तत्थ । सो विहु महिला वेसं काऊण गओ तमिस्साए ।।२१०२।। एवं दियहे दियहे पच्छण्णं सुंदरि रमंतस्स । वच्चंति वासराइं सुंदरवणियस्स तुट्ठस्स ।।२१०३।। अण्णम्मि दिणे भणिओ सुंदरि देवीए सुंदरो एवं । मह देहे को णु गुणे अब्भहिओ तुह मणे चडिओ ॥२१०४।। ईसि हसिऊण सणियं भणिया सा सुंदरेण पसयच्छि । गणमंतरेण सुंदरि! मच्चुमुहं को णु पविसेइ ।।२१०५।। वयणस्स न ते मुल्लं अच्छीणि' मयच्छि तिहुयणं चुल्लं । नासा पुण तुह सरला तुलट्ठियं तिहुयणं तुलइ ॥२१०६।। अवहरियागरु-कप्पूर-परिमलो मयमयाओ अब्भहिओ । तुह मुह-मारुयगंधो हरइ सुयंधाण रिद्धीओ ॥२१०७।। एसा लोयपसिद्धी अमयं जलहिम्मि जं समुप्पण्णं । तुह अहरो अमयपिया सुंदरि! जयपायडं एयं ॥२१०८।। हंस-रुय-तूलि-णवणीयमाइया मउय-मणहरा फासा । ते तुह सरीरफासस्स देवि दासत्तणं पत्ता ।।२१०९।। पुन्निमससिसमवयणा हसिऊणं सुंदरी भणइ एवं । सुंदर! न सुंदरमिणं अप्पहियं जं न चितेसि ॥२११०।। दुज्जणजणसंछण्णं घरं घरं राउलं विसेसेण । ता जइ मणिज्ज राया ता तुह सारीरिओ दंडो ॥२१११।। परिणामसुहं कज्ज किज्जतं सुयण ! सुंदरं होइ । कित्तियकालं कुसलं विले कर पक्खिवंताण ॥२११२।। सोऊण सुंदरीए वयणमिणं सुंदरो भणइ एवं । मारिज्ज न वा राया तुह विरहे मह धुवं मरणं ॥२११३।। ता मुय10 सुयण ! विसायं जीवियमरणाइं दोवि सरिसाइं । जा वहइ ताव चलिउं तुटुं को संधेउं सक्को1 ।।२११४॥ एवं सव्वं सुणियं पच्छन्नठिएण नरवरिदेण । तो कोहरुयं रुभियनियासणे सन्निविट्ठो सो ।।२११५।। अह सुंदरो वि चलिओ महिलानेवच्छ-लंछियसरीरो । रण्णा वि पुव्वगहिओ विसज्जिओ मक्कडो दुट्ठो ॥२११६।। लोयसमक्खं दक्खो हरी वि हरिऊण निवसणं नट्ठो । रोयंगरक्खएहिं झड त्ति सो सुंदरो गहिओ ।।२११७।। कन्ना छिन्ना नयणा वि15 कढिया सयललोयपच्चक्खं । नासाबसेण सम जीहा विय कड़िढया तस्स ।।२११८।। १ मसुहं सुहत्थीहिं जे० । २ दिट्ठिसुह पा० । ३ दिद्विवसेण दिट्ठो जे० । ४ सहगारु जे० । ५ सिणियं भ० जे०। ६ पसिय० जे । ७ अच्छीणमियच्छि पा० । ८ यणं मुल्लं अथवा तुल्ल पा० । ६ घ. घराअोलं जे०। १० मुयसु सु० पा० ११ सक्का पा०। १२ णियं सव्वं प० पा० १३ विहियो जे०।। १४ भा निच्छा पा० । १५ विय क० जे० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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