Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 252
________________ भरहबाहुबलिवण्णणं देव ! सुवेगु समागयउ, चिट्ठइ राय-दुवारि । को आएसु कहेउ पहु ! भरहु भणइ 'पइसारि' ॥२३६६।। एवि पणमिवि भरह-पय-कमलु आसण्ण-दिण्णासणउ, भरह-भणिउ सो भणण लग्गउ । आमूल वइयरु सयलु ताव कहिउ जा भरहु भग्गउ । सरियंसूया सत्तरिहि, भरहु भणइ भणि कज्जु'। दूउ पयंपइ बाहुबलि, तिहुयणि कसु वि न सज्जु ।।२३६७।। उद्ध-कंधरु वज्ज-भुय-दंडु, वित्थिण्ण-वर-वच्छयल, वसह-खंधु पडिवण्ण-सुंदर । सोडीरु-सरणागयह, सो सरंतु नं वज्ज-पंजरु । तुह वलु तिण-सम सो गणइ, पुहविहिं' एक्कलु वीरु । सक्कु वि संकइ नियय-मणि, पिच्छिवि तस्स सरीरु ॥२३६८।। ताव वइरिय-वन्नणुप्पण्ण 10-- गुरुमच्छर भरिय-तण नित सास वढंत-कंधरु । तुटुंत-कंठाहरण, सेन्न-नाह संजाउ दुद्धरु । पहु पणमिवि एरिसु भणइ, रोसारणु सावेसु । पइं रुट्टई1 को बाहुबलि, दिज्जउ मह आएसु ॥२३६९।। मेह-डंबर वज्ज-निग्घोसु, वज्जाउहु। वज्जमहु, मेहनाय-निव-पमुह नरवरा। रोसारुण पहरणेहि, दिति दिष्ट्रि16 कंपत-कंधरा । पहु-आएसई बाहुबलि साहहुं,10 जइ वि रउड़ 20 । अहवा लंघिवि सधर धर, बाहहिं तरहुं समुद्द ।।२३७०॥ भरहु पभणइ जोह कोवंध, दप्पुद्धर निप्फलउ, काई एह भडवाउ वुज्झइ । सो सूरउ जो समरि, सत्तु-मिलिउ निक्कवडु जुज्झइ । घर-सूरा मढ-पंडिया, पुहविहिं पुरिस नमंति । ते विरला जे सामियह,अवसरि25 न वि चुक्कंति ॥२३७१।। जाह निय-घरि करिवि सामग्गि, लहु एह मह पय-पुरओ, मउडबद्ध सन्नद्ध तक्खणि। आवेढिउ भरहबद्द, देइ दिट्ठि7 मइसार-मंतिणि 128 उं सो भणइ, संपइ दारुण काल । जइ रुच्चइ पह! तह मणह, ता वच्चउ वरिसाल ॥२३७२।। भरहु पभणइ जइ वि जल-हीणु एह गिम्ह जीव हं नियरु, लद्ध-पसरु खलु जेमतावइ । निय-बंधव-सम्मुही, तह वि जंत महु एत्थ भावइ । भरहाएसिं संचलिय, ह्य-गय-रह-नर-कोडि। पुरि पट्टणि आगरि नगरि, मांहि न कत्थ3 वि तोडि ||२३७३। एत्थंतरे आरक्खियजक्खाण सहस्सेण विजयगिरि-नामो रायहत्थी पत्थाणजोगो काउमाढत्तो-- सजल-जलहर-गज्जियाराउ जो गरुय-गिरि-तंग-तण, निय-करेण मेइणिहि लग्गिण । घंघ वसइ नाइ करि, अरिपविट पायालमग्गेण । तहिं पर पर-बल-बल-दलणि कच्छ-बंधु विहाइ । सिंदूरारुण35-कुंभयडु उदयगिरिहिं रवि नाइ ॥२३७४।। नारि-निठुर थणहरायारि कुंभत्थलि जा सुट्ठिय, विमल-संख-रिंछोली छज्जइ । संगाम-तरु-जस-कुसुम38-वेंट-पुंज-पंति व्व नज्जइ । सो करि सोहइ उद्धकरु, जलहरु जिह७ गज्जंतु । मय-भिभलु मंथर-गमणु, रायंगणि लुटुंतु40 ।।२३७५।। १ सुवेग समा० पा० । २ एव पण ० जे० । ३ भरहु पय ० पा० । ४ सरियां सूया पा० । ५ सुज्जु जे०। ६ गयह सो० जे० । ७ पुहइहिं पा० । ८ एकल्ल वी० पा०।६ पेक्ख वि पा० । १० वणणु० जे० । ११ गुर म० जे० । १२ मच्छरु भ० जे०। १३ नीत पा० । १४ पइरुडई जे० । १५ वज्जउह जे० । १६ दिडिकंप० पा० । १७ कंधर पा० ॥१८ आएसि बा ० पा० । १६ साह हिं जे०।२० विरउड्डु पा० २१ विरउ ड, जे० । २२ तरह जे० । २३ कोहंध पा० । २४ मेढ पं. जे० । २५ पुहइंहिं जे०। २६ अवसिरि जे० ।। २७ नियघर कर वि पा० । २८ दिडिमइ० जे० । २६ मंतिण जे० । ३० इहु जे० । ३१ गिहा जी० जे० । ३२ जेम्व पा० । ३३ भरहाएसई पा० । ३४ कित्थु जे० । ३५. कच्छा बं० पा० । ३६. रारुणु कुंभयदूउद० जे० । ३७ निदूर जे० । ३८ जासुप्पिय जें। ३६. जस कुसमपिट्ठ पुज पा० । जिम्व पा. ४० लटुंतुजे पा०। - १ सुवेग समा० पापा । ८ एकल्ला १४ पइरुडई १० विरउड्डु पा० २१ २७ नियघर कर रहाएसई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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