Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 256
________________ भरतबाहबलिवण्णणं २१५ जणणि-जणएहिं रुद्ध रह-मग्गु ससिणेह वारिउ कुमरु, कवणु कज्जु तुह वच्छ समरिण। रण-रंग-रंगिय-मणिण, भणिउ एउ सिरि-अणिलवेगिण। लोहि पयट्टइ खत्तियहं, किव जुज्झइ अवहेरि। अह जज्झंतउ जइ मरइ, तत्थ वि का अवसेरि ॥२४०४.। समर-सायरि मत्त-मायंग-, करड-यड-पगलंत-जलि, तुरिय-तुरय फेणोह-दुत्तरि। निवडंत-हय-गय-सुहड-रुंडमाल-मंडिय-महीयलि। अज्ज पइट्रइ समर भरि, जड हउं तत्थु न जाउं। तो लज्जावउं निय-जणउ, अब्भोखिज्जइ ठाउं ।।२४०५।। देव दाणव सिद्ध गंधव्व विज्जाहर किन्नर वि, हंतु सक्खि महु समरि ढुक्कह । परलोगु वि निप्पलउ, ताय कज्जि महु अज्जु चुक्कह । मई जाएण वि कवणु गुणु, तायह का मुह-छाय। जइ हउं मेल्ल एक्कला, रणि जुज्झता भाय ।।२४०६॥ अहह नारय नरइ निवडेसि जइ सच्चन हु चवसि, कवण संख चक्कहर-सेन्नह । संपत्तउ अहव न वि, विसय-सीम वाहुवलि-तायह । भरहेसर-सिरि संचरउ, तायह10 मंदिरि अज्ज। अहवा सच्चउं जण भणइ, चडणह पडणिहिं कज्जु ।।२४०७।। भणइ नारउ कुमर निसुणेहिं, चउरासी लक्ख तहि, भिन्न भिन्न रह-तुरय-हत्थिहिं। दीसंत संतासयर, सुहड-हत्थ-गय-निसिय-सस्थिहि । पयचारिहिं पुण छाणवइ, तिं सहुँ चल्लहि कोडि। बालय ! बलु भरहेसरह, माइ न कत्थ वि तोडि ॥२४०८॥ एउ निसुणिवि अनिलवेगेण चोयाविय रह-तुरय, समर-रहस-रोमंचियंगिण। संपत्तु अइ-पलब-बल, मिलिय जत्थ सो तत्थ वेगिण । रहु" रुंधेविणु ताव ठिउ, अवसरु कुमरु नियंतु। रण-रस-रसिय-सिणिद्ध-मणु हरिस-विसाय वहंतु ।।२४०९।। भग्गि नियवलि मयइ सीहरहि, सर-सल्लिइ सोमजसि, भरह-सेन्नि पहरिसु वहंतइ। अच्चितिय-पाहुणउ, अनिलवेगु संगामि टुक्कइ। पंचाणणु जिम्ब गयघडह, थक्कउ कम सज्जेवि। वाम-हत्थि धणुहरु धरिवि, इयरि सिय सर लेवि ।।२४१०॥ एक्कु संधइ दिव्व-जोएण सर पसरहिं सय सहस1, लक्ख कोडि छाइय-"नहतर । संरुद्ध-रवि-कर-नियर,भरह-सेन्नि निवडहिं निरंतर । नत्थि सु सारहि न वि सुहडु, तुरउ न हत्थि पयाइ। अनिलवेग-सर-जालियउ, जो न वि नट्ठउ जाइ ॥२४११।। अरिरि नासह केण कज्जेण थिर होह मा भउ करह, करि करेवि कोदंड जंपइ। सेणाणी सम्मुहउ, अनिलवेगु रह रहिण चंपइ। अनिलवेगु वेगागयउ कर-कड्ढिय-करवालु। धणु गुणु धयवडु सिर-मउडु, छत्तु वि छिदइ वालु ॥२४१२।। पुणु वि गिण्हइ अन्नु कोदंडु, ___ सरु संधइ जाव तहि, ताव वाल सिरि चडिउ धाइवि । सिरु मिल्लिवि अंसिठिउ, अंसु चयवि तिगि चडिउ जाइवि॥ धणु-कोडिहिं धणु-गुणि28 सरह, खह रउ पउ देवि। कुमरु गयउ सेणाहिवह, नहयलि माणु मलेवि ।।२४१३॥ १. लोह प० जे०। २. कं जे०। ३. तहिं पा०। ४. समरि भरि पा०। ५. जइ समरि न पा०।६. प्रज्ज भक्कहा जे०। ७. मह छा० जे० । ८. जउ सच न वि चवसि जे०। ६. न व विस० पा०। १७. तायहि मंदिर अज्ज जे०। ११. निसीय सत्थहि जे०। १२. चल्लाहिं पा०। १३. केत्थु वि जे० । वेगेण पा० । १४. रह रुंधे पा०। १५. सिय निवद्ध पा० । १६. सहस्स ल० पा०। १७. निरंतर जे०। १८. निवडई जे०। १६. अरेरे पा० । २०. ताम्ब पा० । २१. असंथिउ अंसु जे० । २२. तिगि च० जे०। २३. गण सर० पा० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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