Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 239
________________ १९८ जुगाइजिणिदचरियं संसारसमुद्दाओ निजामयमुणिवरे निएऊण । तब्भवसिद्धियपुरिसो कयंजली जंपए एवं ॥२२०४।। धन्नाणमहं धन्नो जम्मे संसारसागरगएण । जिणधम्मदोणि सहिया तुन्भे निज्जामया पत्ता ॥२२०५॥ घरवासपासबद्धो पंचिंदियचोरचमढिओ संतो। भवचारगम्मि खित्तो कसायकसघायहम्मतो ॥२२०६॥ वसिओ एच्चिरकालं असामिओ सरणविरहिओ दीणो । संपइ काऊण दयं जिणदिक्खं देहि मे सिग्घं ।।२२०७।। चक्कहर-हलहराणं देवासुर-खेयराण रिद्धीओ । लब्भंति सुहेण पुणो सुहगुरुणो नेव लब्भंति ॥२२०८॥ संसारियसोक्खाई असारसंसारकारणरएहिं । भुत्ताई चिरं न उणो जिणवयणामयरसो भुत्तो ॥२२०९।। ता कयमहमेएणं जम्म-जरा-मरण-दुक्खनिलएणं । दुहसयनिबंधणेणं भयवं संसारसोक्खाणं ।।२२१०।। अज्ज चिय देह ममं कयं विलंबेण विग्घबहुलेण । सुहगुरू जिणवरदिक्खं तब्भभवभव्वो इमं भणइ ।।२२११॥ जोगो त्ति कलियदिण्णा दिक्खा सुयसायरेहि सूरीहिं । आजम्मं निरवज्ज पव्वज्जं सो वि काऊण ॥२२१२।। उप्पाडिऊण नाणं पयासिया सेसवत्थुपरमत्थं । तब्भवसिद्धीजीवो सिद्धो तेणेव य भवेणं ॥२२१३।। पडिवज्जियपव्वज्जं बीइए भवम्मि' सुरवरी होउं। तइयभवे सिज्झिस्सइ जो सो आसन्नभव्वजिओ ।।२२१४।। भव्वो भवगहणाई सत्तट्ठभवम्मि भवसमुद्दम्मि। पच्छा 'सिज्झिस्सइ जिणमयम्मि दुक्खक्खयं काउं ।।२२१५।। पडिवत्तिमेत्तधम्मो चिरभव्वो चिरयरं भमेऊण । तिरिएसु य नरएसु य उस्सन्नं मणुयदेवेसु ।।२२१६।। कालेणमणंतेसु सो वि हु सामग्गियं लहेऊण । जिणवयणजायसद्धो सिज्झिस्सइ खवियकम्मसो ॥२२१७।। जो पुण अभव्वपुरिसो चउगइसंसारवाहियालीए । वाहो व्व सो वहिस्सइ जिणधम्मपरंमुहो10 पावो ।।२२१८।। न कयाइसिद्धिसोक्खं भुंजिस्सइ दुग्गओ व्व परमण्णं । नियरगइकदिडओ सो मोहंधो वच्चिही नरयं ॥२२१९।। नरएसु य तिरिएसु य उस्सन्नं तस्स होहिही जम्मो। अन्नाणतवाहितो विरलोच्चिय देवमणुएसु ।।२२२०।। जेत्तियमेत्तो मोहो संसारो तस्स तेत्तिओ13 जाण । मोहविवढ्डीयइमो वड्ढइ भवसायरो गुविलो ।।२२२१।। अभवियचिरभवियाणं भवियाणं नियडसिद्धिसोक्खाणं । तब्भवभव्वाणं तह कम्मविवागं सुणेऊण ।।२२२२।। अइगरुयअप्प-अप्पयर-अप्पतममोहविगयमोहाणं । सोऊण फलविवागं अभवियपमुहाण पुरिसाण ।।२२२३।। घर-घरणि-पुत्त-सुहि15-सयण-वित्तविसएसु विहुणिया संगं । कुरुकुमर सयन्नेणं मोहजए होइ जइयव्वं ।।२२२४ ।। भणइ कुणालकुमारो कलसियहिययाण कहह वइधम्मो। अम्हारिसाण मुणिवइ चक्काहिवमलियमाणाण ।।२२२५।। भगवया भणियं अओ चेव कसाया न कायव्वा सुणेह कसायकुडुंबियदिढतं । अत्थि इहेव भारहे वासे मज्झिमखंडमंडणं विजयवद्धणं नाम नयरं। तत्थ रुद्ददेवो नाम वाणियगो परिवसइ । सहा भारिया सहावओ चेव दोवि रोसणाणि । डंगरकूडंगसायराभिहाणा ताण तणया। सिला-नियडिसंचयाभिहाणाओ वहओ । रुद्ददेवो अग्गिसिहा य सकारणमकारणं वा रोसंधयारियमहाणि सया चिट्ठति । डुंगरो डुंगरो व्व नमणिज्जाण वि अनमंतो सव्वजणासम्मओ कालं गमेइ । सिला वि नियथड्ढिमाए न कस्स वि गोरवं ठाणं । जओ-- १ वासे पास जे । २ घाय संपत्तो पा० । ३ सोक्खेण पा० । ४ महं कयं जे० । ५ भणियो जे०। ६ सिद्धियजी जे० । ७ बीए वरिसम्मि सुर जे० । ८ इ सो आस जे० । ६ मणंतेणं सो जे०। १० धम्मो परं जे० ११ दुग्गइ व्व जे० । १२ वच्चइ नरयं जे०। १३ स्स तत्ति तत्ति। १४ वट्टीय जे० । १५ पुत्तसहियाण पा० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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