Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
________________
सिरिरिसहसामिदेसणा
२०१५
घणघणपडलंतरिओ गयतेओ जइ वि दिणयरो जाओ। ता किं घणमुक्कतणू न तवइ महिमंडलं सूरो ॥२२३४।। जंकणयं कणयं चिय न होइ कालेण तं पुणो लोहं । इय नाणगुणसमिद्धा जे साहू ते पुणो साहू ॥२२३५।। संता वि उवाएणं हुंति कसाया किसा सउण्णाण। निरुवायाण असंता, वि हुँति संता वि वढ्डंति ॥२२३६॥ सोऊण कसायाण कडुयविवागं कुणालकुमरस्स । कुंभुब्भवोदएणं जलं वि विमलं मणं जायं ॥२२३७॥ एत्थंतरम्मि केरलकुमरो करसंपुडं करेऊण । तिहुयण गुरुं जिणिदं पणमिय एवं पयंपेइ ॥२२३८॥
हय-गय-रहरमणीया पुरोपसप्पंतपउरपंतीया। सयलसुहाण निहाणा लच्छी कह छड्डिउं सक्का ॥२२३९।। भगवया भणियं-"केरलकुमार !" सुणेह लच्छीए चरियं । एसा लच्छी मरणदाणदच्छी पारियायपल्लेवेहितो रागं, ससिकलाहितो वंकत्तणं, अमरवइतुरंगाहिंतो चंचलत्तणं, कालकूडाहिंतो महामोहसत्ति, मयराहिंतो मयं, कुच्छुभमणिरयणाहिंतो निठुरत्तणं, नियसहोयरविओया सुहविणोयणत्थं एए गुणे गहाय-सायराओ निग्गया। न एवंविहं सयल तिहयणे वि विम्हियावहामिदयालं विज्जइ जहेसा अणज्ज-वज्जासिरी पढम पि ताव महाकिलेसेण लब्भइ। लद्धा वि दुहेण परिपालिज्जइ। बहुगुणपासपासिया वि नासइ महासुहडासिलया पंजरमज्झगया वि पवंचेइ मयजलजणियदुद्दिणंधयारगयघडा परिपालिया वि पलायइ, न मन्नइ पच्चयं,न गणइ कुलाकुलं, न निरूवेइ रूवं, न सीलेइ सीलवंतं, न गणेइ वियड्ढत्तणं, न सुयं, न धम्म, नायारं, न लक्खणं', गंधव्व-नयर-लेह व्व पेच्छंताणं चेव विहडइ, कमलिणी-वणसंचरण नलिण-नालालग्गकंटय व्व निब्भरं कहिंपि ठिइं बंधइ, समुचियमूलदंडकोसमंडलं दिवसावसाणे कमलं व निरावराहमवि परिहरइ, पत्थिवलय व्व समारोहइ विडवगाणं, दिवसयरगइ व्व-पयडियाणेगसंकति सया पायालगुह व्व तिमिरावहा, पाउससिरि ब्व अचिरजुइकारिणी, सरस्सइसमालिंगियसरीरं ईसालुयाए दूरं परिहरइ पुरिसं, अपवित्तं च न फुसइ नियकरेहिं गुणवंतं, अमंगलमिव परिहरइ दायारं, अनिमित्तमिव न पासइ सुयणजणं, कंटयं व दूरेण परिहरइ सूरं, पावकम्मकारिणं व नोसवप्पइ विणीयं, उम्मत्तं च मन्नमाणी उवहसइ पंडियजणं, अमियसहोयरा वि कडुयविवागा विग्गहवई वि अपच्चक्खदसणा, पूरिसोत्तिमरया वि खलजण पिया, किं च-अइबहलधूसर-धूमावली सुंदरचित्ताणं, विन्भमसेज्जा दीहरमोह-निहाणं, तिमिरुग्गईलोयलोयणाणं, महावेजयंती अविणयाणं, अवायमेइणीविसयासवाणं, संगीयसाला ईसरियवियारनट्टाणं, आवासदरी कोवमहाभुयंगमाणं, ओसारणवेत्तलया सप्पुरिसववहाराणं, अकालपाउसो गुणधयरट्टाणं, विसरणभूमीलोगाववायविप्फोडगाणं, पत्थावणा कवड-नाडयस्स, कवलिया काममहाकरिणो बज्झमाला साहुभावस्स, राहुरसणा धम्ममयलंछणमंडलस्स, न य सो तिहुयणे वि नरामराण मज्झे अत्थि जो इमीए कुलबालिया इव निक्कवडसाणुरायमालोइओ। एवंविहाए वि लच्छीए कहकह वि दिव्ववसेणं समालिंगिया कुडिलकामिणीए व्व पम्हटकज्जाकज्जा, न पणमंति तियसे न सम्माणिति गुरुजणे, न पसंसंति गुणिणो, न थुणंति मुणिणो, नालवंति बंधुणो, न पूयंति जणणि-जणए, नावेक्खंति कल्लाणमित्ते, सव्वहा दुटुतुरंगम व्व उद्दामगामिणो, करिवर व्व निरंकुसा पलयजलनिहि व्व मुक्कमज्जायाखयकालरविणो व्व करचंडा, ससिणो व्व पायडियदोसागमा, महमहविलास व्व नियडिकवडमाया, परवंचणपरायणा हवंति खलपूरिसो त्ति। अवि य---
एवं गुणकलियाए वि इमीए कहकह वि संगया पुरिसा। जर-गहिया विव धणियं आउलचित्ता दढं हुंति ।।२२४० ।। सलिलेण व दक्खिण्णं खालिज्जइ धूमसंचएणं व। मलिणी किज्जइ हिययं लच्छी सहियाण पुरिसाण ।।२२४१।। चामरपवणेहिं पिव, नासिज्जइ सच्चवयणसंदोहो। परलोगदसणं पिव वारिज्जइ आयवत्तेहिं ।।२२४२।।
१. तो गयं ससिसकला पा० । २. परिचयं पा० । ३. न रक्खणं जे० । ४. कदलिया। ५. निहिणो व्व जे०। निवहो व्व पा०। ६. मुहमह व्व जे०।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322