Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 235
________________ जुगाइजिणिंदचरियं जइ मग्गिय पि लब्भइ भवे भवे होज्ज ता तुम जणणी। मा होज्ज पुणो एवंविहाण दुक्खाण संभूई ॥२१४९।। तत्तो निरुद्धवयणा मरिऊणं णरयदुग्गय पत्ता । इय सयलविसयसंगो मिहुणस्स दुहावहो जाओ ॥२१५०।। अन्नो वि य दिद्रुतो अयासहस्साहिवेण एगेण । छालियसहस्स जोगो निविडकवाडो कओ वाडो ॥२१५१।। पउरतण-पाणियं तं अयासहस्सं पि तत्थ सो छुहइ। निबिडं देइ कवाडं दिणे दिणे जाव छम्मासा ॥२१५२।। नह-रोमसिलेसेहि मुत्त-पुरीसेहिं तह नहगेहिं । तिलतुसमित्तो वि तहिं नत्थि पएसो न जो पुट्ठो ।।२१५३।। अवि होज्ज तम्मि वाडे अयाण जो अवयवेहि नो पुट्ठो । सुहुमो भूमिपएसो संभवपक्खो इमो तत्थ ॥२१५४।। चोहसरज्जम्मि पूणो तिलतुसमित्तो वि नत्थि सपएसो। जत्थ न जाओ न मओ अणंतखुत्तो इमो जीवो ।।२१५५।। नत्थि सुहं दुक्खं वा चोद्दसरजम्मि एत्थ लोगम्मि। जं जीवेण न भुत्तं अणंतसो तह वि नो तित्तो ॥२१५६।। जम्हा अणाइजीवो संसारो सासओ धुवो निच्चो । तम्मि भमंतेण चिरं बहुसो भुत्तं विसय-सोक्खं ॥२१५७।। तेण वि न चेव तित्तो एस जिओ विसय-लोलुओ पावो । अपुव्वाई व मन्नइ, भवे भवे विसयसोक्खाई ॥२१५८।। दुक्खाणि य सोक्खाणि य अणंतखुत्तो जिएण भुत्ताई । दुक्खेहिं न निबिन्नो सोखेहि न चेव परितुट्ठो ॥२१५९।। होऊण सावहाणा वच्छा! अण्णं पि सुणह आहरणं । विसय-विसागयकप्पं संवेगकरं बहुजणाण ।।२१६०॥ एगम्मि पुरे पुरिसो परमत्थविवज्जिओ कुकम्मरओ । परपाण-पीडणेहिं जीवइ अंगारकम्मेण ॥२१६१।। सो अन्नया कयाई सलवण-सुसिणिद्धभोयणं भुत्तं । गिम्हे खरंसुखर-किरणनियरसंतवियजियलोए ।।२१६१।। पयपडिपुण्णमपुण्णो एग करवत्तियं करे काउं । अंगारकारणट्ठा महाडवीए पविठ्ठो सो ।।२१६२।। वडपायवसाहाए सजलं करवत्तियं पमोत्तूण । आहरइ सुक्ककट्ठाणि कुणइ एगत्थकूडम्मि ।।२१६३।। पक्खिवइ तत्थ जलणं चउद्दिसिं सविहसंठिओ संतो । निज्झायंतो डज्झइ पवणपवटुंतजालाहि ॥२१६४॥ परिसुसियतालु-जीहो कहकहवि पहाविओ वडाभिमहं । पाऊण जलं पुणरवि संपत्तो तम्मि ठाणम्मि ॥२१६५।। तवइ अहे धरणियलं उरि पि बहतरणि-मंडलं तवइ । तिरियं पि देहदहणा पवणा ताविति अंगाई ।।२१६६।। पुणरवि य पियइ सलिलं पुणो वि सो एइ अग्गिपासम्मि । एव कुणतेण तहिं निट्ठवियं तेण तं सलिलं ॥२१६७॥ मुच्छा-निमीलियच्छो पच्छा वडपायवस्स हिदम्मि । सुयजागरो समाणो पेच्छइ एवंविहं सुमिणं ।।२१६८।। सव्वाण सायराणं सर-सरिय-तलाय-कव-वावीणं । वियराण निज्झराणं महादहाणं च सव्वेसि ।।२१६९।। सुविणे संकप्पेणं सयलम्मि वि तिहयणम्मि जं अत्थि । पीयं पयं न छिन्ना तह वि तिसा तस्स तिसियस्स ।।२१७०।। एवं च तेण दिट्ठो महायडो अडविमज्झयारम्मि । थेवजलो बहुपंको सुमिणे संजायतण्हेण ॥२१७१।। गहिऊण दीहवंसं तस्सग्गे दब्भपूलयं काउं । पक्खिवइ तत्थ कूवे पुणो वि कड्ढेइ। सो तिसिओ ।।२१७२।। निल्लालियग्गजीहो मुह मूले पूलयं12 करेऊण । अप्पजलं बहुपंक जलबिदुं रसइ रसणाए ॥२१७३॥ नइ-कूव-तलाएहिं सरसरिया सायरेहि सयलेहिं । जइ13 नो फिट्टइ तण्हा ता किं सो फेडिही बिंदू ।।२१७४।। जारिसउ सो बिंदू कुसग्गलग्गो मलाविलो तुच्छो । तारिसया मणुयाणं विसया तुच्छा असारा य ॥२१७५ ।। नइ-कूव-वावि-सर-दह-तलाय-सरि-सायराण सारिच्छा । भुत्ता अणंतखुत्तो चउविहदेवाण वरविसया ॥२१७६।। तेहिं विन चेव तित्तो तो किं माणुस्सहिं15 विसएहिं । पंकाविलजलबिंदूवमेहिं तिप्पिस्सए जीवो? ॥२१७७।। १ ता तयं जण० जे० । २ गइ पत्ता जे० । ३ सयस्स जे० ।४ लुपो जायो । ५ जे० पावो अपव्व जे०। ६ भोत्तुं जे० । ७. उवरि बहु त० जे०।८ उरि पि हु तर० पा०। ६. ० तेहिं त० पा० । १०. नवियं जे० । ११. कंठेइ जे० । १२. मुहमूलपेलयं जे० । १३. जइ तो पिट्ठातल्हा जे० । १४. ० लग्गा पा० । १५. सो माणुसेहिं वि० पा० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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