Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिरिसहसामिवण्णणं
१८३
जह पंजराओ सउणी घडाओ वयराणि कंचुया पुरिसो। एवं न चेव भिन्नो जीवो देहा उ संसारी ॥१८२१।। जह खीरोदग-तिलतेल्लकुसुमगंधाण न कीरइ भेओ। तह चेव न जीवस्स वि देहादव्वं तिउ भेओ ॥१८२२।। संकोय-विकोएहि जहक्कम देहलोयमेत्तो य। कुंथुस्स य हत्थिस्स य पएससंखा समा चेव ॥१८२३।। कालो जहा अणाई अविणासी होई तिस्सु वि समासु । तह जीवो वि अणाई अविणासी तिसु वि कालेसु ।।१८२४।। गयणं जहा अरूवी अवगाहगुणेण घेप्पए तं तु । जीवो तहा अरूवी विण्णाणगुणेहि घेत्तव्यो ।।१८२५।। जह पुढवी अविणट्ठा आहारो होइ सव्वजीवाणं। तह आहारो जीवो नाणाईणं गुणगणाणं ॥१८२६।। अक्खयमणंतमउलं जह गगणं होइ तिसु वि कालेसु। तह जीवो अविणासी अवढिओ तिसु वि कालेसु ॥१८२७।। जह कणगाओ कीरंति पज्जवा मउडकुंडलाईया। दव्वं कणगं तं चिय नाम विसेसो य सो अन्नो ।।१८२८।। एवं चउग्गईए परिब्भिमंतस्स जीवकणगस्स । नामाइं बहुविहाई दव्वं चिय तयं चेव ॥१८२९।। जह कम्मकरो कम्मं करेइ जं ववइ* तह फलं तस्स । तह जीवो वि य कम्म करेइ भुंजइ य तस्स फलं ।।१८३०॥ उज्जोवेउं दिवसं जहइ सूरो वच्चए पुणो अत्थं । न य दीसइ सो सूरो अण्णं खेत्तं पयासेतो ।।१८३१।। जह सूरो तह जीवो भवंतरं वच्चए पुणो अन्नं । तत्थ वि सरीरमणं खेतं वरवी पगासेइ ।।१८३२।। "पुप्फ-फल-कमलाणं चंदण-अगरूण सुरहिगंधाणं । घेप्पइ नासाइगुणो नयरूवं दीसए तेसि ।।१८३३।। एयं नाणगुणेणं घेप्पइ जीवो उ बुद्धिमतेहिं । जह गंधो तह जीवो न हु सक्का तीरए घेत्तुं ।।१८३४।। भंभा-मउंद-मद्दल-पणवमगुंदाण संखसद्दाण। सद्दो चिय सुव्वइ केवलो त्ति न हु दीसए स्वं ॥१८३५।। पच्चक्खं गहगहियो दीसइ पुरिसो न दीसइ पिसाओ। आगारेहिं मुणिज्जइ एवं जीवो वि देहट्ठिओ ।।१८३६।। हसइ विसूरइ झूरइ नच्चइ गायइ रुयइ य सदुक्खं । जीवो देहमइगओ विविहवियारे पदंसेइ ।।१८३७।। अणुमाणहेउसिद्धं छउमत्थाणं जिणाण पच्चक्खं । गेण्हसु गणहरजीवं अणाइयं अक्खयमस्वं ।।१८३८।। कहिओ जीवसहावो जहट्ठिओ जो तए पुरा पुट्ठो। एत्तो कम्मविभागं बंधविहाणं निसामेहि ॥१८३९।। इंदिय-कसाय-मय-गारवेहिं अन्नाण-राग-दोसेहिं । बंधइ जीवो कम्मं नाणावरणाइअट्ठविहं ।।१८४०।। जह आहारो भुत्तो जियाण परिणमइ सत्तभेएहिं । रस-सोणियमंसट्ठी मज्जा तह मेयसुक्केहिं ।।१८४१।। जीवो वि तहा जाणसु सुहासुहं विविहकरणजोगेहि। राग-द्दोसवसगओ अट्ठविहं बंधए कम्मं ॥१८४२।। नाणावरणं पढमं बीयं तह होइ दंसणावरणं। तइयं च वेयणिज्जं चउत्थगं होइ मोहणीयं ।।१८४३।। आउयकम्मं भणियं च पंचमं छगं भवे नाम। सत्तमगं पुण गुत्तं अट्रमगं अंतरायं च ॥१८४४।। एवं अट्ठविहं पि य जीवेण अणाइसहगयं कम्म। जह कणयं पाहाणे अणाइसंजोगनिप्पण्णं ।।१८४५।। जीवस्स य कम्मस्स य अणाईमं चेव होइ संजोगो। सो वि उवाएण पुढो कीरइ उवलाओ जह कणगं ॥१८४६।। किं पुव्वयरं कम्मं जीवो वा जइ भणेज्ज इह कोइ। सो वत्तव्वो कुक्कुडिअंडाणं भणसु को पढमो? ॥१८४७।। जह अंडसंभवा कुक्कुड त्ति अंडं पि कुक्कुडीपभवं । न य पुव्वावरभावो जहेह तह जीवकम्माणं ।।१८४८।। जीवो कम्मं च अणाइसंभवं संभवंतपरिणामं । जीवस्स बंधहेऊ साहियंते निसामेह ॥१८४९।। नाणं पंचपयारं पयासिया सेसवत्थुपरमत्थं । जो तस्स कुणइ निदं सो असुहं बंधए कम्मं ।।१८५०।।
१. कंतुया पुरि० जे० । २. अबद्धिो जे० । ३. जीवद्धवंतयं जे० । ४. करेइ भुंजइ य पा० । ५. फुल्लफल पा० ।
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