Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 227
________________ १८६ जगाइजिणिंदचरियं दाणाइअंतरायं पुव्वभवे जो जियाण न करेइ । देइ तहा साहूणं वत्थोसह-असण-पाणाणि ॥१९०८।। दाणं देइ य लहइ य परिभुंजइ भुंजए य सो बहुसो। बल-वीरियसंपण्णो संघयणं उत्तम लहइ ॥१९०९।। एस मए अट्ठण्ह वि कम्माणं बंधपुव्वओ भणिओ। बद्धा भमंति जेहिं उ जीवा भवसायरे घोरे ।।१९१०॥ जं पुट्ठो कइ भेओ संसारो जत्थ संसरइ जीवो। नियकम्मनियलबद्धो चयउरासी जोणिलक्खेसु ॥१९११।। तं सावहाणहियओ होऊण भयंकरं सइन्नाण । अवसरपत्तं गणहरसाहियं तं निसामेहि ॥१९१२।। नारय-तिरिय-नरामर-गइ-गुविलो जन्म-मरणबहुदुक्खो । भवसयसहस्स गहणो चउव्विहो एस संसारो ।।१९१३।। जे जति जत्थ पेच्छा नरया जेहिं कम्मेहिं तेहि गम्मति । जा तत्थ वेयणाओ संपइ एयं निसामेहि ||१९१४॥ गरुयारंभा-वह-मारणुज्जया निद्दया निरणुकंपा। जीवाण कुणंति वहं कारेंति य जेणुमन्नंति ।।१९१५।। अणुबद्धतिव्ववेरा रज्जवेरा रज्जम्मि य मुच्छिया विसयगिद्धा । अवहत्थियधम्मधुरा पाव-पसत्ता परमकूरा ॥१९१६।। हण, छिंद, भिंद, मारह, उक्कत्तह खिवह खारयं देह। उब्बंधह धाह लहुं एमाइ पयंपिरा पावा ॥१९१७।। सेणाहिवसूणाहिवगोत्तीवाला य तलवरा चेव । नरसयसहस्स वहणं करिति जे रुद्दपरिणामा ।।१९१८।। चक्कियचारियचोरियात्तग्घाया य गामघाया य। नित्तिसा पावरया गब्भाणं पाडगा जे य ।।१९१९।। सोवरिया सोणहिया चंडाला चंडकम्मकारी य। इहलोगम्मि पसत्ता परलोगपरंमहा चेव ।।१९२०॥ सस-पसय-सूयराणं अणवकरिताण' किं चि जीवाणं । वहणं करिति कुरा आमिसमंसप्पियाजे य ।।१९२१॥ ते अन्ने वि य पावा खयंकरा सयलजीवजोणीणं। मण-वइ-काएहि नरा नरयं गच्छंति दप्पंधा ।।१९२२।। तिरिया वि बहुवियप्पा मच्छा-सप्पा य नाहरा चेव। पक्खी विय पिसियासी उति नरगं निरभिरामं ॥१९२३।। सत्तसु पुढवीसु अहे नरयाणं होति सयसहस्साइं। चउरासी संखाई निच्चं ससिं-सूररहियाइं ॥१९२४।। दुग्गंधमडयपूइयगंधाई तत्तलोह-फरिसाइं । दुक्खत्तकलुणविलिवियभयभेरव-रुद्दसद्दाइं ॥१९२५।। अच्छिनिमीलियमित्तं पि सुक्खरहियाइं दुखभरियाई । अच्छउ ता दिट्ठाई निसुयाणि वि दुक्खजणगाइं ॥१९२६।। अच्छिनिमीलियमेत्तं नत्थि सुहं दुक्खमेव अणुबद्धं । नरए नेरईयाणं अहो-निसि पच्चमाणाणं ॥१९२७।। काऊण पावकम्मं निरयावासेसु निरभिरामेसु । निवडंति केइ जीवा नियकम्मगलत्थिया संता ॥१९२८।। निवडियमेत्ता य तहिं भीया जमगाइएहि पावेहिं । विविहाहि वेयणाहिं जाइज्जती दुकयकम्मा ॥१९२९।। कत्तंति करकएहिं केई खंभ व्व बंधिउं तत्थ । केइ पुण कप्पणीहिं वत्थाणि व तत्थ छिज्जंति ॥१९३०।। विरसं आरसमाणा कंदंता भेरवेण सद्देण । विसहति वेयणाओ कयाइ जमकाइयसुरेहिं ॥१९३१।। भीमासु य पच्चते कडूसु अहोमुहा कहिं केई । संभारियपुव्वभवा नारयपालेहिं ते तत्थ ।।१९३२।। हंतूण निरवराहे जीवे मंसं च सोणियं तइया । जं खाह रसासत्ता तस्स फलं संपयं एयं ॥१९३३।। आसिपियं मंसंते खंडिय खंडिय सरीरखंडाई । खाविति नरयपाला कलयलसदं करेमाणा ।।१९३४।। लावयरसो पिउ ते संभारियपुव्वजम्मकुकयाइं । पायंति कलललिता तओ य तंबाई तत्ताइं ।।१९३५।। तत्तो ते वेयरणि उति तओ तंबदड्ढसव्वंगा । पेच्छंति तीए पुलिणं कलंबुया कुसुमसंकासं ॥१९३६।। १ संवरइ जे० । २ जत्थ पेच्छा निरया जे०। ३ चोरिया सत्थग्धाय पा० । ४ अणव नरिंदाण जे । ५ कट्ठति पा० । ६ केइय खं० पा०।७ कियाइं पा० ८ लिताइंत० पा० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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