Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

Previous | Next

Page 228
________________ सिरिरिसहसामिदेसणा १८७ खप्पंतपडतहिं कह कह वि वयंति ताव तवियंगा । कीड व्व जलणमज्झे डझंति तहिं विलवमाणा ॥१९३७।। उत्तरिऊणं तत्तो असिपत्तवणं उति सुहकखी । तत्थ वि य परसु-पट्टिसअसीहि छिज्जति सव्वंगा ॥१९३८॥ वासाण सहस्साई बहूणि पलिओवमाणि अयराणि । जीवंति परमदुहिया दुक्खसहस्साई भुंजता ।।१९३९।। नरगभववेयणिज्जे कम्मे खीणम्मि निरवसेसम्मि । तो उत्तरिउं तत्तो तिरिक्खमणएसु जायंति ॥१९४०॥ नरएसु वेयगाओ सव्वाओ वण्णिऊण को सक्का । तह वि मए नरगगया कहिया तुह वेयणा एसा ॥१९४१।। जे पुण तिरिक्खजोणी उवेंति कम्मेहि मोहिया जीवा । ते निसुण कहिज्जते' तेसु य जा जायणा तिव्वा ।।१९४२।। दुविहा तिरिया भणिया थावरजीवा तहेव तसजीवा । ते सुणसु कहिज्जते जहकवमं निऊणबुद्धीए* ॥१९४३।। पुढवि-जल-जलण-मारुय-वणस्सई कायसंसिया तेउ । बेइंदिय-तेइंदिय-चउरो पंचिंदिया तिरिया ॥१९४४।। तत्थ विय पुढविकाए सीउसिण खणणझावणाईहिं । पावेंति दुहमसंखं पुणो पुणो तत्थ मरिऊण ।।१९४५।। पाणावगाहणासुं पुरिसेहितो दुहाई पावेंति । आउक्काइयजीवा मरिउं तत्थेव जायंति ।।१९४६॥ उज्जालणपज्जालणझावणजलसेयसंभवं दुक्खं । तेउक्काइयजीवा भुंजंति निरंतरं दुहिया ।।१९४७।। वीयणग-तालियंटयचेलुक्खेवाइबहुप्पयारेहिं । वाउक्काइयजीवा अणुहोति दुहाई गुरुकम्मा ॥१९४८।। तच्छण-छेयण-भेयण-निल्लूरण-खुडण-मोडणाईहिं । पावेंति दुहमणंतं अव्वो तरुसंसिया जीवा ॥१९४९।। संखणग-सुनि-संखा य किमिय-गंडूपयाइं बहुभेया । बेइंदिया य दुक्खं सहति चलणप्पहाराई ॥१९५०।। तेइंदिया पिवीलिय-छप्पय-बहुपयपया अणेगविहा । जलजलणविहगभवखणदुहाई पावेंति संतत्था' ||१९५१।। पावेंति डहणबंधणकरघायनिमित्तगरुयदुक्खाइं। सलभा-भमरा-मसगा-चरिदियजाइणो विविहा ॥१९५२।। कत्थइ आमिसलुद्धा निवडता तत्थ धणुविमुक्केहिं । आयन्नायडिढ्यमग्गणेहिं नहचारिणो विद्धा ॥१९५३।। संचुन्नियसव्वंगा चंचुनिहाएहिं खहयरा पावा। आमिसगिद्धा कत्थइ निहणं वच्चंति अन्नोन्नं ॥१९५४।। समुहावडिया कत्थइ अवरोप्परवज्जचंचुविणिभिन्ना । विगलंत-रुहिरभीमा विणिवायं के वि वच्चंति ।।१९५५।। कत्थइ सिहि-सारस-हंस-वा (य) स-सुय-सारियाइसंघाया । पावेंति दुहसयाइं आमिसलुद्धेहिं लुप्पंता ।।१९५६।। गंडगयगवय-केसरि-वग्घ-तरच्छ-भल्लमहिसेसु । नाणाविहाइं दुक्खाइं हुंति तण्हा-छुहाईणि ॥१९५७।। सस-संबर-रासह-वसह-मेस-सारंग-साण-सरहेसु । एएसु गया सत्ता दुक्खाण परंपरं पत्ता ॥१९५८।। वेरनिबद्धाण तहिं आहारत्थीण एक्कमेक्काणं । तिरियाणं नत्थि सुहं सपक्खपरपक्खभीयाणं ॥१९५९।। सारीर-माणसाइं तिरिक्खजोणीगएण जीवेण । जाइं न पत्ताइं पुणो नत्थि च्चिय ताई दुवखाई ॥१९६०॥ एव असंखदुक्खा तिरिक्खजोणीमए समक्खाया । एत्तो माणुसजोणी कहिज्जमाणी निसामेह ।।१९६१।। मउया विणीयविणया सदारसंतोसिणो अमच्छरिणो । अक्कोहणा अमाणा मायारहिया अलुद्धा य ॥१९६२।। पयईए भद्दया जे हवंति सुस्सूसगा गुरुजणाणं । न य तप्पंती बहुसो ठूण परस्स रिद्धीओ ॥१९६३।। नाइपरिग्गहनिरया सीलम्मि न सुत्थिया उ जे जीवा । ते मज्झमगुणजोगा मणुयगई बंधगा भणिया ॥१९६४।। ते वि य मणुया दुविहा अणारिया आरिया य नायव्वा । तत्थ अणारियमणुया बहुभेया होंति नायव्वा ।।१९६५।। सग-जवण-सबर-बब्बर-मिल-मुरुंडोड्डमलय-पारसिया। सिंहल-नेगम-अंधा एमाइ अणारिया भणिया ॥१९६६।। १ कहिज्जंता पा० ।२ जायणे पा० । ३ कहिज्जंतं पा० । ४ नयणबद्धिमो जे० । ५ सिउसिय पा०। ६ बहुपायया पा० । ७ तत्तसंतत्ता पा० । दुहन पा० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322