Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 230
________________ सिरिरिसहसामिदेसणा १८९ घणपीणचारुवट्टियविथिण्णकडीविसालजहणाहिं । ससिसंपुण्णमणोहरवयणाहिं विसालनयणाहिं ।।१९९७।। आहरण-मणि-मणोहर-हारविरायंतरइयवच्छाहिं । कडियडरसंत-मेहल-मणहर-मिऊउरुजुयलाहि ।।१९९८।। मियमंजुलमणहरभासिणीहिं विणओवयारनिउणाहि । नीलुप्पल-कुवलय-सुरभिगंधनीसासवयणाहिं ।।१९९९।। हरिचंदणअद्दविलेवणाहिं धम्मेल्लधरियकुसुमाहि । चीणंसुयरत्तनियंसणाहिं वरनेउरधराहि ॥२०००।। सुरवसभा सयणगया ताहि समं अच्छराहि विसयसुहं । भुजंति परमसुहिया विमाणवरभवणमज्झगया ॥२००१।। सहसागरावगाढा ते मईया भुजिऊण विसयसुहं । अवसाणचवणकाले पावेंति अणोवमं दुक्खं ॥२००२॥ तं तेसि सुरसोक्खं सागरपलिओवमेहिं जं भुत्तं । तं सव्वं पम्हुठं दुक्खेणं चवणकालम्मि ॥२००३।। एवं विहे वि भोए भोत्तूणं ताण चवणकालम्मि । गरुयाण वि गरुययरं उप्पज्जइ दारुणं दुक्खं ॥२००४।। दळूण भुज्जमाणी मणुयभवे माणुसि मणुस्सेण । तत्थुप्पत्ति निएवि अत्तणो ओहिनाणेण ॥२००५।। जं उप्पज्जइ दुक्खं तिक्खं तियसाण हिययमज्झम्मि । तेण ते तक्खणच्चिय न मरंतमर त्ति काऊणं ।।२००६।। ईसा-विसाय-कोह-लोह-दोसेहिं दूसियमणाण । देवाण वि नत्थि सुहं कत्तो पुण सेसजीवाणं ॥२००७॥ नारय-तिरिय-नरामरगईसु गणहारि! नत्थि जेण सुहं। ता मोक्खं निमित्तं संजमम्मि दढमायरं कुणसु ॥२००८।। जीवसरूवं कम्माण वित्थरं चउगईए दुक्खाई । जिणभणियाइं सोउं परिसा संवेगमावण्णा ॥२००९।। एत्थंतरम्मि कुमरा लद्धावसरा भणंति जिणपुरओ । ताय ! तए दिण्णाई भरहोणे हरइ रज्जाई ॥२०१०॥ ता कि समप्पयामो जुज्झामो अहव तेण सह अम्हे । नियघरकलहो नियरज्जढोयणं दो वि दुक्खाइं ॥२०११।। तेलोक्क-रक्खणक्खम-केवलवरनाणदिट्ठदट्टव्व । गरुओ गरुयाण तुमं जं कायव्वं तयं भणसु ॥२०१२।। अह भणइ जिणवरिंदो अइसयवरमणियसयलपरमत्थो। विसएहिं नियत्तंतो परमप्पा परमकारुणिओ ॥२०१३।। विसया विसं व विसमा कसंति जीवं अओ कसाय त्ति । लच्छी वियारदच्छी वच्छा ! मा कुणह पडिबंध ॥२०१४।। महुरमणोह रगीयं निसुणंता निच्चला अणिमिसच्छा । हरिणा जंति विणासं सोइंदियवसगया संता ॥२०१५॥ आलोयदसणमुहा जलियम्मि हुयासणे अबुद्धीया । निवडंति पयंगा वि हु चक्खिंदियदोसदुईता ।।२०१६।। जलमज्झम्मि अगाहे जिभिदियविसयमंस-रसलुद्धा। मीणा जंति विणासं गलगहिया जीहदोसेण ॥२०१७।। दाढाभंगं जा जीवबंधणं जमलजीहरत्तच्छा । पावेंति भयंगा वि ह घाणिदियवसगया संता ॥२०१८॥ भिन्नकूसकुंभयडा संकलअंदुहिं बद्धसव्वंगा । फरिसविसयम्मि रत्ता दुक्खमणंतं गया पत्ता ॥२०१९।। पंचिंदियविसयविमोहियस्स जीवस्स विसयतिसियस्स । पच्चक्खं चि य दीसइ दुक्खं बहुयं सुहं थोवं ॥२०२०।। हियइच्छियविसयसुहं अलहंतो रागदोसपडिबद्धो । करणकय त्थियहियओ पावो पावाइं आयरइ ॥२०२१।। जीवाणं कुणइ वहं जंपइ अलियाई हरइ परदव्वं । पत्थेइ य परदारं पिंडेइ परिग्गहं पउरं ॥२०२२।। पावाइं आयरंतो इहलोए चेव दुत्थिओ होइ । परलोए पुण पावइ दुक्खाई बहुप्पयाराइं ॥२०२३।। भवसयसहस्स गुविलो जाइ-जरा-मरण-वेयणा पउरे । भमइ अणंतं कालं विसयामिसखंजणे खुत्तो ।।२०२४।। एवंविहविसमयसुहे नत्थि सुहं दुक्खमेव अणुबद्धं । विसमीसभोयणे इव भुत्ते विणिवायकडुयम्मि ॥२०२५॥ जह बालो अन्नाणी नियएणं असुइणा रमइ मढो । तह कामरागरत्तो रज्जइ विसएसु मोहंधो ॥२०२६।। तं भो भद्दा ! जाणह विसयसुहं अप्पसोक्ख-बहुदुक्खं । मुहमहरं कड्यफलं विसफलसरिसोवमं होइ ॥२०२७।। १ बंधो पा०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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