Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिरिसहसामिवण्णणं
१५१
जा पवणपोयसरिसा लच्छी मह होउ तीए लच्छीए। वेसाए इव बहुजणनिदियाए परिणामविरसा एसा ॥१३४२।। अह सो वि पवणकेऊ लच्छी लहिऊण नमइ सविसेसं। देव-गुरूणं सुहि-सयण-बंधु सोयासिणीणं च ॥१३४३।। जह जह वड्ढइ विहवो तह तह धीरा नमंति सविसेसं । जह जह नमति तह तह विहवो वि समग्गली होइ॥१३४४।। लच्छीए अणुच्छेओ उचियपवित्ती पहाणविणओ य । रूवेण समं सीलं जइ लब्भइ पवणकेउम्मि ।।१३४५।। भुवणोवयारदुत्थियदेहा अवगणियगरुयनियकज्जा। न णु पवणकेउसरिसा पुरिसा महि मंडले विरला ।।१३४६।। जे पवणकेउसरिसा ते थोवा पवणपोयसरिसाण। ठाणे ठाणे नरवर नराण पोया भरिज्जति ॥१३४७।। वड्ढंतु छेयतमंधयारविणिहयविवेयउज्जोवो। तं नत्थि जं न जंपइ पुरिसो लच्छीए वेलविओ।।१३४८।। वत्तव्वमवत्तव्वं कज्जमकजं न याणई मूढो । वेसा इव लच्छीए कम्मणकारीए कम्मणिओ।।१३४९।। गुणरयणहरणदच्छी लच्छी सगुणे वि निग्गुणे कुणइ। विगुणेसु गया मरणं जं न कुणइ तं महच्छरियं ॥१३५०।। मा वहउ कोइ गव्वं गुणेहि विहवेहि मह समो नत्थि । गरुयाण वि जंगरुया गुणिणो धणिणो य दीसंति ।।१३५१॥ गरुए वि विहवसारे निरहंकारेण होइ होयव्वं । जह पवणकेउणा तह नरेण अप्पहियकामेण ॥१३५२॥ सोऊण इमं वयणं बाहुबली भणइ सच्चमेवेयं । इच्छामि पवणकेउं केण वि कज्जेण दह्रमहं ॥१३५३।।
एवं सुणिय सद्दाविओ मंतिणा दोवारिओ भणिओ य-"अरे! लहं गंतुण भणसु पवणकेउं जहा-अकयकालक्खेवं समागंतूण महारायपयपंकयं पेच्छसु ।" तेण वि तहेव गंतुण साहियं। तओ पवणकेऊ वि गहियपाहुडो झत्ति समागओ रायंतियं। पणामियपाहुडो विहियपणामो निसन्नो दरिसियाणे। आलावाईहिं गयगव्वं सच्चवयणम्मि य महुरभासिरं दळूण रंजिओ राया। 'जोगो' त्ति काऊण भणिओ राइणा--"महाभाग ! धम्मपुरिसो तुमं धम्माणुगयं किं पि भणिज्जसि।" पवणकेउणा भणियं-"जं सामी समाइसइ तत्थ पउणो एस जणो।" रन्ना भणियं--"जइ एवं तो मए पिउपयट्ठाणे धम्मचक्कं कारियं गामारामाइयं च पूजानिमित्तं वियरियं। तत्थ तए जहाभिरुयइ पुरिसतिगसहिएण चिंता कायवा।" पवणकेउणा पडिवघ्नं रायसासणं। हारप्पह-सुप्पह-महप्पहाभिहाणा दंसिया राइणो तिन्नि सहाया। राइणा वि 'जं पवणकेऊ भणइ तं तुब्भेहिं कायव्वं' ति भणिऊण विसज्जिया ते। पवणकेऊ वि नियंगलग्गवत्थाहरणाईहिं सम्माणिऊण भणिओ राइणा--"तुममेत्थकारणं पहाणपुरिसो उस्संको उक्करो कयावराहो वि निरावराहो मह रज्जे जेण केण वि पओयणं तं मह कहेयव्वं ।" एवं भणिऊण विसज्जिओ गओ सभवणं । जहाइट्ठ विहिणा धम्मचक्क चितं कुणंतो कालं गमेइ। भगवं पि तक्खसिलाओ नयरीओ अडवइल्लाइस देसेस वोसद्रचत्तदेहो दंसणमेत्तेण वि अणारियाण भद्दगभावं जणंतो वाससहस्समणुणं मोणेण निरुवसग्गं विहरिऊण पूणो वि विणीयाए नयरीए उज्जाणत्थाणं पुरिमतालं नाम नगरं संपत्तो। तत्थ उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए सगडमुहं नाम उज्जाणं। तम्मि नग्गोहपायवस्स हेढा अट्ठमेणं भत्तेणं पुव्वण्हदेसकाले उदयंते सुरिए फग्गुणबहलेक्कारसीए उत्तरासाढानक्खत्ते पव्वज्जदिवसाओ आरब्भ वाससहस्सम्मि गए भगवओ तिहयणेक्कबंधवस्स दिव्यमणंतं केवलवरनाणदंसणं सम्प्पन्न । सिरिवद्धमाणसूरीहिं विरईए रिसहनाहचरियम्मि जिणकेवलकल्लाणो तुरियाहिगारो परिसमत्तो।। चउत्थ अहिगारो--
बत्तीसं पि सुरिंदा केवलनाणूसवं मुणेऊण। निय-निय रिद्धिसमेया समागया जिणसगासम्मि ॥१३५४।। भवणवइ-वाणमंतर-जोइसिय-विमाणवासदेवेहिं । संरुद्धं धरणियलं इओ तओ संचरंतेहिं ।।१३५५।। एगत्तो जिणरविणा अन्नत्तो देवदेहदित्तीए। पारद्धो तमनियरो नट्ठो नीए पयं कुणइ ॥१३५६॥ जोयणमेत्ते खेत्ते वाउकुमारेहिं सक्कवयणेण । तणसक्कराइसव्वं विहणिय दूरम्मि पक्खित्तं ॥१३५७।
४. वर्सेतु पा० ।
१.हा होउ पा०। २. पि पा०। ३. जह मं० जे०। ५. पइट्टाणे पा०। ६. चितंतो पा०। ७. तस्स पा०। ८. पयं देइ पा०।
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