Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
________________
१७४
जुगाइजिणिदचरियं
सम-विसम-निक्खुडाणि य सव्वाणि तहेव ओयवित्ता गहियविविहोवयारे अणहसमग्गे भरहरायं नियमागम्म समप्पिओवयारे भरहरण्णा सक्कारिऊण विसज्जिओ पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुब्भवमाणे विहरइ ।
तए णं से चक्करयणे अण्णया कयाइ आउहसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खत्ता उत्तरपुरस्थिमेणं दिसीभाएणं चुल्लहिमवंतपब्वयाभिमुहे पयाए यावि होत्था। भरहे वि चक्करयणमग्गाणुलग्गे जोयणपमाणमेत्तेहिं सुहपयाणएहि वहमाणे जेणेव चल्लहिमवंतस्स दाहिणिल्ले नियंबे तेणेव उवागए उवागच्छित्ता खंधावारनिवेसं करेइ । चुल्लहिमवंतकुमारस्स देवस्स अदमभत्तं गिण्हइ अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि पोसहसालाओ पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ता रहमारुहइ ,रत्ता जेणेव चल्लहिमवंते पब्वए तेणेव उवागच्छइ, उबागच्छित्ता पव्वयं तिक्खुत्तो रहसीसेण फुसइ, फुसित्ता तुरए निगेण्हइ उड्ढं वेडासं नियनामंकियं सरं निसिरइ। से वि य सरे बावत्तरि जोयणाणि गंतूण चुल्लहिमवंतगिरिकुमारदेवस्स पूरओ निवडिए। से वि सरं दठ्ठण खयकालदिणयर व्व कोवकवलियसरीरे दुप्पिच्छे सणियं गंतण सरं गिण्हइ नामक्खराणि वाएड । तओ आसारसलिलेणेव दावानले संते पसंते तं सरं सरसरगोसीसचंदणं सम्वोसहिं देवतरुकूसूममालं कडगाणि य तडिगाणि य दहोदगं च देवदूसवत्थाणि गहाय उवागए। अंतरिक्खपडिवण्णे भरहं रायाणं जय जय सद्देणं अभिनंदिऊण पाहडं पणामेइ भणइ य--अह ण्णं देवाणुप्पियाणं सया आएसकारी उत्तरिल्ले अंतवाले। भरहो वि तं सक्कारेऊण पडिविसज्जेइ ।
तए णं से भरहे रहं परावत्तित्ता जेणेव उसभकूडे पब्बए तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता तं पव्वयं तिक्खुत्तो रहसीसेणं नोल्लेइ रहं ठवेइ, काकिणीरयणं परामुसेइ परामुसित्ता उसभकूडस्स पुरिस्थमिल्लसि कडगंसि नामगं आउडेइ ।
ओसप्पिणी इमीसे तइयाए समाए पच्छिमे भाए। अहमेव चक्कवट्टी भरहो इइनामधेज्जेणं ॥१६७८।। अहमेव पढमराया भरहो भरहाहिवो नरवरिंदो। नत्थि महं पडिसत्तू जियं मए भारहं वासं ॥१६७९।।
एवमक्खराणि लिहिऊण रहं परावत्तेइ। तेणेव विहिणा खंधावारमागंतूण भोयणाईयं करेत्ता सहामंडवम्मि बहुजणपरिवारिए। जा चिट्ठइ भरहवई विविहालावेहि सह पहाणेहिं ।। नारयनामा भद्दो गयणाओ ताव संपत्तो ॥१६८०।। कयसम्माणो भरहाहिवेण दिण्णासणम्मि उवविट्ठो। भरहेण पणयपुव्वं पणमियपुट्ठो जणसमक्खं ॥१६८१।। नारयं ! कहेसु सव्वं सव्वत्थ निवारिया गई तुज्झ । महिवलयमडतेणं' जइ दिट्ठ किंपि अच्छेरं ? ॥१६८२।। भरहो गरुओ खयरा वि उण्णया हवइ ताण जइ जुज्झं। ता एत्थ समरतुमुले मणोरहा मज्झ पुज्जं ति ।।१६८२।।अ इय चितिऊण हियए पयडपयं भणइ नारओ एवं । सुण सावहाणहियओ भरहाहिव ! जं मए दिट्ठ॥१६८३।। होइ च्चिय साहारो साहारो सयलसुयण सउणाण। अन्नो वि को वि अंबो विच्छाओ निष्फलो होइ।।१६८४।। विच्छायविरसविहलेहिं अंबएहिं व केइ पुत्तेहिं। पुरिसत्थवज्जिएहि निव्ववसाएहि वसणीहि ॥१६८५।। दुहिया वि का वि सा कह वि होइ चिंच व्व फलभरो' णमिया । सच्छाया जीइ तले वीसमइ सया सुयणवग्गो ॥१६८६।। महिल त्ति मावमण्णह पुरिसोत्ति व आयरं च मा कुणह । तवइ तणं किं न रवी-ससि-जोण्हा कि न सिसिरेइ०।१६८७।। अत्थित्थ भरहखित्ते सिहरग्गविलग्गरविरहतुरंगो। वेयड्ढो रययमओ वियड्ढजणवण्णणिज्जो त्ति ॥१६८८।। उत्तरदाहिण-सेढीसुसट्ठिपण्णासनयरकलियासु। उत्तरसेढीए तहि रहनेउरचक्कवालपूर
।।१६८९।। १. नियकंतिकवलियतमो ताव नहाओ नारो पत्तो पा.११ २. यभमंतेण पा. । ३. सयण पा. । ४. अंबो वि पा.। ५. व काइ पुत्ते० जे० । ६. दुहिया वि कावि सा कहवि होइ जीसे तलम्मि विसामो जिय कुलहरस्स जायइ निच्चं चिय पमइयमणस्स । ७. चिंचे व्व पा० । ८. फल भरे पा० । ६. सयण पा० । १०. तणू पा० ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322