Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 220
________________ भरहचक्कवट्टिस्स वण्णओ १७९ एगं गरुया बीयं ब सज्जणा महुरभासिणो तइयं । तुम्ह विणएण तुरियं वसीकयं माणसं मज्झ ।।१७८६।। ता खाह पियह बिलसह कुणह पयापालणं विगयसंको। उत्तरदाहिणसेढी सुरसरिया रायहंस व्व ।।१७८७।। सोऊण भरहवयणं हरिसवस-विसप्पमाणहियएहिं । विणमिनमीहिं भणियं लज्जोण्णयवयण-कमलेहिं ।।१७८८।। संतगुणकित्तणाण वि गरूयाण अहोमुहंति वयणाणि। अलिएहिं वि नीयजणाहिट्ठा हियए न मायंति ।।१७८९।। मुहससिणो गरुयाणं अमयं व विणिस्सरं ति बयणाणि। खलवयणतावतविओ तेहिं चिय जियइ जियलोओ।।१७९०।। गरूयत्तणं पबड्ढइ वि गुणाण वि गरूयवण्णियगुणाण । लज्जं जणिति सगुणा वि निग्गुणेहिं गहिज्जता ॥१७९१॥ भणियं च-- दोसा वि गारविज्जति गुणमहग्घेहि सव्व विजंता । लज्जिज्जइ निग्गुणसलहिएहिं गरूएहि वि गुणेहिं ।। १७९२।। तओ भरहो वत्थाभरणाईहिं सम्माणिऊण खेयराहिवे विसज्जेइ। अप्पणा वि चक्क-रयणदेसियमग्गे उत्तरपुरत्थिमेणं दिसीभागेणं गंगादेविभवणाभिमुहे पयाए यावि होत्था। तए णं से भरहे गंगाभवणस्स नच्चासण्णे नाइदूरे विजयखंधावारं निवेसं करेइ। जा सिंधुदेवी तहा गंगं पि ओयवेइ। सो पुण गंगादेवी कुंभट्ठसहस्सं रयणचित्तं नाणामणि-कणग-रयण-भत्तिचित्ताणि य दुवे सिंहासणाणि उवणेइ। भरहो वि गंगाए अट्राहिया महामहिमं काऊण चक्करयणदेसियमग्गे दाहिणदिसाए खंडप्पवायाभिमुहे पयाए यावि होत्था। तए णं से भरहे खंडप्पवायगुहासण्णे खंधावारनिवेसं करेइ। नट्टमालयं मणसी काऊण अट्टमभत्तं पगिण्हइ अट्रमभत्तंसि परिणममाणंसि तस्स नट्टमालयदेवस्स आसणं चलइ। आसणं चलियं पासित्ता ओहिं पउंजइ केवलकप्पं जंबद्दीवं ओहिणा आभोएमाणे आभोएमाणे भरहाहिवं पासइ, पासित्ता भरहंतियमागच्छइ। नाणाविहाणि आहरणाणि भरहस्स उवायणी करेइ। सेवं च पडिवज्जइ। भरहो वि तं सक्कारिऊण विर्सज्जेइ। अद्राहिया महिमं च करेइ । तए णं से भरहे नमुमालयस्स अद्राहियाए निव्वत्ताए समाणीए सेणावई आणवेइ--- "गच्छह णं भो! गंगापुग्विल्लं निक्खुडं समविसमाणि य ओयवेहिं । सो वि सिंधु-निक्खुडवत्तव्वयाए सव्वं ओयवेइ ओयवित्ता गहियनाणाविहोवयारे जेणेव भरहे तेणेव उवागच्छइ सव्वोवयारे भरहस्स उवणेइ। भरहविसज्जिए विउलाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ। भरहो वि वाससहस्समणणं गंगा देवीए सह भोगे भुंजइ। तए णं से भरहे अण्णया कयाइ सेणावई आणवित्ता एवं वयासी--"गच्छ णं भो खंडप्पवायगुहाए उत्तरिल्लस्स दुवारस्स कवाडे विहाडेहि, विहाडित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि" । तए णं से सेणावई नमुमालयं देवं मणसी काऊण अट्ठमभत्तं गिण्हइ । तम्मि य परिणममाणंसि पोसहसालाओ पडिनिक्खमेइ पडिनिक्खमित्ता हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्त प्पमहग्याभरणालंकियसरीरे धवकडच्छयहत्थगए जेणेव खंडप्पवायगहाए उत्तरिल्ले दुवारे जेणेव ताणि कवाडाणि तेणेव उवागच्छइ आलोए पणामं करेइ करित्ता कवाडे सक्कारेइ सम्माणेइ अट्ठमंगले आलिहइ आलिहित्ता तं दिव्वं दंडरयणं गहाय सत्तट्टपए पच्चोसक्कइ पच्चोसिक्कित्ता ते कवाडे तेण दंडरयणेण महया महया सद्देण तिक्खुत्तो आउडेइ। तए णं ते कवाडा दंडरयणाहया महया महया सडेणं कूचारवं करेमाणा सरसरस्स विहडिया। तए णं से सेणावई भरहस्स एयमाणत्तियं पच्चप्पिणइ। भरहे वि य णं गयवई दुरुढे मणिरयणं परामुसइ तो तं चउरंगुलप्पमाणं मणिरयणं गहाय हत्थिरयणस्स दाहिणिल्लाए कुंभीए निक्खिवइ तेण मणिरयणेण विणियतमंधयारे स बलवाहणखंडप्पवायगुहं पविसइ। कागिणीरयणेण य एगणपंचासमंडलाणि आलिहइ। संकमकरणेण उम्मग्गनिम्मग्गाओ उत्तरइ। ताओ पूण नईओ पच्चत्थिमेल्लाओ कडगाओ पवढाओ पुरथिमिल्लेणं गंगानइं समप्पिति । तए णं से भरहे सुहं सुहेणं वहमाणे ताव गए जाव खंडप्पवायगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडा ते पुण सयं चेव विहिडिया। तए णं से भरहाहिवे सबलवाहणे तीए गुहाए दाहिणिल्लेणं दुवारेणं नीइ। तए णं से राया गंगाए नईए पच्चत्थिमंसि कूलसि खंधावारनिवेसं काऊण निहिरयणे मणसी काऊण अट्ठमभत्तं पगिण्हइ। तए णं अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि अपरिमियरत्तरयणा धुवा अक्खया अव्वया लोयविस्सुयजसा लोगोवचयकरा देवकयपाडिहेराओ उवागया नवनिहओ तं जहा--- नेसप्पे पंड्यए पिंगलए सव्वरयणतहा महापउमे। काले य महाकाले माणवगमहानिही संखे ।।१७९३।। नेसप्पम्मि निवेसा गामागर-नगर-पट्टणाणं च । दोणमह-मंडबाणं खंधावारावण-गिहाणं ।।१७९४।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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