Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

Previous | Next

Page 221
________________ १८० जुगाइजिणिंदचरियं गणियस्स य उप्पत्ती माणुम्माणस्स जं पमाणं च । धण्णस्स य वीयाण य निप्फत्ती पंडए भणिया ॥१७९५॥ सव्वा आभरणविही पूरिसाणं जा य होइ महिलाणं। आसाण य हत्थीण य पिंगलगनिहिम्मि सा भणिया ॥१७९६।। रयणाणि सव्वरयणे चोद्दसवि वराइं चक्कवद्रिस्स । उप्पज्जंते पंचिदियाई एगिदियाई च ।।१७९७।। वत्थाण य उप्पत्ती निप्फत्ती चेव सव्वभत्तीणं । रंगाण य धोव्वाण य सव्वा एसा महापउमे ।।१७९८॥ काले कालन्नाणं भव्वपुराणं च तिसु वि कालेसु । सिप्पसयं कम्माणि य तिण्णि पयाए हियकराइं ॥१७९९।। लोहस्स य उप्पत्ती होइ महाकाले आगराणं च । रुप्पस्स सुवण्णस्स य मणि-मोत्तिय-सिलप्पवालाणं ॥१८००।। जोहाण य उप्पत्ती आवरणाणं च पहरणाणं च । सव्वा य जुद्धनीई माणवगे दंडनीई य ॥१८०१॥ नट्टविहि नाडगविही कव्वस्स य चउव्विहस्स उप्पत्ती । संखे महानिहिम्मी तुडियंगाणं च सव्वेसि ॥१८०२।। चक्कट्ठपइट्ठाणा अट्ठस्सेहा य नव य विखंभा । बारसदीहा मंजूससंठिया जण्हवीयमुहे ॥१८०३।। वेरुलिय-मणिकवाडा कणगमया विविह-रयण-पडिपुण्णा । ससि-सूर-चक्क-लक्खण अणुवमवयणोववत्तीया ॥१८०४॥ पलिओवमठिईया निहिसरिनामा य तेसु खलु देवा । जेसिं ते आवासा अक्केज्जा आहिवच्चा य ॥१८०५॥ एए नवनिहिरयणा पभूय-धण-रयण-संचयसमिद्धा.। जे वसमणुगच्छंति भरहाहिवचक्कवट्टीणं ॥१८०६।। तए णं भरहे राया निहिरयणाणं अट्ठाहियं महिमं करेइ । निव्वत्ताए अट्टाहिया महिमाए सुसेणं सेणावई सद्दावेइ सद्दावइत्ता एवं वयासी-“गच्छ गं तुमं देवाणुप्पिया! गंगाए पुरथिमिल्ले दोच्चं निक्खुडं ओयवेहि।से वि ओयवेत्ता पडिनियत्ते समाणे तमाणत्तियं पच्चप्पिणइाभरहेण सक्कारियसम्माणियपडिविसज्जिए माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ। तए णं से चक्करयणे अग्णया कयाइं अंतलिक्ख-पडिवण्णे साहियछक्खंडमेइणीतले विणीयाभिमुहे पयाए यावि होत्था। तए णं से भरहे राया हत्थिखंधवरगए अज्जियरज्जे निज्जियसत्तू उप्पण्ण-सयल रयणप्पहाणे नवनिहिसमिद्धकोसे बत्तीसा. रायवरसहस्साणुगयमग्गे सट्ठीए वाससहस्सेहिं केवलकप्पं भारहवासं ओयवित्ता ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगलपायच्छित्ते अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरे अमरवइसन्निहाए रिद्धीए तिहयणपहियकित्तीचक्क-रयणदेसियमग्गे हय-गयरह-जोइ-चउम्बिहसेण्णसन्निनाएण पक्खुभियसमद्दरवभूयं पिव मेइणि करेमाणे गामागर-नगर-खेड-कब्बड-मडब-पट्टाणासम सन्निवेसाइं लंघेमाणे जोयणंतरियाहि वसहि वसमाणे वसमाणे विणीयं रायहाणि उवागए, अदूरसामंते कयखंधावारनिवेसो पोसहसालमणुपविसइ णिरुवसग्गपच्चयं विणीयं रायहाणि मणसी करेमाणे अट्टमभत्तं पगिण्हइ अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि पोसहसालाओ पडिनिक्खमइ पडितिक्खमित्ता अणेगभड-भोइयाइसहिए पवरविहीए भुत्ते समाणे सिंहासणवरगए संवच्छरिय निवेइए सुहमुहुत्ते आसिय-सम्मज्जिओवलितं उसियधयपडागं पइभवणनिबद्धवंदणमालं मंचाइमंचकलियं सिंघाडगगतिय-चउक्क-चच्चर-चउमुह-महापह-पहेसु कणयघडियासु डज्झमाणकालागरु-कुंदुरुक्क-तुरुक्क-कप्पूरपूरविणिस्सरंतधूमधयारियनहयलं विणीयं नरि पविसिउमारखो। . तए णं भरहस्स पविसमाणस्स बहवे अत्थत्थिया कामत्थिया भोगत्थिया पुसमाणया एवं वयासी-जय जय नंदा! जय जय नरवसभा! भद्रं ते अजियं जिणाहि, सत्तुवक्खं विजियं पालेहि भारहं वासं । इंदो इव देवाणं, चंदो इव तारयाणं, धरणो विव नागाणं, बहईओ पुव्वकोडाकोडीओ विणीयाए नयरीए चल्लहिमवंत-गिरि-सागर-मेरागयस्स य सगामागर-नगर-खेडकब्बड-मंडब-दोणमुह-पट्टणासम-सन्निवेससहियस्स भारहवासस्स समं पयापालणोवज्जिय-लद्धजसे महयाईसरियं करेमाणे पालेमाणे सुहं सुहेणं विहराहि" त्ति कट्ट, अभिनंदंति अभिथुणंति य । तए णं से भरहे राया सयलनरनारिमणोरहमालाहिं विच्छिप्पमाणे नयणसहस्सेहिं पेच्छिज्जमाणेअंगलिसहस्सेहिं दंसि-ज्जमाणे सगभवणवरवडेंसगपडिदुवारे उवागच्छित्ता हत्थिरयणं ठवेइ ठवित्ता तत्तो १. महया ईस पा. २. मालाहि पत्थिज्जमाणे जे. । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322