Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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१७०
जुगाइजिदिचरियं
य चुन्नाणि य तुडियाणि य गहाय समागए पुरओ होऊण जयसद्दं पउंजइ सेवं पडिवज्जइ पाहुडं च पणामेइ । भरहो वि पाहुडं पडिवज्जिय कयसक्कारं कयमालयं विसज्जेइ । अप्पणा वि खंधावारमागम्म अट्ठमाओ पारेइ । कयमालयस् अट्टाहिया महिमं करेइ । अभिनिव्वत्ताए अट्ठाहियाए महिमाए भरहे सुसेणं सेणावइरयणं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-गच्छाहिणं भो सुसेणा सिंधूमहानईए पच्चत्थिमेल्लं निक्खुडं ससिंधु - सागर - गिरि-मेरागं सम-विसम-निक्खुडाणि य ओयवेहि, ओयवित्ता अग्गाई वराई पंचवन्नाई रयणाई पडिच्छाहि, पडिच्छित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि" । तए णं से सुसेणे बलस्स नया भर वासम्म विस्सुय - जसे महाबलपरक्कमे महप्पा ओयंसी तेयंसी पवरलक्खणजुए मिलक्खु भासा विसारए चित्तचारभासी भरहे वासम्मि नाणाविहनिक्खुडाणं निन्नाण य जलदुग्गमाण य थलदुग्गमाण य दुप्पवेसणाण य वियाणए अत्थ- सत्थ- कुसले सेणावइरयणे सुसेणे भरहेणं रन्ना एवं आणत्ते समाणे हट्टतुट्ठे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए दस हं अंजलि मत्थए कट्ट. "एवं सामी तह" त्ति आणाए विणएण वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता सए आवासे उवागच्छइ कोडुंबियपुरिसे आणवेइ - "खिप्पामेव भो ! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह, हयगय रहजोह संरुद्धमेइणीतलं चाउरंगिणी सेन्नं सन्नाह।" ते वि तहेव सव्वं काऊण पच्चप्पिणंति । तए णं सुसेणे सेणावई जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता पहाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छिते अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे संनद्धबद्धवम्मियकवए उप्पीलिय सरासणपट्टीए पिणद्धगेवेज्जे आविद्धविमलवरचिंधपट्टे गहियाउहप्पहरणे अणेगगणनायग-दंडनायगसेट्ठि - सत्थवाहसंधिवाल- दूयपमुहपरियणसंपरिवुडे मज्जणघराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता हत्थिरयणं दुरूढे । तए णं से हत्थिखंधवरगए उवरिविरायंत सेयपुंडरीए सेयचामराहिं उद्धव्वमाणीहिं २ चाउरंगिणीए सेणाए समंतओ संपरिवुडे जेणेव सिंधुनईए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता अणेगासु सलिलासु समुद्देसु महादहेसु य समुत्तारणसमत्थं जत्थ णं सणसत्तरसाई सव्वधन्नाई उदयंते वावियाइं अत्थमणसमए लुणिज्जंति जे वि य णं वासं नाऊण चक्कवट्टिणा परामुट्ठे समाणे दुवालसजोयणाणि तिरियं पवित्थरइ, तं चम्मरयणं परामुसइ । तए णं से चम्मरयणे सुसेणसेणावइणा परामुट्ठे समाणे नावाभूए जाए यावि होत्था ।
तए णं सेणावई चउरंगबलसहिए तं चम्मरयणं दुरुहइ, दुरुहित्ता विमलजलतुंगवीइयसिधुमहानई नावाभूएणं चम्मरयणेणं उत्तरइ। तओ सिंधु समुत्तरित्ता अप्पsिहयसासणे सेणावई कहिं चि गामागर-नगर-पव्वयाणि कहिं चि खेडकब्बड-दो मुह-पट्टण-मडंबाणिसिंहलए बब्बरए टंकणाए मिलक्खुविसेसे जवणदीवं च पवरमणि-कणग-रयण-कोससमिद्धं कालमुहे जोणए य उत्तरवेयड्ढसंसियाओ नाणाविहाओ मेच्छजाईओ अवरेण जाव सिंधुससागरं ति सव्वपवरं कच्छदेसं
ओवेऊण पडिनियत्ते बहुसमरमणिज्जे य भूमिभागे तस्स कच्छस्स सुहनिसन्ने, ताहे ते जणवयाण नगराण पट्टणाण य अन्नेसि च बहूणं खेड-कब्बड - मडंबाईण महिवइणो आभरणाणि भूसणाणि वत्थाणि य महरिहाणि रयणाणि य पंचप्पयाराणि य पवणवेगे तुरंगमे मयजलसंसित्तधरणीयले भिन्नगंडे गयाहिवे अंजणकटुनिप्फन्ने पवररहवरे हिरन्नं सुवन्नं अन्नं च जं वरिठ्ठे रायारिहं तं सव्वं सेणावइस्स उवर्णेति काऊण अंजलि मत्थयम्मि पणया एवं वयासी -- "तुम्हेत्थ अम्हाण सामिया देवयावयं तुम्ह विसयवासिणो "त्ति जंपमाणा सरणमुवगया ।" सेणावइणा वि जहाहिं ठविय पूइया विसज्जिया समाणा सगाणि सगाणि नगराणि पट्टणाणि दोष्णमुहाणि वि समाणिय अणुपविट्ठा। ताहे सेणावई घेण पाहुडाणि पुणरवि सिंधुनामधेज्जं अणहसासणे अक्खयबले महानई उत्तिने सुहपयाणएहिं समागतूण ताणि पाहुडाणि आभरणाणि रयणाणि वत्थाणि य करिणो हरिणो रहवरे अन्नं पि रायारिहं सव्वं भरहाहिवस्स समप्पे | अप्पणावि सक्कारिए सम्माणिए विसज्जिए सहरिसे सगमावासमुवागए सेणावई ।
तए णं से भरहे अन्नया कयाइ सेणावईं सद्दावेत्ता एवं वयासी -- " गच्छ णं भो ! तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडे विहाडेहि, विहाडेत्ता एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणाहि ।" तए णं से सेणावई जेणेव तिमिसगुहा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिमिसगुहाए अदूरसामंते ठिच्चा कयमालयं देवं मणसी काऊण अट्टमभत्तं परिण्हइ । अट्टमभत्तंसि परिमाणंसि हाए सुइभूए सुद्धप्पावेसाइं पवरवत्थाई परिहिए धूवकडच्छुयहत्थगए मज्जणघराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव तिमिसगुहाए दाहिणे दुवारे तेणेव पहारित्थगमणाए । तओ सणियं सणियं जेणेव ताणि कवाडाणि तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ताआलोए पणामं करेइ, करिता अट्ठाहिया महिमं करेइ अट्ठट्ठमंगलए आलिहइ, आलिहइत्ता
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