Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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भरहचक्कवट्टिस्स वण्णओ
१६९ -
कणग-तविय-पंकज-जासुमण-जलियजलण-सुगतुंडरागं, . गुंजद्ध-बंधुजीवग-रत्तहिगुलुय-सिंदूर-रुइल-कुंकुम-पारावय-चलण नयण-रत्तासोय-किसुयगयतालु-सुरिंदगोवगसमप्पह, बिंबाफल-सिलप्पवाल-उटुिंतसूरसरिसं, सव्वोउयकुसुमआसत्त-मल्लदाम, ऊसियसेय-ज्झयं, महामेहरसिय-गंभीरनिद्धघोसं, सत्तु-हियय-कंपणं, तिहुयणविस्सुयजसं पुहइविजयं लभं नाम चाउघंट आसरहं नरवई दुरूढे ।
तए णं से नरवई दाहिणाभिमुहे वरदामतित्थेणं चक्कधुरा पमाणं लवणजलहिजलमोगाढे धणं गिण्हइ सरं मुयइ से वि य णं सरे वरदामतित्थाहिवस्से भवणंगणे निवडइ से वि य णं वरदामतित्थाहिवई सकोवे सरं गिण्हइ । उप्पन्ने भरहे पढमभरहाहिवइ त्ति अक्खराणि वाएइ । पसमसलिलविज्झवियकोवानले रयणमालं मउडं मुत्ताजालं हेमजालं कडगाणि तुडियाणि य गहाय आगए। भरहं एवं वयासी--"अह एणं देवाणुप्पियाणं आणानिद्देसकरे वरदामतित्थाहिवे दाहिणिल्ले अंतेवासी । तं गिण्हंतु णं देवाणुप्पिया! इमं पीइदाणं ति भणिऊण मालामउडाइयं पणामेइ। भरहे वि सम्म पडिच्छइ वरदामतित्थाहिवं सक्कारेइ सम्माणेइ पडिविसज्जेइ। अप्पणा वि जेणेव विजयखंधावारे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता ण्हाए य कयबलिकम्में भुत्ते समाणे वरदाम-तित्थाहिवस्स अट्टाहियं महिमं करेइ। तओ चक्करयणं देसियमग्गे पच्चत्थिमदिसाभिमुहे पयाए यावि होत्था। तहेव खंधावारनिवेसं पभासतित्थासन्ने करेइ तहेव अट्ठमं गिण्हइ रहमारूहइ पभासतित्थेणं रहनाभिमेत्तजलं लवणसमुदं ओगाहइ सरं मुयइ से वि य णं सरे पभासतित्थाहिवस्स घरंगणे निवडइ। से वि य णं पभासतित्थाहिवे सर-नामक्खर-विनायवुत्तंते चूडामणीदिव्वं उरत्थंगे वेज्जंसोणीसुत्तं कडगाणि य तुडियाणि य गहाय समागए। अंतलिक्खपडिवन्ने जए णं विजएणं भरहाहिवं वद्धावेइ वद्धावइत्ता एवं वयासी-“अह ण्णं तुब्भाणं विसयवासी पभासतित्थाहिवे देवाणुप्पियाणं किंकरे वसे वट्टामि तं गिण्हंतु णं देवाणुप्पिया इमं एयारूवं मम पाहुडं “ति भणिऊण मणिमाइयं उवायणी करेइ । से वि सम्मं संपडिच्छइ पभासतित्थाहिवं सक्कारिऊण विसज्जेइ। अप्पणा वि विजयखंधावारमागंतूण अट्ठमाओ पारेइ पभासतित्थहिवस्स अट्टाहियं महामहिमं करेइ। पभासतित्थाहिवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए निव्वत्ताए चक्करयणदेसियमग्गे सिंधूए महानईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरत्थाभिमुहे सिंधुदेवी भवणाभिमुहे पयाए या वि होत्था। .
___ तओ सिंधुदेवी भुवणस्स अदूरसामंते विजयखंधावारनिवेसं करेइ, करित्ता सिंधुदेवि मणे काऊण अट्ठमभत्तं गिण्हइ, अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि सिंधुदेवीए आसणं चलइ । ओहि पउंजइ, जीयकप्पं सरइ "किच्चमेयं तीयपडुप्पन्नमणागयाणं भरहसामियाणं पूयासक्कारं करेत्तए" ति कट्ट कुंभट्टसहस्सं रयणविचित्तं नाणामणिकणगरयणभत्तिचित्ताणि दुवे कणगभद्दासणाणि कडगाणि य तुडियाणी य वत्थाणि य आभरणाणि य गहाय आगच्छइ, आगच्छित्ता अंतलिक्खपडिवन्नाई सखिखिणीयाई पवरवत्थाई परिहिया भरहं रायाणं जएणं विजयएणं वद्धावेइ, वद्धावइत्ता एवं वयासी--अह नं देवाणुप्पियाणं विसयनिवासिणी किकरि त्ति भणिऊण विचित्तरयणकुंभट्ठसहस्साइयं पाहुडं पयच्छइ भरहे वि सायरं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता सिंधुदेवि सक्कारेइ सम्माणेइ संभासेइ पडिविसज्जेइ। अप्पणा विखंधवारमागच्छइ आगच्छित्ता अट्ठमाओ पारेइ, पारित्ता सिंधुदेवीए अट्टाहिया महिमं करेइ निव्वत्तियाए अट्टाहिया महिमाए से चक्करयणे आउहघरसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता उत्तरपुत्थिमेणं दिसीभाएणं वेयड्ढपव्वयाभिमुहे पयाए यावि होत्था।
ताहे जोयणमाणेहिं सुहप्पयाणएहिं गंतूण वेयड्ढपव्वयस्स दाहिणे नियंबे खंधावारं निवेसइ निवेसित्ता अट्ठमं पगिण्हइ अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि वेयड्ढगिरिकुमारस्स वि आसणे चलइ ओहिं पउंजइ पासइ भरहे वासे पढमचक्कहरं समुप्पन्नं । तओ पहट्ठमाणसो नाणाविहरयणाणि महग्धं मोल्लाणि देवदूसाणि आभिसेक्को अलंकारो अन्नपि भद्दासणवीरासणाईयं घेत्तूण समागओ । अंतलिक्खपडिवन्नो भरहाहिवं जएणं विजयणं वद्धावेइ उवायणं पणामेइ सेवं संपडिवज्जइ से वि भरहाहिवे सक्कारिऊण विसज्जेइ । अप्पणा वि खंधावारं गंतूण अट्ठमाओ पारेइ। वेयड्ढगिरिकुमारस्स अट्ठाहिया महिमं करेइ। तए णं से चक्करयणे तिमिसगुहाभिमुहे पयाए यावि होत्था। तयणुचक्काहिवे वि सुहं सुहेण गंतूण तिमिसगृहाए अदूरसामंते खंधावारनिवसं करेइ कयमालयं देवं मणसी काऊण अट्ठमभत्तं पगिण्हइ । अट्ठमभत्ते परिणममाणे कयमाले देवे चलियासणे ओहिनाणनायपरमत्थे इत्थीरयणस्स तिलयचोदसगं आभरणं वत्थाणि य गंधाणि य मल्लाणि
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