Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 208
________________ सिरिरिसहसामिवण्णणं १६७ त्ति भणिऊण पहाणोवगरणसंपाडणपरियणं समाउलं जलाऊरियमणि-कणय-कलसनिरंतरं विमलजलपडहत्थकलहोय दोणीसणाहं फलिहमयसीहासणोवरंजियं संपत्तो ण्हवणभूमियं । निसन्नो पुरत्थाभिमुहो ण्हवणसीहासणे । तओ छेएहिं मेहावीहिं पुरिसेहिं अब्भंगिओ सयपाग-सहस्सपागतेल्लेहिं। संवाहिओ अट्ठिसुहाए मंससुहाए चम्मसुहाए रोमसुहाए चउबिहाए संवाहणाए। उव्वट्टिओ सुगंधगंधवट्टएणं। तओ काओ वि मरगयमहाकुंभपभासामलिज्जतदेहाओ पउमिणीओ व्व सपत्ताओ, काओ वि वामहत्थट्टियकणय-कलसपासविणिहित्तदाहिणकरपल्लवविसटुंतनहमऊहजालाओ, पंचंगुलिविणिग्गयजलपूरपब्भाराओ सलिलजंतदेवयाओ इव काओ वि य कलहोय-कलसवावडकराओ, रयणीओ व्व पुन्निमाइंदमंडलविणिग्गयजोण्हापवाहाओ, काओ वि गुरुकलसुव्वहणायासियसंजायसेयण्हायसरीराओ, जलदेवयाओ व्व फलिहकलस-सणाहाओ, वरतरुणिकामिणीओ परिवाडीए नरनाहमभिसिंचंति । एवं वरविहीए पवरविभूईए पहाए वरवत्थनियत्थे अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे वरमउडदित्त सिरए आविद्धवीरवलए सोलसजक्खसहस्सकयपाडिहरे ह्य-गयरहपवर-जोहसंकुलाए चाउरंगिणीए सेणाए समंतओ परिवेढिए जेणेव आभिसेक्के हत्थिरयणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंजणगिरि-कूडसंनिहं गयवई नरवई दुरूढे अब्भहिय-रायतेयलच्छीए दिप्पमाणे मंगलमुहलमागहसएहि संथुव्वमाणे जयसद्दकयालोए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयचामराहिं उद्धव्वमाणीहिं उद्धवमानीहिं महया कलयलरवेणं पक्खुभियसमुद्दरवभूयं पिव मेइणी करेमाणे नरसीहे नरवई नरिंदे नरवसभे तिहुयणपहियकित्ती अमरवइसन्निहाए विभूईए गंगाए नहानईए दक्खिणिल्लेणं कूलेणं गामागरनगर-खेड-कब्बडमडंब-दोणमुह-पट्टणासम-संवाहसयसहस्समंडियं थिमियमेइणीयं वसुहं अभिजिणमाणे, अभिजिणमाणे, अग्गाइं वराई रयणाइं पडिच्छमाणे पडिच्छमाणे तं दिव्यं चक्करयणं अणुगच्छमाणे अणुगच्छमाणे जोयणंतरियाहि वसहीहिं वसमाणे, वसमाणे जेणेव मागहतित्थे तेणेव उगावगच्छइ। तं च चक्करयणं जोयणं गंतूण ठाइ। तत्थ किल जोयणाण संखा जाया। तएणं से मागहतित्थस्स अदूरसामंते दुवालसजोयणायाम नवजोयणवित्थिण्णं वरनगरसरिच्छे विजयखंधावारनिवेसं करेइ, करित्ता वढइ रयणं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! जहारिहं चउरंग-बलसहियस्स मम आवासं करेह । एगं च पोसहसालं निव्वत्तेहि, निव्वत्तेहिता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि"। से वि सव्वं करेत्ता तहेव पच्चप्पिणंति। तए णं से भरहे राया आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता दब्भसंथारयं संथरेइ, संथरित्ता मागहतित्थकुमारं देवं मणसी करेमाणे अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, पगिण्हित्ता पोसहसालाए पोसहिए उम्मुक्कमणि-सुवण्णे ववगयमालावन्नगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले बंभयारी एगे अबीए दब्भसंथारोवगए पोसहं पडिजागरमाणे, पडिजागरमाणे विहरइ। तए णं भरहेराया अट्रमभत्तंसि परिणममाणंसि पोसहसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता हाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छित्ते सछत्तं सज्झयं विहिहाउहपहरणपडिपुन्नं चाउघंटं आस-रहं दुरूढे । तए णं से सिरोवरिबिरायंतछत्तरयणे उभयपासनिवडत चारुचामराए चाउरंगिणीए सेणाए समंतओ संपरिक्खित्ते चक्करयणदेसियमग्गे अणेगरायसहस्साणुयायमग्गे महया उक्किट्ठ-सिंहनायबोलकलयलरवेणं फोडयंतो चेव अंबरतलं पुरत्याभिमुहे मागहतित्थेणं लवणसमुदं ओगाहेति जाव रहस्सनाही उल्लातओ टंकाररवा पूरियमहिमंडलं पंचवन्नमणिरयणचिंचइयविग्गहं अइरुग्गयवालयंदइंदधणुसन्निगासं दप्पियवरमहिसदढकढिणसिंगग्गसरिससारं परहुयभमरकुलकसिणोरगेंदनीलनिद्धच्छवि निउणोवियमिसिमिसिंतमणिरयणघंटियाजालपरिक्खित्तं तडितरुणतरणिकिरणतवणिज्जबद्धचिधपढें कालहरियरत्त-पीय-सुक्किल-बहण्हारुणिसंपिणद्धं रिउजणजीवियंतकरं धणुं गिण्हइ। वरवइरसारतिक्खतुंडं रविकरसंगसंवड्ढियतेयदुद्दसणं कंचणमणिरयणरइयसुकयपुखं अणेगमणिरयणरमणीयसरलिहियनामक्खरं तिहुयणसंखोहकरं आययकण्णाययं सरं च काऊण इमाई उदाराई वयणाई उदाहरिसु से नरवई-- 'भो भो सुणंतु भवंतो नागा-असुरा-सुवण्णा-बाहिरओ खलु सरस्स जे देवा हंदि सुणंतु भवंतो अभिंतरओ सरस्स १ दिप्पंतसिरए पा २. आबद्धवी पा० ३. प्पमाणमंग पा. ४. हंदि सुणंतु भवंतो बाहिरमो खलु सरस्स जे देवा। नागासुरा सुवण्णा तेसि खु णमो पणिवयामि ॥१॥ हंदि सुणंतु भवंतो अभिंतरप्रो सरस्स जे देवा नागासुरा सुवण्णा सव्वे में विसयवासी ॥२॥ इति जंबूद्वीपप्रज्ञप्तौ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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