Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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जुगाइजिणिदचरियं तत्तो य उवरिवुड्ढी रज्जू जा पंचबंभलोगम्मि । तत्तो वि उवरि हाणी कुज्जा जा रज्जुलोगते ॥१५८२॥ समभूमिपएसाओ हेट्ठाहो मुहसरावसारिच्छो । उवरेणं पुण कोट्ठगसरिसो संठाणओ लोओ ॥१५८३॥ दोन्नि वि धम्माहम्मा गइ-ट्ठिइ-उवटुंभकारगा भणिया । अवगासयमागासं जीवा पुण चेयणसरूवा ॥१५८४।। सद्द-रस-रूब-गंधाण तह य फासाण बहुपगाराण । कारणमिह पन्नत्ता परमाणू परमनाणीहिं ॥१५८५।। एवंविहम्मि लोए तिल-तुसमेत्तं पि नत्थि तं ठाणं। जत्थ न जाओ न मओ अणंतखुत्तो इमो जीवो ।।१५८६।। एसो लोगसहावो संखेवेणं मए समक्खाओ । संपइ पूण जह दुलहा बोही तह संपवक्खामि ॥१५८७।। संसारसायरे संसरंतसत्ताण ताण रहियाण। दुलहा जिणिदधम्मे बोही-मिच्छत्तमूढाण ||१५८८॥ थावरभावं पत्ता तहेव विलिंदियत्तमावन्ना। न ह जीवा जिणधम्मे लहंति अइदुल्लह बोहिं ।।१५८९।। पंचिंदियत्तणे वि हु दुलहा इह जलयराइतिरियाणं। मणुयत्तणे वि दुलहा अणारियाणं कुकम्माणं ।।१५९०।। आरियदेसे वि तहा बोक्कस-खस-सबर-बब्बराईणं। दुलहा जिणिंदबोही सकम्मनिहयाण पावाण ।।१५९१॥ . धम्मत्थिया वि जीवा परपासंडीहिं मोहिया संता। धम्मच्छलेण पावं कुणंति न मुणंति परमत्थं ।।१५९२।। कुग्गहगहसंगहिया धण-जोव्वण-रूवगव्विया केई। विसयासत्ता अन्ने धम्मस्स परंमुहा होति ।।१५९३।। जह मरुथलीए सलिलं गिम्हायवजगडियाण जीवाण। तह जिणवरिंदधम्मे सुदुल्लहा होइ वरबोही ।।१५९४।। गुणसुट्टिओ जइट्ठियवाई संसारभीरुओ धणियं। पंचविहायारधरो धम्मकहीदुल्लहो भणिओ ॥१५९५।। लखूण वि धम्मगुरुं तित्थयरं गणहराइयं कह वि। विवरीयमईपावा पावायरियं पवज्जति ॥१५९६।। पावायरियं पि गुरुं पडिवज्जियमोहमोहियामूढा। पाणाइवायसत्ता सत्ता हिंडंति संसारे ।।१५९७।। कायमणीणं मज्झे वेरुलिओ जइ विनिवडिओ कह वि । वन्नेण समाणो विह तह वि वियाणेइ निउणजणो ॥१५९८॥ तह पावायरियाणं मज्झगयं नामओ समाणं पि। मोत्तूण कुहम्मगुरुं धम्मगुरुं धन्नओ लेइ ।।१५९९।। ता जइ सयलसुरासुर-नर सुरसोक्खाई महह ता तुब्भे। गिण्हह धम्मायरियं पावायरियं पमोत्तूण ॥१६००। बारसविहभावणाओ सम्मं परिभाविऊण एयाओ। तह कुणह जह न निवडह पुणो वि संसारकंतारे ॥१६०१॥ अत्थेण होइ दाणं तवो वि सत्तीए कीरए काउं। सील पि सत्तसज्झं साहीणा भावणा लोए॥१६०२।। एस चउविहधम्मो दाणाई भावणावसाणो त्ति। नियभूमियाणुसारेण कुणह मा मुज्झह स कज्जे ॥१६०३॥ सत्तरससीलाहरणो परमरिसिनिसेविओ गुणविसालो। सचराचरजीवहिओ जइधम्मो होइ उक्कोसो ॥१६०४।। विरयाविरयाण पूणो सावयलोयाण मज्झिमो भणिओ। अविरयसम्मद्दिट्ठीण सावगाणं जहन्नो उ ।।१६०५।।
एवं मुणिय संजायचरणपरिणामो नियसहोयराइदुवालससयसहिओ भरहसुओ उसभसेणो नाम भगवओ समीवे पव्वइओ। भणियं च-- पंच य पुत्तसयाइं भरहस्स य सत्तनत्तुय सयाइं । सयराहं पव्वईया तम्मि कुमारा समोसरणे ।।१६०६।।
बंभी वि पव्वइया भरहो वि सावगो जाओ। संदरी पव्वयंती 'एसा मह इत्थिरयणं भविस्सई' त्ति भरहेण वारिया सा साविया जाया। अन्ने वि मणुस्सा-मणस्सीओ देवा-देवीओ तिरिक्खजोणीया-तिरिक्खजोणियाओ य जहासंभवं के वि पव्वइया अन्ने देसविरई पवन्ना के वि सम्मत्तमेत्तधारगा जाया। एत्यंतरे भगवया उसभसेणपमुहाण चउरासीए गणहराण उप्पन्नेइ वा विगमेइ वा धुवेइ वा माउयापयाणि उहिट्राणि, ते वि भगवंतो जम्मंतरनिन्वत्तिय
१ दट्टण पा०२ नरसिवसोक्खा पा० ।
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