Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 177
________________ जुगाइ जिणिंद-चरियं ते य पूरिसा आगया । पेच्छंति भगवंतं रायाभिसेएणं अभिसित्तं ताहे परिओस-वियसियमहा जाणंति-'किह अम्हे अलंकियविभूसियस्स उवरिं पाणियं छुहामो?" ति ताहे तेहिं पाएसु पाणियं छुढं । ताहे सक्को देवराया चितेइ"अहो इमे विणीया तम्हा एत्थ विणीया चेव नगरी हवउ"त्ति । तए णं से सक्के देवराया वेसमणं महाराय आणवेइ'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! बारसजोयणदीहा नवजोयणवित्थिण्णा कणय-रयय-रयणमयपासायसयसहस्ससंकुला फलिहसिलामलविसालसालोवसोहिया भुवणगुरुणो नाभिनंदणस्स कए नगरिं निमम्वेह । तेण वि तहेव निम्मविया । जा य रोहणगिरिधरणि व्व बहुविहरयणालंकिया न उण सत्थाभिधाय खंडिया, जलहिमुत्ति व्व गंभीरा, न उण वडवानलाणुगया, सुरसरिय व्व विबुहजणसेविया, न उण जडाणुगया, एगंतसुसम व्व वढियाणंदा न उण विगयधम्मा, अहिमयरमुत्ति व्व निट्ठवियदोसा न उण करचंडा, कमलाय रतणुं व लच्छिनिलया न उण जणसंसग्गिदूसिया, मयलंछणमुत्ति व्व जणमणाणंदा न उण सकलंका असुरिंदधणुलट्ठि व्व विचित्तरयणुज्जला न उण विगयगुणा धणड्ढवियड्ढविलासिणि व्व बहुसुवण्णमंडिया न उण परपुरिसक्कंत त्ति अवि य-- . नवजोयणवित्थिण्णा बारसदीहा य सक्कवयणेण । उसहस्स कए नयरी निम्मविया धणयजक्खेण ॥११५४॥ वररयणकणयमइया अणेगकुलकोडिसंकुला रम्मा। निम्मलफलिहसिलामयविसालवरसालपरिखित्ता ११५५॥ पायालोयरगहिराए जंबुद्दीवो व्व जलहिवेलाए । बहुजलयरवसहीए पहाणपरिहाए परियरिया ॥११५६।। जिणसावसेससुचरियवसेग सग्गाओ धरणिमोइन्ना । संसारसुहनिहाणं नज्जइ खंडं व सग्गस्स ॥११५७।। रयणिल्ला भद्दियवरतणु ब्व रयणावलि व्व गुणकलिया । नीसेसजयपडाय व्व सहइ भुवणम्मि सा नयरी ॥११५८।। रज्जाहिसयसमएविणयं दळूण मिहुणयनराण । सक्केण कयं नाम गुणनिप्फन्नं विणीय त्ति ॥११५९॥ सत्य णं नयरीए सयलमहीवालमहीरुहसंरोहबीयकप्पो, सयं सक्कनिव्वत्तियमहारज्जाभिसेओ उसभो नाम महाराया। . . उसप्पिणीसमाए भरहे वासम्मि विहियमज्जाओ । रायाहिरायबीयं पढम विय जो समुप्पनो . ।।११६० ।। पसरंतुब्भडगुणनियरजणिय नीसेसतिहुयणाणंदो । चंदो विव अमयमओ परमकलंको कलावा सो ॥११६१।। चिताणंतरपणइयणविहवपरिपूरणेक्क' दुल्ललिओ। गुणमूलबद्धगुरुपुहइ मंडलो कप्परुक्खो व्व ॥११६२।। निद्रविया सेसपरूढदोसपायडियसयलजियलोगो । नरनाहनमियचलणो उदयत्थो दिवसनाहो व्व ॥११६३।। नीसेसकलानिवहो उसहं मोत्तूण कत्थ परिवसउ। अहव समुदं वज्जियसरियाओ कत्थ निवडंतु ॥११६४॥ अविय अइकूडिलकसिणजमिया विहुरा रेहति तस्स' सीसंसि । पट्टिपहोलिरनियसत्तुविब्भमा नाहितणयस्स ॥११६५।। दुरुन्नओ विरायइ निडालवट्ठो वि निययवंसो व्व। वित्थरियं नयणजुयं गुणेहिं सह पायडगुणस्स ॥११६६।। अहिमाणेण समाणं नासावंसो वि तुंगयं पत्तो। सुसणिद्धसुसंगय दसणा मित्त व्व से जाया ।।११६७।। बिंबारुणो विरायइ अहरो सिरि पढमरायरायस्स । वयणं पि तस्स रेहइ सरयनिसानाहसारिच्छं ॥११६८।। अंसंतपत्तमणहरतवसिरिहिंदोलय व्व . रेहंति। वरपउमरायकुंडल-विलहियगंडत्थला कन्ना ॥११६९।। कंबुग्गीवसरिच्छा गीवा विय सहइ भुवणनाहस्स। वित्थग्इ तस्स वच्छत्थल पि सह गयलच्छीए ॥११७०।। नियसत्तुसुंदरीवल्लरीहिं सह' दीहरत्तणं पत्तं। कंकेल्लिपल्लवंगु लिकरयलकलियं भुयाजुयलं ॥११७१।। अइगरुयपयावेणं समयं रोमावली वि आरुहइ। पडिवक्खेण समाणं झीणो मज्झो वि से दूरं ॥११७२।। विज्जाहि सह तियंसे सुवण्णरयणुज्जलं पवित्थरियं । बंधुमणोरहसहियं पूरिज्जइ ऊरुजुयलं पि ॥११७३।। करि-तुरय-संख-चक्कासिचमरवरपुंडरीयसोहिल्लं। नहयंदविड्डरिल्लं चलणजुयं सहइ सेन्नं व ॥११७४।। सयलववहारकुसले सिप्पसयपयंसगे य नीइनिउणे। उसहम्मि पयापाले मेरं लंघति न पयाओ ॥११७५।। १. पूयणेक्क जे० । २. निवडंप्ति जे० । ३. जस्स पा० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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