Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 184
________________ सिरिरिसहसामिवण्णणं १४३ तिहुयणसिरिसिरसेहरसरिसो रिसहो न दीसए कीस । केवा निवेयगाणं तुन्भे जे कहह नो मज्झ ॥१२२५।। कयकरयलंजलीहिं विन्नत्तमणेहिं सुणह नरनाह ! । गमिऊण निसं सामी सहसच्चिय विहरिओन्नत्थ ।।१२२६।। जावम्हे तुम्ह कह कहेउकामाइओ समुच्चलिया । तात रस च्चिय तुब्भे समागया एत्थ दिट्ठ त्ति ॥१२२७।। सोऊण वयणमेयं . बाहुबली नेहभत्तिराएण । बाहजलभरियनयणो निरुद्धसदं तहिं रुन्नो ।।१२२८।। सोगभरभरियहियए रिसहेसरनंदणे जणो सवो । सोगमओ विव जाओ जह राया तह पया जेण ॥१२२९।। मंतीहिं परियणेण य पहाणपूरिसहि नरवरिंदेहिं । बाहबली बहसोगो निवारिओ रोइयव्वाओ ।।१२३०।। दट्ठण तम्मि ठाणे चक्कंकुस-कूलिसलंछियपयाइं । रिसहरस अक्कमिज्जा मा अन्नो कोइ एयाइं ॥१२३१॥ फलिहमणि-सिलाघडियं समंतओ अट्टजोयणायाम । मणिरयणमयं दिव्वं जोयणमुच्चं सहस्सारं ।।१२३२।। रिसहजिणपयट्ठाणे पराए भत्तीए परमविणएण । बाहुबली बाहुबली करावए धम्मवरचक्कं ।।१२३३।। तस्सेव पभावेणं अचितचितामणिस्स जगगरुणो । निप्फन्नं चिय दिळं कम्मयरा सक्खिणो तत्थ ।।१२३४।। तत्तो य धम्मचक्कस्स काउमद्राहियं महामहिमं । राहुमुहगहियससि-बिंबसममुहो पुरवरि पत्तो ॥१२३५।। भूविक्खेवविसज्जियपरिवारो नियघरम्मि गंतूण । बहलमइपमहपरिमियपरियणसहिओ सह पत्तो ॥१२३६।। सिंहासणे निसन्नो साममुहो खेय-खेइयसरीरो । खेयक्खरेहिं राया अह एवं भणिउमाढत्तो- ॥१२३७।। हा! कह मूढमणेणं कम्ममहावाहिगहियदेहेणं । घरमागया न दिट्टा महोसही मंदपुन्नेणं ।।१२३८।। हियइच्छियकप्पतरुचितचितामणी महासत्तो । घरमागओ विन मया उसहो जगबंधवो दिल नयणा निरत्थया मे जेहिं न दिट्ठोसि तिहयणाणंद । पाया वि अकज्जकरा गंतूण न वंदिओ जेहिं ॥१२४०।। अकयत्था हत्था मे तुह पयजुयलम्मि जे पहु न लग्गा । वाया विवंचिया भुवणनाह तं जीए न हु थुणिओ ॥१२४१॥ लहुयाणमहं लहुगो तिणतुल्लो तिहुयणे वि संजाओ। गरुयगरुएण गुणनिहि परिहरिओ जं तए नाह ! ॥१२४२।। उभयं पि मज्झ जायं मणम्मि दुक्खं जणम्मि अयसो य। नियकुलकलंकएणं किंमह जीएण जम्मेण ।।१२४३।। अमणिय कज्जाकज्जो थावरतित्थेस धावए लोगो। जंगमतित्थं च तुमं धरागओ न हु मया दिट्ठो ॥१२४४।। पत्तो वि निहीवरकणयरयणपुण्णो वि पुण्णरहियाण । न हु होइ थिरो दुक्खं दाविय सो अन्नहिं जाइ ॥१२४५।। पुदि अकयतवाणं पुवि अविढत्तसील-रयणाणं । पुवि अकयसुहाणं न होइ जिणदंसणं तुम्ह ॥१२४६।। मन्ने अहं अजोगो वि गुणो वरविणयवज्जिओ थड्डो' । कहमन्नहा तए पहु परिहरिओ दूरदूरेण ॥१२४७।। जीवाण अहंकारो कारो विव देहदुक्खसंजणणो । इय जाणिऊण जाया निरहंकारा महापुरिसा ॥१२४८॥ कल्लं सव्वड्ढीए वंदामि तहा जहा न केणावि । वंदियपुव्वो भयवं जं भणियं तस्स फलमेयं ॥१२४९।। देवो य दाणवो वा साहंकारं सूणे वि मह वयणं । जइ कूविओ खमउ महं पणयपिया जेण सप्पुरिसा ॥१२५०।। एयावसरे भणिओ बाहुली बहुलमइसहाएण । जइ कह वि चुक्कखलियं जायंता किमिह खेएण ।।१२५१॥ जणणी जस्स सुनंदा तेलोक्कपियामहो पिया उसहो। सो कह तुम अहन्नो धन्नाण सिरोमणी तंसि ॥१२५२॥ बत्तीसं पि सुरिंदा सपरियणा सव्वरिद्धिसंजुत्ता । पूयंति जस्स पाए छक्खंडनरीसरा तुट्ठा ॥१२५३।। तस्स सुरासूरसंथयपयस्स परमेसरस्स रिसहस्स । नियरिद्धीए किज्जइ चंदणयं नेयरनिरासो२ ॥१२५४।। जम्मो ताण गणिज्जइ पहुत्तणं ताण ताण परधम्मो । गिरिसरिसलिलरएणं व रिद्धिरएणं न जे मूढा' ॥१२५५।। ते चेव बुद्धिमंता विवेयवरमंतरक्खियसरीरा। अइचंचललच्छिपिसाइयाए जे नो छलिजंति ॥१२५६।। वाएण विणा भग्गा अड्डवियड्डाई खोरटारो व्व । अन्नस्स गले लग्गा पयाइं कह कह वि मुंचंति ।।१२५७।। कन्नेहि समं बहिरा नयणसमेयाहिं अंधला धणियं । वयणेहिं समं मूया हुंति नरा' पउररिद्धिल्ला ।।१२५८।। १. विज्जउ बद्धो जे० । २. नेयर निसो जे० । ३. गि सरिस जे० । ४. वूढा जे० । ५. भणियं जे० । ६. पवर पा० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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