Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 183
________________ १४२ जगाइजिणिंद-चरियं जह पढमो तित्थयरो भरहपिया भारहम्मि वासम्मि । तह सज्जंसो पढमो दाया इह भरहखेत्तम्मि ।।१२१०।। तेलोक्करंगमज्झे सज्जर्सगं सुरासुरसमक्खं । गहिया दाणपडागा पारावियजिणवरं पढम ॥१२११।। सेज्जसो सलहिज्जइ दाणवईणं किमन्नदाईहिं । जेण जिणो मूढजणे पढम पाराविओ रिसहो ।।१२१२।। यत उक्तं कायशिरा इव गढं प्रथमत उन्मोचयन्ति ते विरलाः । के कत कदंत का इव लब्धप्रसरा: ततो तु धनाः ।।१२१३।। देमि त्ति मणे तुट्ठो । पयाण काले वि समहियं तुट्ठो । दिने वि परमतुटठी जाया सज्जंसकुमरस्स ॥१२१४।। नारय-तिरिय-नरामरगईण दिन्नो जलंजली तेण । पक्खित्ता तस्स गले सिद्धि पुरंधीए वरमाला ॥१२१५।। अहरियचितामणिकामधेणु, कप्पदुमोवममणग्धं । मोक्खतरुबीयकप्पं सुपत्तदाणं जए जयइ ॥१२१६।। भवणं धणेण भूवणं जसंग भयवं रसेण निव्वविओ। अप्पा निरूवमसोक्खे सुपत्तदाणं महग्घवियं ॥१२१७॥ रिसहेसरसमपत्तं निरवज्जं खोयरससमं दाणं । सेयंस समो भावो हवेज्ज जइ मग्गियं होइ ।।१२१८॥ ___ भगवं पि पारणगं काऊण निग्गओ सज्जंसमंदिराओ । सेज्जंसो वि भगवं जत्थ ठिओ पडिलाभिओ ताणि पयाणि मा पाएहिं अहमण्णो वा अक्कमिज्ज'त्ति भत्तीए तत्थ रयणामयं पेढं कारावेइ भत्तिबहमाणहयहियओ तिसंझं च पवरपुप्फईहिं अच्चिणइ । विसंग य देसकाले सविसंसं पूईऊण भंजइ । लोगो पुच्छइ--"किमेयं ? ति ।" सेज्जंसो भणइ-आइगरमंडलं'ति तओ लोगेण वि जत्थ जत्थ भगवं ठिओ तत्थ तत्थ पेढं कयं । तं च कालेण आइच्चपेढं जायं। भयवं पि गयउरनयराओ तक्खसिलं गओ। बाहुबली तत्थ राया। सुओ तेण नियपुरिसेहितो-भगवं समागओ। चितियमणेण-संपयं समासन्नो पओसो । कल्लं सविडढीए तहा वंदेमि जहा न केणइ वंदिओ । एवं कयपणिहाणो महासामग्गि पइ तोरवियनियपरिवारो सहसंकप्पनिसायरकरनियरसंगसंखोहियमणमयरहरो पसूत्तो वसभवणपवरपल्लंके बाहुबलि नराहिवो । अणेगसंकप्पवियप्पसमाउलमाणसस्स चिरेण समागया निद्दा । पभाए पडिबुद्धो समाणो बलवाउयं समाहूय एवं वयासी-"खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! हय-गय-रह-पउरपायत्ताणीयसंरुद्धमहीमंडलं चाउरंगिणीसेण्णं पउणी करेह ।' सो वि तहेव करेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणइ । तओ नयरारक्खियपुरिसे समाइसइ-"खिप्पामेव भो! तक्खसिलं नरि सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु आसियसंमज्जिवलितं कालागरु-पवर-कुंदुरुक्कतुरुक्कडझंतगंधुद्धयाभिरामं, पइभवणनिबद्ध-तोरणं उभयपासविमुक्कचंदण-चच्चिय-कलसं, विहिय विविहहट्टसोहं, मंचाइमंचकलियं समंतओ करेह कारावेह य करेत्ता य एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।" ते वि तहेव काऊण पच्चप्पिणंति । तओ सद्दावेत्ता महल्लए भणइ-"खिप्पामेव भो ! वसंतसिरिपमुहमंतेउरं हायं कयबलिकम्म, विहियपवरंगरागं, पंचवन्नविविहकुसुभोवसोहियं, हारद्धहाराइणा तिलयचोद्दसमेणं आहरणेण विराइयं नियत्थवरवत्थं भगवओ वंदणनिमित्तं पउणं करेह । ते वि तहेव काऊण निवेयंति । तओ अप्पणा ण्हायविलित्तो अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरो गहियवरनेवच्छो निउत्तपुरिसढोइयं जयपुंजगंधवारणं समारूढो । तओ समकालसमाहयाण वज्जाउज्जसद्दबहिरियबंभंडभंडोदरो मागहजणजणियजयजयारावभरिभूमंडलो सव्वेणं बलेणं सव्वेणं अंतेउरेणं सवाए रिद्धीए सव्वाए सामग्गीए सव्वेणं पुरजणसमदएणं तक्खसिलं नयरिं मझं मज्झेणं भगवओ वंदणवडियाए निग्गओ सुनंदानंदणो। पत्तो नयरुज्जाणं बाहुबली बहुजणेण परियरिओ । जयपुंजकुंजरा उत्तिन्नो तक्खणा चेव ॥१२१९।। जणउज्जाणियपाउगधवलधवलहरसिहरसंछन्नं । नाणाविहफलभरनमियसाहि साहाउलं रम्मं ॥१२२०॥ पुन्नाग-नागहिंताल-ताल-सहयार-सहससोहिल्लं । . पोक्खरणि-वावि-दीहिय-गुंजालियविसररमणीयं ।।१२२१॥ कलहंस-कुरर-कोइल-कारंडव-चक्कवाय-चेंचइयं । सुयसारिय-बरहिण-पमुहपक्खि-रवमुहरियदियंतं ॥१२२२।। नाणाविहसरससुगंध-कुसुम-मयरंद-लुद्धभमरउलं । फलतुटपुटुमक्कड-वानरबुक्काररमणिज्जं ॥१२२३।। दठ्ठण तमुज्जाणं अदिजिणकप्पपायवो राया । पुच्छइ निउत्तपुरिसे विवन्नवयणो निराणंदो ॥१२२४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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