Book Title: Jugaijinandachariyam
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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जुगाइजिणिंद-चरियं
न गति गुरुं न नमंत देवयं न य मुणंति सुहिसयणं । पीयमइर व्व मत्ता भमंति विहलंघलसरीरा ।। १२५९ ।। विति विगुणा चंचललच्छीए संगया पुरिसा । विगुणाण पुणो मरणं जंन कुणइ तं महच्छरियं ॥ १२६० ॥ sya विहु विन अविवेइजणं' जणाण मज्झम्मि । अपडिपुन्नाए पुण विडंबणा चेव लच्छीए ।। १२६१ ।। कोणता संखं नराण लच्छीए जे छलिज्जति । संता वि जेहि लच्छी छलिया ते एक्क दो तिन्नि ।। १२६२ ।। जम्मो ताण गणिज्जइ सुकयत्थं जीवियं जए ताण । जे पाविऊण लच्छि उच्छेयं नेव गच्छति ।। १२६३ ।। भावि जणवत्था अप्पकसाया पमायपुरिहीणा । गरुए वि विहवसारे निरहंकारा महासत्ता ।। १२६४ ।।
जं पुण भयवं न वंदिओ न तत्थ खेओ कायव्वो भावेणं वंदिओ चेव ददुव्वो । किं च बहुविग्धाणि सेयवत्थूणि वति । विसेसओ तिहुयणगुरुणो सयलजयजीव - निक्कारणबंधुणो जंगमतित्थस्स जुगाइतित्थयरस्स पायवंदणं जं च तुमए चितियं तहा पभाए वंदिस्सं । जहा न केणइ वंदिओ एयं दिन संगयं महापुरिसाण एस । भहाराय ! रिद्धिमओ इहलोगे वि पाणिणं महाणत्थपरंपराहेऊ जहा पवणपोयवणिणो रिद्धिमयपरिहारो पुण इहलोगे वि कल्लाणकारणं जहा पण उणो । राइणा भणियं - " को एस पवणपोओ ? को वा पवणकेऊ ?" मंतिणा भणियं - "सुणउ देवो ।"
पवणपोयकहा
अथ इहेव तुम्ह नयरीए अणेगधणकोडीसरो पवणपोओ नामवणिओ । तस्स णं ललिय व्व लेलियचरिया ख्वाइ गुणगणविणिज्जिरईपरमरईकारणं पाणेहितो वि पिया धणसिरी नाम पिया । सा पुण अवियाउरी अवच्चदुहदुहिया कालं गमेइ ।
अन्नम्म दिने तमंधयाराए रयणीए वासभवणपल्लंकाओ निरुद्धपथ रवा उज्जाणं पइ पत्थिया धणसिरी । पवणपोओ वि भवियब्वया निओएण विबुद्धो । कहि एसा गच्छइ ?" त्ति संकियहियओ सणियं सणियं अलक्खिओ चेव तयणुमग्गेण चलिओ । सा वि घरुज्जाणं गंतूण सहयारपायवमारूढा बद्धो उत्तरिज्जेण कंधराए पासओ । तयणुसह्यारसाहाए बंधिऊण मन्नुभरभरियमाणसा सगग्गर- रक्खरं एवं भणिउमाढत्ता -- "भो भगवईओ वणदेवयाओ ! लद्धो ए आसंघियपेमगुणो समसुहसुहिओ धणओ व्व अपरिमियधणो पवणपोयसरिसो दइओ, परं गिम्ह्यालरविकिरणावली व दह देहं निरवच्चया ता तह करेज्जह जहा जम्मंतरे वि पवणपोओ चेव पिओ हवइ न उण निरवच्चत्तणं त्ति ।" भणिऊण मुक्को अप्पा । एत्यंतरे "हा ! किमेयं ? ति भणंतो वेगेण समागओ पवणपोओ । छिन्नो छुरियाए तेण पासओ । संवाहिया कंधरा सत्थावत्थानीया नियघरं । भणिया य--' - " सुंदरि ! किमेयं तए महासाहसमणुट्ठियं ?” सा वि बाहाविललोयणा धोरमुत्ताहलपमाण- नयणसुसंसित्तवच्छत्थला धरणियलनिहियलोललोयणा निरुद्धसद्दं रुयइ चेव न उण पडिवणं वियरइ । तओ सेट्टिणा कह कह वि संठवेऊण भणिया- "पिए! न विसाओ कायव्वो तहा जइस्सं जहा ते अवच्चसंपत्ती हवइ ।" धणसिरीए भणियं -- " नाह ! नत्थेत्थ तुह दोसो जम्मंतरकयाणि निकम्माणि चेव पाणिणं अवरज्झति जं तुमं पि मह पुत्तपओयणे उदासीणो चिय लक्खीयसि । कयनिच्छए तुमम्मि किं न सिज्झइ ? पवणपोएण भणियं -- “पिए! अयाणुया तुमं जा एवं पलवसि, मज्झ वि एस निरवच्चया वणकटु-समुब्भवो दह देहं सोयानो परमप्पडियारे विहिविलसियम्मि कि बहुणा परिदेविएण ? तह वि जइ ते एस निब्बंधो ता महासाहसं किं पि काऊण तहा करिस्सं जहा ते मणोरहसंपत्ती हवइ । अवि य-
गुरुदुस्सहजाल समाउलम्मि जलणे हवि व्व हुणिऊण । अप्पाणं तह वि मए तुह पुत्तो सुयणु ! कायव्वो ।। १२६५ ।। अइगाढरूढदाढग्गिभग्गतियसि ददंति दंतग्गे । पुच्छच्छोडणचालियगुरुगिरिवरसिहरपब्भारे ॥। १२६६॥ सी-किसोरम्मिठियं सरयधणे विज्जुलं व कुलदेवि । आराहिऊण तारं कायव्वो तह वि ते पुत्तो ॥ १२६७ ॥
forest dj सोऊण धणसिरी पसन्नमणा । चलणजुयलम्मि पडिया महापसाओ त्ति भणिऊण ॥। १२६८ ।।
तओ १वणपोएण पारद्धा देवयाण पूया । विसेसा इच्छियाणि विविहोवाइयाणि सेविया मंत-तंत-वियाणगा । तह वि न जाया कज्जसिद्धी । तओ अवलंबिय साहसस्स विहियबलि विहाणस्स संगहियरत्तचंदण रत्तकणवीरकुसुमस्स १. निवडइ पा० । २. एत्येव ।
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